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Updated: 01 अक्टूबर, 2018 03:30 PM
बिलाल एम जाफ़री
बिलाल एम जाफ़री
  @bilal.jafri.7
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नीतीश के मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव चर्चा में हैं. वजह बनी है टोपी. मुसलमानों के एक कार्यक्रम में बतौर अतिथि गए मंत्री जी ने टोपी पहनने से इंकार कर दिया. मंत्री के टोपी न पहनने के बाद आलोचनाओं का दौर तेज हो गया है. आलोचक न सिर्फ मंत्री को बल्कि पार्टी जेडीयू और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को मुस्लिम विरोधी बता रहे हैं. हालांकि जेडीयू के एक अन्य नेता तनवीर अख्तर मंत्री ने मामला कवर अप कर लिया है और कहा है कि आयोजन स्थल पर अत्यधिक गर्मी होने के चलते मंत्री ने टोपी नहीं पहनी थी.

बिजेंद्र प्रसाद यादव, जेडीयू, मुस्लिम, टोपी  जेडीयू नेता बिजेंद्र यादव के टोपी न पहनने के बाद आलोचना का दौर शुरू हो गया है

क्या था मामला

राजधानी पटना से करीब 300 किलोमीटर दूर कटिहार में, तालीमी बेदारी कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया था. नीतीश कैबिनेट के वरिष्ठ मंत्रियों में शुमार और राज्य के ऊर्जा मंत्री बिजेंद्र प्रसाद यादव इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थे. जब आयोजकों ने यादव को टोपी पहनने को दी, तो उन्होंने टोपी पहनने के बजाए उसे पीछे बैठे अपने सहायक को दे दिया और इसे के बाद से मामले ने तूल पकड़ लिया.   

घटना से आहत हुए मुस्लिम

बिजेंद्र यादव के इस बर्ताव को देखकर कार्यक्रम में आए मुस्लिम समुदाय के लोग काफी नाराज हैं. लोग यादव को मुस्लिम विरोधी बता रहे हैं. साथ ही इस पर राजनीति भी तेज हो गई है. मामले पर अपना रिएक्शन देते हुए हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा के प्रवक्ता दानिश रिजवान ने कहा, 'जेडीयू अब पूरी तरह से आरएसएस की विचारधारा के शिकंजे में जकड़ चुकी है. दानिश रिजवान ने ये भी कहा कि जेडीयू अध्यक्ष नीतीश कुमार कहते हैं कि टोपी भी पहननी होगी और टीका भी लगाना होगा. अब नीतीश को अपने मंत्री से पूछना चाहिए कि उन्होंने टोपी पहनने से क्यों इनकार किया.'

बचाव में जुट गई जेडीयू

मामला संवेदनशील था तो किसी न किसी को मामले को कवर अप करना था. जेडीयू एमएलसी तनवीर अख्तर ने यादव का बचाव करते हुए कहा कि मंत्री ने टोपी स्वीकार की लेकिन आयोजन स्थल पर अत्यधिक गर्मी की वजह से उन्होंने इसे नहीं पहना. अख्तर के अनुसार यादव ने आयोजकों की तरफ से भेंट किया गया गमछा पहले ही अपने कंधे पर डाल रखा था. इसके अलावा तनवीर अख्तर ने ये भी कहा कि ऊर्जा मंत्री के मुस्लिम समुदाय से प्रेम और समर्थन पर सवाल नहीं उठाया जा सकता, क्योंकि भागलपुर दंगों में पीड़ितों के अधिकारों के लिए उन्होंने संघर्ष किया था. साथ ही उन्होंने लंबित मामलों को फिर से खुलवाने में काफी मदद की थी.'

तो क्या मुस्लिम सशक्तिकरण सिर्फ टोपी तक सीमित है

कार्यक्रम हो चुका है. मंत्री जी टोपी पहनने से इंकार कर चुके हैं. आलोचकों को आलोचना का मौका मिल गया है. मामले को कवर करने वाले बयान आ चुके हैं. इन सारी बातों के बाद प्रश्न उठाना लाजमी है कि क्या मुसलमानों का सारा सशक्तिकरण तब तक पूरा नहीं माना जाएगा जब तक कोई नेता इनके प्रोग्राम में आकर टोपी नहीं पहनता? क्या मुस्लिम समुदाय के लिए टोपी पहनना या न पहनना ही विकास का पैमाना है? कहना गलत नहीं है कि, ये अपने आप में दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक ऐसे वक़्त में जब मुसलमानों को मंच से अपने विकास की, अपने रोज़गार की. अपनी शिक्षा की, अपने को मिलने वाली स्वास्थ्य सेवाओं की बात सुननी चाहिए वो ये देख रहे हैं कि मंच पर उनसे मुखातिब हुए नेता ने टोपी पहनी या नहीं पहनी.

आखिर कैसे होंगे मुसलमान सशक्त

जो और जैसे हालात मुसलमानों के हैं. कहना गलत नहीं है कि सियासत ने उन्हें टोपी की गोलाई में उलझा कर रख दिया है. चाहे बिहार हो या फिर उत्तर प्रदेश, हरियाणा, गुजरात और राजस्थान. अगर वाकई इस देश का मुसलमान सशक्त होना चाहता है तो उसे अपने आपको टोपी और स्कार्फ की राजनीति से दूर रखना होगा. उसे समझना होगा कि उसे टोपी में लगे धागे के रेशों और उसकी गोलाई की माप में उलझाया जा रहा है. यदि देश का मुसलमान इस बात को समझ जाता है और अब से अपने को टोपी और टोपी की राजनीति से दूर करना शुरू कर देता है तो निश्चित तौर पर उसके सशक्तिकरण की सम्भावना प्रबल है. यदि ऐसा हो गया तो बहुत अच्छी बात है. वरना टोपी की सियासत तो चल ही रही है और आगे भी चलेगी.

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लेखक

बिलाल एम जाफ़री बिलाल एम जाफ़री @bilal.jafri.7

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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