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Updated: 07 जून, 2015 06:01 PM
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'नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मजार है. निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए. ऐसा काम ढूंढना, जहां कुछ ऊपरी आय हो. मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चांद है, जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो जाता है. ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है, जिससे सदैव प्यास बुझती है. वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृद्धि नहीं होती. ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी बरकत होती है. तुम स्वयं विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊं.'

नमक का दारोगा. 1919-20 में मुंशी प्रेमचंद के द्वारा लिखी कहानी. जो समझ न पाएं, वो कोल्हू के बैल हैं, काम करते हैं. जो समझदार हैं, आज भी इस पर अमल करते हैं. एक महिला हैं. नाम है जयललिता. समझदार हैं. कहानी से एक कदम आगे बढ़ चुकीं समझदार. क्यों? नीचे स्पष्ट किया गया है.

तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता को चुनाव लड़ना है. इसी प्रक्रिया में उन्हें अपनी आय का विवरण देना पड़ा. वरना कहां पता चल पाता कि उनके पास कितना 'माल' है. तो इस तरह 5 जून 2015 को रिकॉर्ड में दर्ज उनकी आय है 117.13 करोड़ रुपये. हालांकि 21280.300 ग्राम सोने के गहनों की कीमत का आंकड़ा वह नहीं दे पाईं क्योंकि आय से अधिक संपत्ति के मामले में यह सारा माल कर्नाटक सरकार के खजाने में जब्त पड़ा हुआ है.    

अब एक और आंकड़ा: मई 2011 में भी इन्हें चुनाव के ही कारण अपनी संपत्ति का खुलासा करना पड़ा था. तब इन्होंने 51.40 करोड़ रुपये के कुल आय की घोषणा की थी.   

अब थोड़ी सी गणित. 4 साल एक महीने में जयललिता की संपत्ति 51.40 से बढ़कर 117.13 करोड़ रुपये हो गई. 65.73 करोड़ रुपये यानी 127.88 प्रतिशत की बढ़ोतरी.

इतने समय में सैलरी, बैंक-शेयर बाजार, पोस्ट ऑफिस, म्युचुअल फंड्स, फिक्स्ड डिपॉजिट सब को साथ जोड़ लें तो भी गणित की गणना फेल हो जाएगी. और यहीं पर 'नमक का दारोगा' की ऊपरी लाइनों का मतलब समझ आता है.

और हां, रह गई बात कहानी से एक कदम आगे बढ़ चुकीं समझदार होने की तो सबसे पहली पंक्ति फिर पढ़िए - 'नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना'. प्रेमचंद 'मूर्ख' थे, इन्होंने ध्यान दिया. पहले मुख्यमंत्री थीं. फिर हटाई गईं. लेकिन ओहदा तो ओहदा है. फिर काबिज. अब ओहदे से संपत्ति है या संपत्ति से ओहदा... यह तो वही बता सकती हैं.

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लेखक

चंदन कुमार चंदन कुमार @chandank.journalist

लेखक iChowk.in में पत्रकार हैं.

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