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Updated: 13 मई, 2015 02:09 PM
धीरेंद्र राय
धीरेंद्र राय
  @dhirendra.rai01
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वैसे दक्षिण भारत में सिनेमा के सितारों ने सियासत खूब सफलता अर्जित की. फिर चाहे वह तमिलनाडु में एमजी रामच्रंद्रन हों या आंध्रप्रदेश में एनटी रामाराव. उसी कड़ी में नाम आता है जे. जयललिता का. लेकिन जयललिता का उदाहरण कई मायनों में बाकी सितारों से अलग भी है. सिनेमा से सियासत के शीर्ष तक पहुंचने की ये कहानी फिल्मी तो नहीं है, लेकिन किसी फिल्मी कहानी से कम भी नहीं है. जानिए क्यों-

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बिंदास तमिल अदाकारा.

15 साल की उम्र में पर्दे पर...

1948 में जन्मी जयललिता ने दो साल की उम्र में ही पिता को खो दिया. मजबूरी में मां ने तमिल सिनेमा में संध्या के नाम से काम शुरू किया. 15 साल जया भी के इस संघर्ष का हिस्सा बन गई और एक अंग्रेजी फिल्म एलिस्टी में काम किया. किसी भी तमिल फिल्म में स्कर्ट पहनने वाली वे पहली हिरोइन थीं.

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एमजी रामचंद्रन के साथ जोड़ी हिट हुई.

60-70 का दशक एमजीआर के साथ...

जयललिता ने कई फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवाया. श्शिवाजी गणेशन के साथ आई उनकी फिल्म पट्टिकाडा पट्टनामा में अभिनय के लिए उन्हें नेशनल अवार्ड और फिल्म फेयर दोनों मिला. लेकिन तमिल सिनेमा के दो दशक तक उन्होंने एमजी रामचंद्रन के साथ एक के बाद एक कई हिट फिल्में दीं.

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राजनीति के गुर भी एमजीआर ने ही सिखाए.

एमजीआर के साथ ही राजनीति के मंच पर...

फिल्मों में एमजीआर के साथ कामयाब जोड़ी बनाने वाली जयललिता ने उन्हीं से राजनीति के गुर सीखे. एमजीआर ने एआईएडीएमके बनाई थी और 1977 में तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने. 1982 में उन्होंने पार्टी ज्वाइन की और अपना पहला भाषण दिया. 1983 में उन्हें पार्टी का प्रोपोगेंडा सेक्रेट्री बनाया गया.

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एमजीआर के निधन के बाद उनकी पत्नी से सत्ता संघर्ष हुआ.

एमजीआर की विवादित उत्तराधिकारी...

फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने के कारण एमजीआर ने अपनी पार्टी की प्रतिनिधि के बतौर जयललिता को राज्यसभा भेजा. अब उन्हें एमजीआर का उत्तराधिकारी माना जाने लगा. लेकिन ऐसा उन्हीं की पार्टी के कई नेताओं को पसंद नहीं था. जयललिता के नेतृत्व में एआईएडीएमके ने 1984 के चुनाव में जबर्दस्त प्रदर्शन किया. लेकिन 1987 में हृदयाघात से एमजीआर की मौत के बाद एआईएडीएमके प्रमुख के पद को लेकर संघर्ष शुरू हो गया. पार्टी जया और एमजीआर की विधवा पत्नी जानकी रामचंद्रन के नेतृत्व वाले धड़े में बंट गई.

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आखिर पूरी पार्टी जया के आगे नतमस्तक हो गई.

1991 में मिला निर्विवाद नेतृत्व...

1989 के विधानसभा चुनाव में मिली पराजय के बाद एआईडीएमके भीतर लामबंदी और तेज हो गई. जयललिता को विपक्ष का नेता चुना गया. उन्होंने करुणानिधि और डीएमके की नीतियों का जमकर विरोध किया. उनके प्रभावी नेतृत्व के कारण जयललिता का अपनी पार्टी में प्रभुत्व बढ़ता गया. आखिर जानकी रामचंद्रन ने राजनीति से संन्यास ले लिया और दोनों धड़ों का आपस में विलय हो गया. 1991 के तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में उन्हें अभूतपूर्व समर्थन के साथ मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली.

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लेखक

धीरेंद्र राय धीरेंद्र राय @dhirendra.rai01

लेखक ichowk.in के संपादक हैं.

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