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Updated: 10 फरवरी, 2016 11:15 AM
राहुल मिश्र
राहुल मिश्र
  @rmisra
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फरवरी 2015 में पीडीपी-बीजेपी का हैरान करने वाला समझौता हुआ और राज्य में पहली बार पीडीपी-बीजेपी की गठबंधन सरकार मुफ्ती मोहम्मद सईद की अगुवाई में बनी. जनवरी 2016 में मुफ्ती साहेब का अकस्मात निधन हो गया. आमधारणा थी कि महबूबा मुफ्ती पिता की गद्दी पर काबिज हो जाएंगी और पीडीपी-बीजेपी समझौता बदस्तूर जारी रहेगा. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. बीते एक महीने से जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री का पद खाली पड़ा है, महबूबा मुफ्ती कुर्सी पर बैठने से कतरा रही हैं, नैशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस का विपक्ष राज्य में चुनाव का मूड बना रही हैं और बीजेपी कुर्सी पर आंख गड़ाए बैठी है.

महबूबा का मानना है कि राज्य में नई सरकार के गठन के लिए किसी खास माहौल की जरूरत है और उस माहौल के लिए केन्द्र सरकार को कुछ अहम कदम उठाने होंगे. दरअसल महबूबा के इस बयान को पीडीपी-बीजेपी गठबंधन पर किसी तरह के सवाल के तौर पर देखना बड़ी भूल है. इस बयान के जरिए महबूबा की कोशिश महज इतनी है कि वह अपने लिए कुछ समय खरीद सके जिससे सरकार बनाने का फैसला करने के पहले उन्हें साफ-साफ अंदाजा लग सके कि पिता की नामौजूदगी में उनकी राजनीतिक जमीन की हकीकत क्या है. महबूबा के लिए ऐसा करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि पिता के रहते हुए अभी तक उन्हें महज पार्टी की कमान संभालने और पार्टी के लिए ग्राउन्ड कनेक्ट बनाने में महारत हासिल हुई है. वहीं राज्य में बीजेपी के साथ गठबंधन में सरकार चलाना उनके लिए कांटो भरा ताज साबित हो सकता है.

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लिहाजा महबूबा के लिए अपनी राजनीतिक जमीन की हकीकत का आकलन करने का यह सबसे सही मौका है. सबसे पहले महबूबा को पार्टी के अंदर पनपने वाले विद्रोह की हर संभावना को लगाम लगाने की कवायद करने की जरूरत है. पार्टी के दो वरिष्ठ नेता और सांसद मुजफ्फर हुसैन बेग और तारिक हमीद कर्रा उस समय से महबूबा के विरोध में खड़े हैं जबसे पार्टी ने बीजेपी के साथ मिलकर राज्य में सरकार बनाने की कवायद की थी. गठबंधन की सरकार बनने के बाद भी दोनों नेताओं ने समय-समय पर सरकार के कामकाज के तरीकों पर सवाल खड़ा किया है. इन नेताओं का पहले आरोप था कि सत्ता पाने के लिए पार्टी ने बीजेपी जैसी हिंदूवादी पार्टी के साथ साठगांठ कर ली है. लिहाजा ऐसे आरोपों को सिरे से खारिज करना महबूबा की बड़ी चुनौती है.

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पार्टी में विद्रोह की स्थिति को संभालने के बाद महबूबा के सामने दूसरी सबसे बड़ी चुनौती बीजेपी के साथ गठबंधन की सरकार चलाने की होगी. मुख्यमंत्री के पद पर काबिज होने के बाद महबूबा को पार्टी की उम्मीद और दबाव के साथ-साथ गठबंधन की खींचतान का समन्वय करने की जरूरत पड़ेगी. गौरतलब है कि लगभग 10 महीने तक मुफ्ती मोहम्मद सईद के नेतृत्व में चली इस गठबंधन सरकार में समस्या शपथ ग्रहण के साथ ही शुरू हो गई थी जब सईद ने अलगाववादी नेता मसारत आलम की रिहाई का फरमान जारी कर दिया था और जम्मू-कश्मीर में शांतिपूर्ण चुनावों का श्रेय पाकिस्तान को दे दिया था. गठबंधन में टकराव की स्थिति यहीं तक सीमित नहीं रही और इसके बाद मुद्दा चाहे बाढ़ राहत का रहा हो, पाकिस्तान से वार्ता के पहले हुरियत नेताओं की रिहाई का हो या फिर उत्तर प्रदेश में उपजे बीफ विवाद का, गठबंधन के दोनों धड़ों को अपने लिए विवाद का कोई न कोई कारण मिलता रहा.

ऐसे में राज्य की मौजूदा राजनीति को देखते हुए महबूबा मुफ्ती के लिए एक और विकल्प है जो उन्हें राज्य की राजनीति के केन्द्र में रखने में सफल होगा. यह विकल्प उनके लिए वह खास माहौल भी बनाकर तैयार कर देगा जिसके लिए वह फिलहाल सत्ता की बागडोर अपने हाथ में लेने से कतरा रही हैं. वह विकल्प है पीडीपी-बीजेपी गठबंधन को जारी रखते हुए राज्य में बीजेपी के नेतृत्व में सरकार गठन कराने का.

जम्मू-कश्मीर विधानसभा की कुल 87 सीटों में बीजेपी के पास 25 सीटें हैं जबकि पीडीपी 28 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी है. वहीं नैशनल कांफ्रेस के पास 15 और कांग्रेस के पास 12 सीटें हैं. गौरतलब है कि वोट शेयर के मुताबिक बीजेपी राज्य में 23 फीसदी वोट के साथ सबसे बड़ी पार्टी है और पीडीपी 22.7 फीसदी के साथ दूसरे नंबर पर है. इस अंकगणित से राज्य में गठबंधन सरकार का नेतृत्व करने के लिए पीडीपी जितना दम बीजेपी भी रखती है. लिहाजा, महबूबा मुफ्ती को एक बार फिर अपने उस बयान पर गौर करना चाहिए जो उन्होंने इस गठबंधन के बनने से पहले जारी किया था, "हमारी प्राथमिकता यह नहीं है कि राज्य में सरकार बनाने के लिए हम कोई भी रास्ता एख्तियार कर लें. लोगों की उम्मीद पर खरा उतरने और गुड गवर्नेंस देने के लिए हम उन सभी संभावनाओं पर विचार करेंगे, भले इसमें जितना भी समय लगे..."

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महबूबा के इस बयान के बाद राज्य में पीजीपी-बीजेपी गठबंधन की नींव रखी गई. बीजेपी के समर्थन से पीडीपी ने साझा सरकार बनाई. इस सरकार को चलाने के लिए पीडीपी के पूर्व दिग्गज मुफ्ती मोहम्मद सईद मौजदू थे जो केन्द्र और राज्य की राजनीति में जम्मू-कश्मीर के सबसे मझे हुए खिलाड़ी थे. आज एक साल बाद स्थिति बदल चुकी है. पहला तो महबूबा में इस गठबंधन को चलाने की मुफ्ती जैसी दक्षता नहीं है और दूसरा इस कवायद में पार्टी पर उनकी पकड़ कमजोर पड़ जाएगी क्योंकि पार्टी चलाने के लिए उनके पास मुफ्ती मोहम्मद सईद की तरह महबूबा मुफ्ती नहीं है. ऐसे में इस गठबंधन को जारी रखते हुए यदि बीजेपी को कमान देने का फैसला कर लें तो उनके लिए पार्टी में उठ रहे विरोध के सुर को दबाना आसान हो जाएगा. राज्य में बीजेपी की सरकार कायम होने पर केन्द्र की राजनीति में उनका और पार्टी के अन्य वरिष्ठ नेताओं का कद बढ़ जाएगा. इन सबके इतर राज्य में भी वह बीजेपी की सरकार को डेवलपमेंट और गुड गवर्नेंस पर ही सीमित रखने में ज्यादा कारगर होगी क्योंकि तब इस गठबंधन के दायित्व को निभाने का ज्यादा दारोमदार बीजेपी पर रहेगा. लिहाजा, इतना साफ है कि यदि जम्मू-कश्मीर में पीडीपी के समर्थन के साथ बीजेपी के नेतृत्व की सरकार बनती है तो महबूबा मुफ्ती के सामने फायदा ही फायदा रहेगा.

लेखक

राहुल मिश्र राहुल मिश्र @rmisra

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्‍टेंट एड‍िटर हैं

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