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Updated: 06 सितम्बर, 2019 09:08 PM
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चंदा मामा की कहानियां हम बचपन से सुनते आए हैं. एक सवाल मन में हमेशा रहता था कि आखिर ये चंद्रमा हमारा मामा कैसे है. हालांकि, वैज्ञानिकों का इस पर पक्का विश्वास था कि पृथ्वी से टूटकर ही चंद्रमा का निर्माण हुआ है. लेकिन ISRO का Chandrayaan-2 मिशन इस बात पर मुहर लगा देगा कि क्या वाकई चंद्रमा का निर्माण पृथ्वी से टूटकर हुआ है, या फिर यह सौरमंडल के निर्माण के समय आई एक उल्का थी, जो पृथ्वी के आसपास चक्कर लगाने लगी.

भारत का Chandrayaan-2 मिशन चंद्रमा और पृथ्वी के पुराने रिश्ते का रहस्य उजागर कर सकता है. सूर्य के निर्माण के 60 लाख साल बाद, और करीब 4.48 अरब साल पहले पृथ्वी बनी. यह सूर्य से अलग हुए जलते हुए टुकड़ों में से एक थी. उस दौर में पूरा सौरमंडल उल्कापिडों से भरा हुआ था, जो एक दूसरे से टकरा रहे थे. और नए नए ग्रहों का निर्माण हो रहा था. इसे Planet crash theory से भी समझाया जाता है. इसी दौरान पृथ्वी से एक विशाल उल्कापिंड टकराया. नाम था-थीया (Theia). करीब मंगल ग्रह के आकार का यह आकाशीय पिंड उस उल्का से तो सौ गुना बड़ा था जिसके पृथ्वी से टकराने पर डायनासोर का अस्तित्व मिट गया. पृथ्वी से हुई इस महा-टक्कर से कई टुकड़े अंतरिक्ष में बिखर गए. वैज्ञानिक मानते हैं कि उन्हीं में से एक हमारा चंद्रमा गुरुत्वाकर्षण के कारण पृथ्वी के आसपास चक्कर लगाने लगा. यदि ये सच साबित हो गया, तो पृथ्वी और चंद्रमा के डीएनए में कुछ समानताएं पकड़ में आ ही जाएंगी.

चंद्रयान 2, चांद, अंतरिक्ष, विक्रम लैंडर,  Chandrayaan-2 अब बहुत जल्द ही चांद के रहस्यों से पर्दा उठ जाएगा और तमाम नई चीजें हमारे सामने आएंगी

चांद से खुलेंगे पृथ्वी के रहस्य

यदि Planet crash theory सही है, तो चंद्रमा Chandrayaan-2 मिशन के जरिए इसकी गवाही देगा. क्योंकि पृथ्वी ने अपने जन्म के निशान खो दिए हैं, जबकि चंद्रमा पर ये दूर से ही नजर आते हैं. चंद्रमा पर उल्कापिंड टकराने के निशान आज भी क्रेटर के रूप में देखे जा सकते हैं. जबकि पिछले करोड़ों साल के दौरान पृथ्वी पर बाढ़, बारिश, तेज हवा, भूकंप, और ज्वालामुखी के कारण धरती का स्वरूप बदलता गया. यहां तक कि उपरी सतह भी पाताल में चली गई. जबकि चंद्रमा पर पृथ्वी जैसी वातारवरण नहीं होने के कारण वहां कोई भौगोलिक बदलाव नहीं हुआ. और वो अभी भी जस का तस बना हुआ है. यदि चंद्रमा पृथ्वी का अंश है, तो मान लीजिए कि पृथ्वी की सबसे पुरानी फोटो कॉपी वहां सुरक्षित है. ऐसे में चंद्रयान मिशन की भूमिका इस उपग्रह और हमारे ग्रह का अतीत ढूंढने के लिहाज से महत्वपूर्ण मानी जा रही है. संभव है कि इससे पूरे सौर मंडल के निर्माण की थ्योरी को समझने में भी मदद मिले.

चंद्रमा के दक्षिण ध्रुव तक पहुंचना क्यों जरूरी है?

चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव को लेकर वैज्ञानिकों में खास जिज्ञासा है. उत्तरी ध्रुव की तुलना में चंद्रमा का यह हिस्सा अधिक छाया में रहता है. ऐसे में उम्मीद है कि यहां पर वेकैमिकल आज भी सुरक्षित रूप से मौजूद हैं, जो जिनका पृथ्वी से निशान मिट गया. सूर्य की रोशनी से दूर रहने वाला यह इलाका अपने भीतर पानी के भी भंडार समेटे हो सकता है. (चंद्रमा पर पानी होने के सबूत तो चंद्रयान-1 ने ही खोज लिए थे). दक्षिण ध्रुव के ठंडे क्रेटर्स (गड्ढों) में प्रारंभिक सौर प्रणाली के लुप्तो जीवों के अंश भी मिल सकते हैं.

टेक्नोलॉजी की परख और चांद के कैमिकल-खजाने पर नजर

इसरो की नजर में Chandrayaan-2 मिशन अंतरिक्ष के लिए जरूरी टेक्नोलॉजी को परखने मौका भी देगा. चंद्रयान-2 के जरिए वैज्ञानिक खोज एक नए युग में पहुंचेगी. इससे अंतरिक्ष के प्रति हमारी समझ बढ़ेगी, साथ ही पूरे अंतरिक्ष मिशन के जरिए दुनिया में आपसी तालमेल बढ़ेगा और आने वाली पीढ़ी वैज्ञानिक खोज के प्रति प्रेरित होगी.

इसके अलावा चंद्रमा पर अनमोल खजाना मौजूद है, जिस तक पहुंचने का रास्ता यह मिशन बता सकता है. यह कोई हीरो-मोती, सोना-चांदी नहीं, बल्कि बेशकीमती कैमिकल हैं. है. धरती पर तेजी से खत्म होते ऊर्जा संसाधनों को देखते हुए भारत चंद्रमा की ओर आशा भरी नजरों से देख रहा है. चंद्रमा पर मिलने वाली हीलियम-3 के उदाहरण से ही समझ लीजिए. यह कैमिकल पृथ्वी पर तो नहीं है, लेकिन चंद्रमा पर यह भरपूर मात्रा में है. इसरो चेयरमैन के सिवन ने इस संबंध में कहा कि, 'जिस देश के पास ऊर्जा के इस स्रोत को चांद से धरती पर लाने की क्षमता होगी, वह इस पूरी प्रक्रिया पर राज करेगा. मैं केवल इस प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बनना चाहता हूं बल्कि इसका नेतृत्व करना चाहता हूं.'

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