New

होम -> सियासत

 |  5-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 04 मार्च, 2016 02:10 PM
पीयूष द्विवेदी
पीयूष द्विवेदी
  @piyush.dwiwedi
  • Total Shares

2004 में गुजरात में हुए इशरत जहाँ एनकाउंटर मामले पर विवाद थमने का नाम लेता नहीं दिख रहा. हालत ये है कि रोज इस मामले में कोई न कोई नया खुलासा सामने आता जा रहा है. इसी सन्दर्भ में अगर इशरत जहां एनकाउंटर मामले पर एक नज़र डालें तो 15 जून 2004 को अहमदाबाद में एक मुठभेड़ में इशरत जहां और उसके तीन साथी जावेद शेख, अमजद अली और जीशान जौहर को गुजरात पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराया गया था. पुलिस ने इशरत को लश्कर का आतंकी बताया था और कहा था कि उसके निशाने पर गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी थे. हालांकि इस एनकाउंटर के बाद इसकी सत्यता को लेकर जब कई तरफ से सवाल उठने लगे तो गुजरात उच्च न्यायलय ने मजिस्ट्रेट एसपी तमांग को इसकी जांच सौंपी, जिन्होंने अपनी जांच में इस एनकाउंटर को फर्जी पाया.

इसकी जांच के लिए विशेष जांच दल का भी गठन हुआ, जिसकी रिपोर्ट के आधार पर कई लोगों के खिलाफ एफआईआर तो दर्ज की गई लेकिन मामले की स्थिति पूरी तरह से साफ़ न होने के कारण आखिरकार 2011 में पूरा मामला सीबीआई के सुपुर्द कर दिया गया. सीबीआई ने कई गिरफ्तारियां कीं, जिनमे एनकाउंटर की अगुवाई करने वाले डीजी वंजारा की गिरफ़्तारी भी शामिल थी. सीबीआई की जांच के दौरान उसकी देश के इंटेलिजेंस ब्यूरो से तनातनी का पूरा एक अलग ही इतिहास रहा है. कुल मिला-जुलाकर सन 2013 तक सीबीआई की जांच की दिशा यही सिद्ध करने का प्रयास कर रही थी कि यह एनकाउंटर फर्जी था और इसमे गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी व गृहमंत्री अमित शाह की बड़ी भूमिका थी. लेकिन 2014 में पहले सीबीआई ने अमित शाह और फिर डीजी वंजारा दोनों को इस मामले से क्लीन चिट दे दी.

अब इसी मामले में इशरत जहां को लेकर खुलासा होने से कांग्रेस पर यह सवाल उठने लगा है कि कहीं उसने अपने शासन के दौरान इशरत जहाँ एनकाउंटर को फर्जी सिद्ध कर नरेंद्र मोदी की छवि ख़राब करने व उन्हें फंसाने की साजिश तो नहीं रची थी ? अभी कुछ समय पहले अमेरिकी जेल में बंद आतंकी हेडली ने 26/11 मामले में अपनी ऑनलाइन गवाही में यह स्पष्ट किया था कि इशरत जहां लश्कर की आतंकी थी. हेडली के इस खुलासे के बाद न केवल गुजरात पुलिस की बात सच्ची सिद्ध हो गई बल्कि इशरत को निर्दोष और एनकाउंटर को फर्जी बताकर भाजपा को घेरने वाले कांग्रेस, जेडीयू आदि राजनीतिक दल भाजपा के निशाने भी पर आ गए. जेडीयू नेता और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जिन्होंने इशरत को बिहार की बेटी तक कह दिया था, झट अपने उस बयान से पलटी मार गए.

कांग्रेस भी पशोपेश की हालत में नज़र आने लगी. लेकिन इन्हीं सब के बीच इस विवाद ने और बड़ा रूप तब ले लिया जब हाल ही में गृह मंत्रालय के दो पूर्व अधिकारीयों के बयान आए. ऐसे बयान जिन्होंने पूर्व गृहमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता पी चिदंबरम को सीधे-सीधे सवालों के घेरे में ला दिया है. गृह मंत्रालय के पूर्व अवर सचिव आरवीएस मणि ने यह खुलासा किया है कि उस दौर में इशरत और उसके साथियों को आतंकी न बताने का उनपर गृह मंत्रालय की तरफ से दबाव डाला गया था. चूंकि मणि ने इशरत मामले में गुजरात उच्च न्यायलय में पहला हलफनामा दाखिल किया था. इस हलफनामे में इशरत जहां को आतंकी बताया गया था लेकिन, दो महीने के भीतर ही इस हलफनामे को बदलकर दूसरा हलफनामा दायर किया गया जिसमे इशरत को निर्दोष माना गया. मणि के अनुसार इस दूसरे हलफनामे से संतुष्ट न होने के बावजूद उन्हें राजनीतिक दबाव के चलते इसपर हस्ताक्षर करना पड़ा. इसके अतिरिक्त पूर्व गृह सचिव जीके पिल्लई ने यह स्पष्ट किया है कि तत्कालीन गृहमंत्री पी चिदंबरम ने दूसरा हलफनामा खुद बदलवाकर दायर करवाया था. दूसरे हलफनामे में क्या लिखा जाएगा यह भी चिदंबरम ने ही बताया था. इस मामले पर उनसे कोई राय नहीं ली गई. अब गृह मंत्रालय के इन पूर्व अधिकारियों के इन बयानों के बाद भाजपा पूरी तरह से पी चिदम्बरम पर हमलावर हो गई है और चिदंबरम मुश्किल में घिरते नज़र आ रहे है.

चिदंबरम के बेटे कार्ति चिदंबरम की विदेशों में मौजूद अकूत संपत्ति के खुलासे ने भी उनकी मुश्किलें और बढ़ाने का काम किया है. इशरत जहाँ मामले में सर्वोच्च न्यायालय के अधिवक्ता एमएल शर्मा ने सर्वोच्च न्यायालय में चिदंबरम के खिलाफ यह जनहित याचिका दायर की है कि पूर्व गृहमंत्री ने सर्वोच्च न्यायालय और गुजरात उच्च न्यायालय को गलत जानकारी दी थी, इसलिए उनपर अवमानना का मामला चलाया जाय. सर्वोच्च न्यायालय इसपर सुनवाई को तैयार भी हो गया है जो कि चिदंबरम के लिए एक अलग ही चिंता का विषय है. दरअसल 26/11 आतंकी हमले के बाद चिदंबरम को देश का गृहमंत्री बनाया गया और यह संभवतः उनके बेहतर प्रबंधन का ही असर था कि 26/11 के बाद लगभग दो-ढाई वर्षों तक देश में कोई बड़ा आतंकी हमला नहीं हुआ. अतः कह सकते हैं कि बतौर गृहमंत्री चिदंबरम का कार्यकाल इस देश के सुरक्षात्मक प्रबंधन की दृष्टि से उत्तम रहा. लेकिन, आज अगर उनपर इस तरह के आरोप लग रहे हैं तो उन्हें ससाक्ष्य इनका उत्तर देना चाहिए. संभव है कि तत्कालीन दौर में उन्हें ये कदम अपने राजनीतिक दल के दबाव में उठाने पड़े हों तो उन्हें इसका भी स्पष्ट रूप से खुलासा करना चाहिए. अन्यथा इसमे कोई संदेह नहीं कि आने वाला समय उनके लिए बेहद मुश्किलों भरा रहने वाला है.

बहरहाल, इन सब खुलासों के बाद एक बात तो देश की समझ आ ही गई होगी कि इस देश में अपना हित साधने के लिए नेताओं द्वारा नैतिक पतन की पराकाष्ठा को पार करने में भी कोई हिचक नहीं दिखाई जा रही. देश ने यह भी समझ लिया होगा कि तथाकथित धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दलों द्वारा धर्मनिरपेक्षता की आड़ में किस हद तक समुदाय विशेष के तुष्टिकरण की कोशिश की जाती रही है. इशरत जहां जिसके एनकाउंटर के समय ही पुलिस ने ये कह दिया था कि वो आतंकी है, उस समय पुलिस पर भरोसा करने की बजाय हमारे कांग्रेस आदि धर्मनिरपेक्ष दल के नेताओं के ह्रदय से इशरत और उसके साथियों के प्रति संवेदना का सोता फूट पड़ा कि जैसे कोई बड़ी शहादत हो गई हो! यह और कुछ नहीं सिर्फ मुस्लिम तुष्टिकरण की एक वाहियात और निर्लज्ज राजनीति थी और आज जब इसीका पर्दाफाश हो रहा हो तो इशरत को बिहार की बेटी कहने वाले से लेकर उसके लिए तरह-तरह से विलाप करने वाले तक सारे हुक्मरान अवसर के हिसाब से चेहरे बदलने की अपनी चिर-परिचित कला का भौंडा प्रदर्शन करते हुए, अपने बयानों से पीछे हटने में लगे हैं.

खैर! देश यह भी देख-समझ रहा ही है और समय आने पर इसका भी जवाब जरूर देगा.

लेखक

पीयूष द्विवेदी पीयूष द्विवेदी @piyush.dwiwedi

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय