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Updated: 15 जुलाई, 2016 06:11 PM
अभिरंजन कुमार
अभिरंजन कुमार
  @abhiranjan.kumar.161
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भारत सरकार आतंकवाद और अलगाववाद से कैसे लड़ेगी, इन दस सवालों पर ग़ौर किए बिना?

1. क्या उसके पास रक्तहीन क्रांति के ज़रिए पाकिस्तान के टुकड़े-टुकड़े कर डालने की कोई समयबद्ध योजना है? अगर नहीं, तो पाकिस्तान सरकार से अगले 70 साल और बात करते रहिए, बसें और ट्रेनें चलाते रहिए, नाती-नातिनों की शादी में शरीक होते रहिए, कुछ हासिल नहीं होने वाला है. पाकिस्तान के जो आतंकवादी एक्सपोज़ हो जाते हैं, अक्सर वह उन्हें "नॉन-स्टेट एक्टर्स" कहकर बच निकलने की कोशिश करता है, लेकिन पाकिस्तान में असली आतंकवादी तो वे "स्टेट एक्टर्स" हैं, जिन्हें वहां सेना, आईएसआई और सरकार कहते हैं. वे लोग मूर्ख हैं, जो अब तक भी यह नहीं समझ पाए हैं कि पाकिस्तान एक आतंकवादी देश है और आतंकवाद ही उसका राष्ट्रीय धर्म है.

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 नवाज शरीफ

2. क्या उसके पास पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में हो रहे निरंतर दमन और वहां के नागरिकों के असंतोष को उजागर करने की कोई नीति है? हमारे कश्मीर में कुछ नहीं होता, फिर भी वह रोज़ मीडिया की सुर्खियों में रहता है, लेकिन उनके कब्जे वाले कश्मीर में सेना रोज़ सौ-पचास लोगों को रौंद भी जाए, उनकी बहन-बेटियों का सामूहिक बलात्कार भी कर ले, तो कहीं कोई ख़बर नहीं होती. क्यों? वहां हो रहे दमन की ख़बरें भी बड़े पैमाने पर भारतीय और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया की सुर्खियां बने, इसके लिए भारत सरकार के स्तर से क्या रणनीति है?

3. क्या उसके पास हमारे कश्मीर के उन आतंकी सरगनाओं पर नकेल कसने की कोई योजना है, जिन्हें अलगाववादी नेता कहकर सम्मानजनक ओहदा दे दिया गया है? वे प्रतिदिन घाटी में हिंसा और अशांति को हवा दे रहे हैं, उनकी वजह से बेकसूर लोग मारे जा रहे हैं, मासूम बच्चे और नौजवान गुमराह हो रहे हैं, आम जनजीवन अस्त-व्यस्त हो रहा है, पर हमारा कोई कानून उन्हें जेल में ठूंसे रखने और फांसी पर लटकाने में क्यों सक्षम नहीं है? हम पाकिस्तान से तो अपेक्षा रखते हैं कि वह हाफ़िज सईद और मसूद अजहर पर कार्रवाई करे, लेकिन हम अपने कश्मीर में बैठे इन अलगाववादी नेताओं पर कब कार्रवाई करेंगे, जो वस्तुतः आतंकवादी ही हैं?

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मोदी-शरीफ
4. क्या उसके पास ऐसे कानून बनाने का माद्दा है, जिनमें आतंकवादियों और अलगाववादियों के मानवाधिकार सीज़ कर लिए जाएं. आम नागरिकों के मानवाधिकारों की प्रतिदिन हत्या हो, और आतंकवादियों और अलगाववादियों के मानवाधिकारों के लिए हाय-तौबा मचाई जाएगी? यह कहां का इंसाफ़ है भाई?

5. क्या उसमें देश की एकता और अखंडता को नुकसान पहुंचाने वाले मुद्दों पर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नियंत्रित करने हेतु कठोर कानून लाने का दम है? अगर नहीं तो, हमारी छाती पर चढ़कर कोई भी नंगा नाच कर जाएगा और हम लोकतंत्र और संविधान की कॉपियां बांचते ही रह जाएंगे.

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 हाफिज सईद

6. क्या उसके पास देश में धार्मिक कट्टरता के कारोबारियों पर लगाम कसने के लिए कोई कड़ा कानून और ठोस नीति है? क्योंकि दुनिया में अन्य कहीं आतंकवाद की चाहे जो भी वजहें हों, लेकिन भारत में आतंकवाद इसी कट्टरता का बाय-प्रोडक्ट है. अगर इस कट्टरता को काबू में नहीं किया जाएगा, तो आतंकवाद को कौन शूरवीर काबू में कर सकता है?

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 श्रीनगर में पत्थरबाजी करती भीड़

7. क्या उसके पास गुमराह किए जा रहे बच्चों और नौजवानों को बचाने के लिए पुरातनपंथी शिक्षा की जगह आधुनिक मानवतावादी शिक्षा लागू करने की कोई साहसिक योजना है? अगर नहीं, तो हमारी अगली पीढ़ियां भी आतंकवादियों को धर्म के रास्ते पर चलने वाला मसीहा और स्वाधीनता-सेनानी मानती रहेंगी. हम जपते रहेंगे कि वे गुमराह हैं और हमारे जाप व प्रलाप से बेपरवाह वे आतंकवादियों के हमराह बने रहेंगे.

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 मदरसे में गुमराह किए जा रहे मासूम

8. क्या उसकी ख़ुफिया एजेंसियों की उन बुद्धिजीवियों और पत्रकारों पर नज़र है, जो सालों से आईएसआई का पैसा खा रहे हो सकते हैं, जो अक्सर पाकिस्तान आते-जाते हैं और जिनका कश्मीरी आतंकवादियों और अलगाववादियों के साथ भी किसी न किसी बहाने उठना-बैठना होता रहता है? अगर नहीं, तो यह बौद्धिक बिरादरी और पत्रकारों की जमात उसके सारे प्रयासों की हवा निकालती रहेगी. वह दो कदम आगे बढ़ना भी चाहेगी, तो फिजूल का हंगामा खड़ा कर ये उसे चार कदम पीछे खींच लाएंगे. उसे ऐसे बुद्धिजीवियों और पत्रकारों पर सिर्फ़ भारत और पाकिस्तान में ही नहीं, दुनिया के दूसरे मुल्कों में भी नज़र रखनी होगी, कि वहां वे किनसे मिलते-जुलते हैं और क्या-क्या गुल खिलाते हैं?

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 जेएनयू में उमर खालिद और कन्हैया कुमार

9. क्या उसमें यह कबूल करने का साहस है कि भारत में मुख्यतः दो ही तरह के आतंकवाद हैं- एक वामपंथी आतंकवाद, जिसे हम नक्सलवाद या माओवाद कहते हैं और दूसरा इस्लामिक आतंकवाद, जिसे पाकिस्तान, द्विराष्ट्रवादियों और कट्टर धार्मिक सोच रखने वाले व्यक्तियों और समूहों का समर्थन प्राप्त है. अगर आप सच्चाई पर परदा डालते रहेंगे, तो समस्या का हल कभी नहीं निकलेगा. अगर आप नक्सलवाद और माओवाद को खुलकर वामपंथी आतंकवाद की संज्ञा नहीं देंगे, तो देश के सारे वामपंथी हिंसा की हर घटना पर एक निंदा जारी करके अपने मानसपुत्रों की करतूतों से यूं ही मुक्त हो लिया करेंगे और अगली घटना की बुनियाद उसी दिन से पड़ना शुरू हो जाया करेगी. इसी तरह, आप अगर पाकिस्तान, द्विराष्ट्रवादियों और कट्टर धार्मिक सोच रखने वाली शक्तियों द्वारा प्रायोजित आतंकवाद को खुलकर इस्लामिक आतंकवाद नहीं मानेंगे, तो ये लोग भी हर ऐसी आतंकवादी हिंसा के बाद ऊपरी मन से निंदा-प्रस्ताव पास करके अपनी ज़िम्मेदारियों से मुक्त हो लिया करेंगे और उसी दिन से अगली घटना की बुनियाद पड़नी शुरू हो जाया करेगी. यहां प्रश्न यह भी है कि जब आप इसे इस्लामिक आतंकवाद कहते हैं, तो लोगों को यह क्यों नहीं समझा पाते कि इसका मतलब हर मुसलमान को आतंकवादी मानना नहीं, बल्कि यह रेखांकित करना है कि इस आतंकवाद की विचारधारा को इस्लामिक कट्टरपंथियों से पोषण प्राप्त होता है?

10. कुल मिलाकर, क्या भारत सरकार के पास आतंकवादियों और आतंकवादियों का समर्थन करने वाली सोच को कुचल देने का माद्दा है? अगर नहीं, तो पालते रहो अपने पेट में जोंक और इस लोक-तंत्र को जोंक-तंत्र बन जाने दो.

लेखक

अभिरंजन कुमार अभिरंजन कुमार @abhiranjan.kumar.161

लेखक टीवी पत्रकार हैं.

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