संजय जोशी का गुजरात दौरा किस आग का धुआं है?
तीन साल पहले ही जोशी के गुजरात जाने पर एक तरह से पाबंदी लगा दी गई थी. बाद के दिनों में जब भी वो गए उनका दौरा बेहद निजी मुलाकातों तक सीमित रहा.
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संजय जोशी कुछ दिनों से पोस्टर वाले नेता बन गए हैं. अक्सर कहीं न कहीं उनके पोस्टर लगे देखने को मिल जाते हैं. अभी वो गुजरात पहुंचे भी नहीं थे कि उनके समर्थन में पोस्टर लगा दिए गए.
ये पोस्टर भी कहीं और नहीं बल्कि मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल के विधानसभा क्षेत्र घाटलोडिया और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के इलाके नारायणपुरा में.
पहले पोस्टर पहुंचे
संजय जोशी वीएचपी नेता प्रवीण तोगड़िया के बेटे की शादी में निकोल पहुंचे थे. रास्ते में ही मीडिया और उसके सवालों से रू-ब-रू होना पड़ा. हमेशा की तरह इस बार भी जोशी से पोस्टर को लेकर सवाल पूछे गए और उन्होंने अनभिज्ञता जता दी, "मुझे इन पोस्टरों के विषय में कोई जानकारी नहीं है. मैं केवल बीजेपी का एक साधारण कार्यकर्ता हूं."
क्या पोस्टर रंग लाएगा? |
हर बार यही होता है. खुद को बीजेपी का साधारण कार्यकर्ता बताते हुए जोशी हल्का सा मुस्कुरा देते हैं. फिर पोस्टर की बात पर चर्चा थम जाती है. वैसे भी पोस्टरों की उम्र तो इतनी ही होती है. इतने में जो असर दिखा दे यही मायने रखता है.
आनंदीबेन और अमित शाह के इलाके में लगे पोस्टरों पर संजय जोशी की तस्वीर लगी है और नारा लिखा है: 'संजय जोशी लावो, बीजेपी बचावो'
2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भी ऐसे पोस्टर जगह जगह लगाए गए थे - और सभी में नरेंद्र मोदी परोक्ष रूप से टारगेट किया गया था.
कौन हैं संजय जोशी
सीधे सीधे तो उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के परम विरोधी के तौर पर देखा जाता है. मोदी से खटपट के बाद उन्हें गुजरात से दिल्ली भेज दिया गया था. जब मोदी गुजरात से दिल्ली पहुंचने की तैयारी कर रहे थे, उसी वक्त उन्होंने जोशी को हटाने की मांग रखी. 2012 में मुंबई में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की मीटिंग में मोदी ने तब तक कदम नहीं रखे जब तक कि जोशी का इस्तीफा नहीं ले लिया गया.
मूल रूप से नागपुर के रहने वाले जोशी ने मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की और उसके बाद सीधे संघ से जुड़ गए. 90 में उन्हें महाराष्ट्र से गुजरात भेजा गया जहां वो एक दशक से ज्यादा समय तक रहे. 95 में बीजेपी सरकार बनने पर उन्हें संगठन सचिव बनाया गया.
80 के दशक में जोशी और पूर्व बीजेपी अध्यक्ष नितिन गडकरी नागपुर में आरएसएस की एक ही शाखा में काम करते थे. आरएसएस के साथ साथ जोशी बीजेपी के कार्यकर्ताओं के बीच भी खासे लोकप्रिय हैं. संगठन के कामों में उनकी मिसाल दी जाती है.
मुलाकातों के मायने
तीन साल पहले ही जोशी के गुजरात जाने पर एक तरह से पाबंदी लगा दी गई थी. बाद के दिनों में जब भी वो गए उनका दौरा बेहद निजी मुलाकातों तक सीमित रहा.
इस बार तो जोशी को राजभवन से न्योता मिला और फिर उन्होंने राज्यपाल ओपी कोहली के साथ लंच किया. तोगड़िया के यहां चीफ मिनिस्टर आनंदीबेन पटेल से भी उनकी मुलाकात हुई. दोनों नेताओं में 10-12 मिनट तक बातचीत भी हुई.
आनंदीबेन के अलावा इस बार जोशी कई बीजेपी नेताओं और पुराने सहयोगियों से भी खुल कर मिलते देखे गए. खबर ये भी आई कि केंद्र की ओर से खुफिया अफसरों को जोशी की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए भी कहा गया था. वैसे से जोशी ने काफी हद तक मीडिया से दूरी बनाए रखने की कोशिश की.
जोशी ने गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल से उनके घर जाकर मुलाकात की. केशुभाई से जोशी की ये मुलाकात करीब 20 मिनट तक चली होगी.
वक्त सबका बदलता है! |
हार्दिक पटेल के आंदोलन के पीछे सबसे पहले आरएसएस का हाथ माना गया. चर्चा तो ये भी रही कि हार्दिक के जरिये प्रवीण तोगड़िया को मेनस्ट्रीम में लाने की पर्दे के पीछे कोई कवायद चल रही है. ये शोर थमा जब निकाय चुनावों के नतीजे आए - और अपने घर में ही हार्दिक कोई चमत्कार नहीं दिखा पाए.
वैसे निकाय चुनावों में बीजेपी ने शहरों में तो अपनी लाज बचा ली लेकिन गांवों में उसे भारी नुकसान उठाना पड़ा. जोशी की गुजरात में तगड़ी पैठ है, ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी को मजबूत करने के लिए जोशी की मदद ली जा सकती है.
संजय जोशी और केशुभाई पटेल के साथ मोदी की घोषित दुश्मनी है - और तोगड़िया के साथ अघोषित शीतयुद्ध. जोशी और इन नेताओं की मुलाकात राजनीतिक के हिसाब से किसी भी तरह हल्के में नहीं ली जा सकती.
वैसे तो आनंदी बेन से मुलाकात रस्म अदायगी दिखती है लेकिन वो भी यूं ही नहीं है. ऊपर से राजभवन में लंच. एक साथ इतनी सारी बातें राजनीति में यूं ही नहीं हो सकतीं.
क्या मोदी ने कड़वाहट भूल कर अब जोशी के साथ रिश्तों में यू टर्न ले लिया है? या संघ का इतना दबाव है कि मोदी को अपने तेवर कम करने पड़ रहे हैं? आखिर बिहार की शिकस्त के बाद पुराने दिग्गजों की अंगड़ाई भी तो संघ के इशारे पर ही थी.
क्या जोशी का ये दौरा बीजेपी के अंदर धधकने जा रही किसी आग का धुआं है? क्या जोशी की ताजा मुलाकातों को मेनस्ट्रीम में उनकी वापसी के संकेत के तौर पर लिया जाना चाहिए? लगता है पोस्टर इस बार ज्यादा असरदार साबित होने जा रहे हैं!
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