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Updated: 04 मई, 2016 06:09 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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जितना बवाल केजरीवाल के लालू से गले मिलने पर हुआ तकरीबन उतना ही कन्हैया के पैर छूने पर. केजरीवाल ने तो सफाई दे दी कि लालू उन्हें खींच कर गले पड़ गये, लेकिन कन्हैया ने ऐसा कुछ नहीं कहा. वैसे भी कन्हैया से ऐसी अपेक्षा है ही क्यों? आखिर उन्हें भी तो अपने भविष्य की फिक्र है - है कि नहीं?

पटना में पलक पांवड़े

कन्हैया कुमार पर जब पटना एयरपोर्ट पर उतरे तो उन्हें रिसीव करने के लिए जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार और कुछ आरजेडी कार्यकर्ता वहां पर पहले से मौजूदा थे. कन्हैया की सुरक्षा में दो डिप्टी एसपी सहित सौ पुलिसकर्मी ड्यूटी पर लगाए गये थे. पूरे लाव जब कन्हैया का काफिला निकला तो जगह जगह लोगों को मुख्यमंत्री के काफिले जैसी गफलत हो रही थी.

लालू से आशीर्वाद

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को कन्हैया ने भले ही इंतजार कराया लेकिन लालू के मामले में ऐसा नहीं किया. वो नीतीश के यहां बाद में गये, लालू के घर पहले पहुंचे.

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कन्हैया जब लालू का पैर छूकर विदा लिए तो लालू ने ट्वीट कर बताया कि आशीर्वाद में उन्होंने क्या दिया. लालू ने कहा, "कन्हैया को असंवैधानिक, फासीवादी, जातिवादी और पाखंडी तत्वों से लड़ने के लिए महत्वपूर्ण जानकारी दी"

करीब 45 मिनट की मुलाकात के बाद कन्हैया लालू के घर से मुस्कुराते हुए निकले और मीडिया से बात की. उसके बाद नीतीश से मिलने पहुंचे - और करीब डेढ़ घंटे रहे. जब नीतीश के घर से निकले तो उनका चेहरा देखने लायक था. बाहर इंतजार कर रहे मीडिया वालों को नजरअंदाज कर कन्हैया सीधे गाड़ी में बैठे और निकल लिए.

कन्हैया के चेहरे की खामोशी लोगों को समझ में नहीं आई. बाद में जब जनता दरबार के बाद नीतीश ने मीडिया से बातचीत में कन्हैया के बयान का जिक्र किया तो फिर से कन्हैया के चेहरे के भाव पढ़ने की कोशिशें हुईं.

शराबबंदी पर कन्हैया के बयान से नीतीश खासे खफा नजर आए. देश से आजादी नहीं बल्कि देश में आजादी की मांग करने वाले कन्हैया ने शराब को भी आजादी से जोड़ते हुए कहा था कि फ्रीडम के हिसाब से शराबबंदी विरोधाभास है.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि शराबबंदी के मसले पर वो कन्हैया के विचार से बिलकुल असहमत हैं. नीतीश ने कहा कि शराब पीना और बेचना कोई मौलिक अधिकार नहीं है. नीतीश का कहना रहा कि जानकारी के अभाव में कन्हैया कुछ से कुछ कह गये.

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कन्हैया को कितनी मिलेगी देश के अंदर आजादी...

साथ ही, कन्हैया ने बिहार में छात्रसंघ न होने को लेकर भी राज्य सरकार को निशाने पर लिया. वैसे कन्हैया का कहना था कि इसके लिए सिर्फ नीतीश को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता क्योंकि बिहार में 20 साल से छात्रसंघ नहीं है और ये सिलसिला नीतीश के मुख्यमंत्री बनने से पहले से चला आ रहा है. इस तरह से कन्हैया ने नीतीश के साथ साथ इस मसले पर लालू को भी लपेटा.

कितने पास, कितने दूर

आखिर कन्हैया राजनीति के कितने करीब और कितने दूर हैं. देशद्रोह के आरोप में जेल भेजे गये कन्हैया ने छूटते ही जो भाषण दिया कांग्रेस नेता शशि थरूर ने लिख कर उसकी तारीफ की. सीताराम येचुरी ने भी संकेत दिये कि वो विधानसभा चुनावों में वाल दलों के लिए प्रचार कर सकते हैं. कन्हैया ने इस पर गोलमोल बातें की और कहा कि वो नेता नहीं बल्कि टीचर और एक्टिविस्ट बनना चाहेंगे.

चुनाव प्रचार के लिए कन्हैया को पार्टी ने तो नहीं बुलाया लेकिन व्यक्तिगत रिश्तों खातिर कन्हैया केरल जरूर जाने वाले हैं. जेएनयू के ही रिसर्च स्कॉलर मोहम्मद मोहसिन सीपीआई के टिकट पर केरल की पट्टाम्बी सीट से चुनाव मैदान में हैं. कन्हैया के रूम मेट रह चुके मोहसिन उनके जेल में रहते आवाज बुलंद किये रहे. इसके अलावा कांग्रेस के पोस्टरों में कन्हैया का चेहरा जरूर दिखा था. गुवाहाटी में लगे एक बड़े से होर्डिंग में कन्हैया कुमार को सलाखों के पीछे दिखाया गया था.

तब कन्हैया की तारीफ में थरूर ने लिखा था कि अगर कन्हैया तीस साल के होते तो केरल से राज्य सभा सीट के जरिये उन्हें राष्ट्रीय मंच पर पहुंचा दिया जाता. कन्हैया के तीस साल पूरे होने में अभी करीब दो साल बाकी हैं.

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लेकिन क्या सीपीआई कन्हैया को इतना जल्दी इतना तवज्जो देगी? ये सवाल तब भी उठा था - अब भी बरकरार है. कन्हैया का लगाव सीपीआई से है - उसी की छात्रशाखा ऑल इंडिया स्टुडेंट फेडरेशन के सदस्य हैं.

कन्हैया को छात्र संगठनों की ओर से बुलावा तो मिला है और वो जहां तहां वो दौरा भी कर रहे हैं. लेकिन उनकी पार्टी उन्हें कोई अहमियत दे रही हो अब तक तो ऐसा नहीं लगता.

कन्हैया भी इस बात को जरूर समझ रहे होंगे - और इसीलिए वो अपनी दूरगामी सोच और किसी खास रणनीति के तहत चल रहे होंगे. कन्हैया अभी केजरीवाल नहीं बन पाए हैं कि लालू से मुलाकात को लेकर सफाई दें. कन्हैया बिहार के रहने वाले हैं और वो बखूबी समझते हैं कि और कहीं नहीं तो बिहार में मौका तो बन ही सकता है. युवा नेताओं को लेकर सीपीआई के अपने रिजर्वेशन हो सकते हैं - लेकिन लालू और नीतीश के लिए तो कन्हैया इसलिए भी पसंदीदा हो सकते हैं क्योंकि वो सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को टारगेट करते हैं.

अगर कन्हैया ने अपने लिए सही इंतजाम नहीं किये तो बुधिया की तरह लाइमलाइट में आने के बाद भी राजनीति के मैराथन में दौड़ते हुए भी पिछड़ जाएंगे.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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