New

होम -> सियासत

 |  3-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 14 जुलाई, 2015 06:42 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
  • Total Shares

कभी 'परकटी' तो कभी 'सांवली'. महिलाओं को लेकर शरद यादव का नजरिया हमेशा विवादों में रहा है. संसद में चाहे महिला आरक्षण बिल पर चर्चा हो या रेप को लेकर सख्त कानूनों की बात चल रही हो, जेडीयू अध्यक्ष के बयानों पर हर बार बवाल मचा है.

कैसे बदला नजरिया

अचानक शरद यादव के नजरिये में बदलाव देखने को मिल रहा है. अब वो महिलाओं के हक में बात करने लगे हैं.

शरद के नजरिये में ये तब्दीली सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के बाद आई है जिसमें कहा गया है कि बिन ब्याही मां भी अपने बच्चे के पिता की सहमति के बगैर उसकी अकेली अभिभावक बन सकती है.

इस सिलसिले में शरद यादव का ताजा बयान गौर फरमाने लायक है. शरद यादव कहते हैं, "मेरा विचार है कि सभी उद्देश्यों के लिए मां एकमात्र अभिभावक होनी चाहिए, इसके बावजूद कि पिता उसके साथ रह रहा हो और दोनों के बीच अच्छे संबंध हैं."

कोर्ट का वो फैसला

पहले 'द गार्जियन एंड वार्ड्स ऐक्ट' और 'हिंदू माइनॉरिटी एंड गार्जियनशिप ऐक्ट' के तहत किसी बच्चे के कानूनी संरक्षण का फैसला उसके पिता की सहमति के बिना नहीं हो पाता था. लेकिन हाल के एक फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि ऐसे मामलों में पिता की इजाजत की कोई जरूरत नहीं है. इसके साथ ही कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि मां चाहे तो हलफनामा देकर बच्चे का बर्थ सर्टिफिकेट भी बनवा सकती है.

कोर्ट ने महिलाओं को अब ये अधिकार दे दिया है कि वो चाहें तो कानूनी तौर पर बच्चे की अभिभावक हो सकती हैं. इतना ही नहीं, अगर कोई बिन ब्याही मां भी चाहे तो कानूनी तौर पर वो बच्चे को पिता के नाम से भी दूर रख सकती है.

शरद यादव के पुराने बयान

"महिला आरक्षण बिल पास करवाकर आप 'परकटी महिलाओं' को सदन में लाना चाहते हैं." ये बात जेडीयू अध्यक्ष शरद यादव ने महिला आरक्षण बिल पर चर्चा के दौरान कही थी, जिस पर खासा बवाल हुआ.

इसी साल मार्च में भी उन्होंने एक विवादित टिप्पणी की, "गांधी से लेकर लोहिया तक मेरे पास सभी के रिकॉर्ड हैं कि महिलाओं के बारे में क्या-क्या कहा गया है. सांवली महिलाओं के लिए ढेर सारे संघर्ष किए गए हैं."

बलात्कार को लेकर सख्त कानून बनाने को लेकर चर्चा के दौरान भी शरद यादव का नजरिया तकरीबन वैसा ही दिखा. उन्होंने कहा, "हममें से कौन है जिसने लड़कियों का पीछा नहीं किया है. पीछा करने और घूरने को अपराध की श्रेणी में रखने के प्रावधान का गलत इस्तेमाल हो सकता है."

लेकिन अब ये सब बीते दिनों की बात होने वाली है. महिलाओं को लेकर शरद यादव के विचार बदल गए हैं.

प्राइवेट बिल की तैयारी

बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारियों में व्यस्त शरद यादव महिलाओं को ये अधिकार देने के लिए प्राइवेट मेंबर बिल लाने की तैयारी कर रहे हैं. हालांकि, उन्होंने ये साफ नहीं किया है कि ये बिल 21 जुलाई से शुरू होने जा रहे संसद के मॉनसून सत्र में ही लाएंगे या बाद में.

जो भी हो. शरद यादव की वैचारिक तब्दीली में सुप्रीम कोर्ट प्रेरणा बना हो या फिर कोई और वजह, बात तारीफ के काबिल तो है ही. अगर किसी गलत बात के लिए किसी शख्स की आलोचना की जाती हो या विवादों में घसीटा जाता हो तो अच्छी बातों के लिए वो तारीफ का हकदार तो बनता ही है.

अब शरद यादव में आए इस बदलाव को कोई हृदय परिवर्तन बताए या फिर प्रायश्चित की संज्ञा दे डाले. ये कहने में तो कोई गुरेज नहीं ही होना चाहिए कि भले ही देर आए लेकिन दुरूस्त आए तो.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय