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Updated: 19 अगस्त, 2017 10:48 AM
संतोष चौबे
संतोष चौबे
  @SantoshChaubeyy
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अगर हम जनवरी 2017 से होने वाली घटनाओं को देखें तो हमें इसके पूरे संकेत मिलते हैं कि अमेरिका अब गुड टेरर और बैड टेरर की मानसिकता से बाहर आ रहा है.

- पहले लश्कर-ए-तैयबा के हाफिज सईद को पाकिस्तान ने अमेरिकी दबाव में जनवरी 2017 में नजरबंद किया जो अभी तक जारी है. फिर हाफिज सईद के नए संगठन तहरीक-ए-आज़ादी-जम्मू-कश्मीर को प्रतिबंधित सूची में डाला.

- फिर प्रधान-मंत्री नरेंद्र मोदी की जून 2017 में अमेरिका यात्रा के दौरान ट्रम्प प्रशासन ने जम्मू-कश्मीर के आतंकी संगठन हिज़्बुल मुजाहिदीन के संस्थापक सय्यद सलाहुद्दीन को वैश्विक आतंकवादी घोषित किया.

- जुलाई 2017 में अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट ने अपनी वार्षिक कंट्री टेररिज्म रिपोर्ट में पहली बार पाकिस्तान को भारत में आतंक फ़ैलाने वाले आतंकवादी समूहों के लिए सुरक्षित पनाहगाह माना.

- और अब उस सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए अगस्त 2017 में अमेरिका ने हिज़्बुल मुजाहिदीन को प्रतिबंधित संगठनों की सूची में डाल दिया है, जिसका सीधा मतलब है कि भारत में आतंक फैलाने वाले समूहों की वित्तीय स्थिति अब सीधे अमेरिकी निशाने पर आती जा रही है. इसके दूरगामी परिणाम होंगे क्योंकि पूरा विश्व टेरर-फंडिंग के खिलाफ एक-जुट होता जा रहा है और अमेरिका इसकी अगुवाई कर रहा है.

जनवरी 2017 से अब तक की ये पांच महत्वपूर्ण घटनाएं बताती हैं कि अमेरिका के नजरिये में बदलाव आ रहा है. इसके पहले भारत की हमेशा ये शिकायत रहती थी कि जब भी पाकिस्तान से आयत होने वाले आतंकवाद की बात आती थी अमेरिका हमेशा भारत के साथ भेदभाव करता था.

Donald Trump, America

और इसके पहले होता भी यही रहा है. पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से अमेरिकी मतलब सिर्फ हक़्क़ानी, तालिबान और उन समूहों तक सीमित रहता था जो पाकिस्तान में रहकर अफ़ग़ानिस्तान में अमेरिकी और अफ़ग़ान हितों को निशाना बनाया करते थे. वो अमेरिका के लिए बैड टेरर था. अमेरिका हमेशा पाकिस्तान को लताड़ लगाता रहता है इन आतंकवादी समूहों पर नकेल कसने के लिए और एक-पक्षीय ड्रोन हमले भी करता रहा है इनके पाकिस्तानी ठिकानों पर. और तो और पाकिस्तानी को अमेरिका से मिलने वाली वार्षिक सहायता राशि का एक बड़ा हिस्सा पाकिस्तान कैसे इन आतंकवादी समूहों पर कार्रवाई करता है पर निर्भर करता है.

जबकि भारत में पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर अमेरिका केवल जबानी कार्रवाई करता दिखा, मसलन 26/11 और पठानकोट के मुकदमे में तेजी लाई जाये और पाकिस्तान को आतंकवादी संगठनों पर लगाम कसनी चाहिए. अमेरिका इससे आगे जाकर जमीनी कार्रवाई करने से हिचकता रहा जैसे कि वो अमेरिका के लिए गुड टेरर था.

अफ़गानिस्तान पर ये व्यवस्था अभी भी बनी हुई है. लेकिन भारतीय नजरिये से महत्वपूर्ण ये है कि अमेरिका ने अब गुड टेरर व बैड टेरर में वो भेदभाव करना छोड़ दिया है जिसकी वजह से हाफिज सईद जैसा आतंकवादी जो अपने सिर पर अमेरिकी इनाम होते हुए भी पाकिस्तान में बेख़ौफ घूमा करता था और भारत विरोधी गतिविधियों को अंजाम देता रहता था वो पिछले आठ महीनों से नजरबन्द पड़ा हुआ है और हिज़्बुल मुजाहिदीन पर अमेरिकी प्रतिबन्ध के बाद अब हम उम्मीद कर सकते हैं कि अमेरिका वही दबाव पाकिस्तान पर यहां भी डालेगा.

terrorists

हम सभी जानते हैं की जमीनी स्तर पर इससे बहुत बदलाव नहीं आता है. हाफिज सईद का संगठन अभी भी अलग-अलग नामों से वहां कार्य कर ही रहा है. और तो और उसने एक रजिस्टर्ड राजनितिक दल, मिल्ली मुस्लिम लीग, भी बना लिया है. सय्यद सलाहुद्दीन और हिज़्बुल मुजाहिदीन को पाकिस्तान स्वतंत्रता सेनानी करार देता है और सलाहुद्दीन पर अमेरिकी प्रतिबन्ध के बावजूद भी अपने रुख पर कायम रहने की बात कही है.

लेकिन जिओपॉलिटिक्स में और अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में अमेरिकी समर्थन किस ओर है बड़ा मायने रखता है और ये फिलहाल भारतीय पक्ष की ओर जाता दिख रहा है. ये बड़ी बात है कि अमेरिका अब लश्कर, हिज़्बुल और जैश जैसे संगठनों को उसी नजरिये से देखता है जैसे हक़्क़ानी, तालिबान और अल-क़ाएदा को. बाकी भारत सक्षम है अपने आतंवादी गतिविधियों और आतंकवादियों से निपटने में.

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लेखक

संतोष चौबे संतोष चौबे @santoshchaubeyy

लेखक इंडिया टुडे टीवी में पत्रकार हैं।

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