जनसंख्या के मुद्दे पर राजनीतिक विस्फोट घातक न हो जाए
भारत में बढ़ती जनसंख्या को लेकर हमेशा से चिंता जताई जाती है लेकिन इस गंभीर मुद्दे पर कभी सार्थक और सटीक समाधान निकलने की कोशिश नहीं की गयी है. आज देश में इस गंभीर मुद्दे पर घोर मंथन, विचार विमर्श होना चाहिए.
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हमें अंग्रेज़ों से 1947 में आज़ादी मिली थी. धीरे-धीरे हमारा देश पूरे विश्व के पटल में आगे बढ़ता चला जा रहा है. हम जल, जमीन, आकाश तीनों जगह पर अपने देश का लोहा मनवा चुके हैं लेकिन आज संसाधनों के दबाव में और बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण और उसके फलस्वरूप इससे पैदा होने वाली समस्याओं का गुलाम बनते जा रहे हैं. ये समस्या इतनी विकट हो गयी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर लाल किले की प्राचीर से अपने भाषण में जनसंख्या विस्फोट का जिक्र करना पड़ा. उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि देश को जनसंख्या नियंत्रण पर ध्यान देने की जरूरत है. उन्होंने कहा- बढ़ती जनसंख्या देश के लिए चिंता का विषय है, जागरूकता के माध्यम से ही हम इसे नियंत्रित कर सकते हैं. भारत की आबादी जिस तेजी से बढ़ रही है, उस लिहाज से वो दिन दूर नहीं जब हमारी आबादी चीन को पार कर जाएगी.
हर साल 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस मनाया जाता है. काफी शोरगुल मचता है कि कैसे जनसंख्या पर नियंत्रण पाया जा सकता है लेकिन इस विषय पर कभी भी सीरियसली सोचा नहीं जाता है. भारत में बढ़ती जनसंख्या को लेकर हमेशा से चिंता जताई जाती है लेकिन इस गंभीर मुद्दे पर कभी सार्थक और सटीक समाधान निकलने की कोशिश नहीं की गयी है. आज देश में इस गंभीर मुद्दे पर घोर मंथन, विचार विमर्श होना चाहिए. जनसंख्या नियंत्रण को लेकर देश में एक मत का निर्माण होना चाहिए कि कैसे देश में सीमित संसाधनों के बीच बढ़ती जनसंख्या पर नकेल कसा जाए. लेकिन सटीक और सधी नीति के बजाय कुछ ऐसे भी लोग हैं जो बढ़ती जनसंख्या को धार्मिक रंग देने की कोशिश भी करते हैं. जहां आज इसपर ठोस नीति की जरुरत महसूस हो रही है, वहीं इसके बदले राजनीति भी हो रही है. यहां समझना जरुरी है कि जनसंख्या विस्फोट इस देश की बहुत बड़ी समस्या बनती जा रही है. हमें ये जानना भी जरुरी है कि यह एक सामाजिक समस्या है जिसका न किसी धर्म से कोई संबंध है और न ही राजनीति से. समस्या कठिन है. समाधान भी आसान नहीं है पर नामुमकिन भी नहीं है. लेकिन इसका समाधान इसलिए नहीं पता क्योंकि इसके बीच में राजनीति आ जाती है.
प्रधानमंत्री मोदी भी भारत की बढ़ती जंनसंख्या को लेकर चिंतित हैं
हम पहले कई बार देख चुके हैं कि किस तरह इस मुद्दे को राजनीति और धर्म की चाशनी से जोड़ने का प्रयास किया गया है. हाल ही में जुलाई के महीने में विश्व जनसंख्या दिवस पर केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने कहा था कि जनसंख्या बढ़ोतरी के लिए धर्म जिम्मेदार है. केंद्रीय मंत्री ने कहा कि देश में सिर्फ दो बच्चों के होने का ही कानून बनना चाहिए. जो इस कानून का उल्लंघन करता है उससे वोट करने का अधिकार छीन लिया जाना चाहिए. उन्होंने तेजी से बढ़ रही जनसंख्या पर चिंता जताई थी. साथ ही उन्होंने किसी भी धर्म या जाति का नाम लिए बिना कहा कि बढ़ती हुई जनसंख्या सौहार्दता और संसाधनों के लिए खतरा है. गिरिराज सिंह के बयान से एक गंभीर सवाल हम सब के सामने आया था कि क्या वाकई धार्मिक कारणों से देश की जनसंख्या बढ़ रही है और इसका नियंत्रण कर पाना मुश्किल है, और साथ ही साथ ये भी सवाल जेहन में आया कि क्या कानून बनने से बढ़ती जनसंख्या पर काबू पाया जा सकता है.
क्या जनसंख्या विस्फोट के लिए धर्म जिम्मेदार हैं?
गिरिराज सिंह के बयान के बाद मुस्लिम धर्म गुरुओं ने अपनी नाराजगी जताई थी. ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के एक सदस्य ने साफ कहा था कि वोट देने का अधिकार उन्हें संविधान ने दिया है. यह अधिकार ना तो उन्हें किसी राजनितिक पार्टी ने दिया है और ना किसी व्यक्ति-विशेष ने. उन्होंने साफ तौर पर कहा था कि बढ़ती जनसंख्या के नाम पर किसी एक धर्म वर्ग पर निशाना लगाना बिलकुल गलत है. स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जनसंख्या नियंत्रण की अपील का मुस्लिम उलेमाओं ने दिल खोलकर स्वागत किया है. उनके अनुसार जनसंख्या बढ़ने के सामाजिक आर्थिक कारण हैं, और इसका धर्म से कोई ताल्लुक नहीं है. बढ़ती जनसंख्या निश्चित रूप से गंभीर समस्या है लेकिन अगर इसे मुसलमानों से जोड़ा जा रहा है तो यह पूरी तरह से गलत है.
हमारे यहां जो जनसंख्या विस्फोट हो रहा है, ये आने वाली पीढ़ी के लिए संकट पैदा करता है।
लेकिन ये भी मानना होगा कि देश में एक जागरूक वर्ग भी है जो इस बात को अच्छे से समझता है।
ये लोग अभिनंदन के पात्र हैं। ये लोग एक तरह से देश भक्ति का ही प्रदर्शन करते हैं: पीएम #स्वतंत्रतादिवस pic.twitter.com/MLX0KR8Sr9
— BJP (@BJP4India) August 15, 2019
वर्ष 2050 तक चीन को पीछे छोड़ देगा भारत
वर्तमान में भारत की जनसंख्या करीब 1.36 अरब और चीन की 1.42 अरब है. एक रिपोर्ट में ये संभावना जताई गई है कि 2050 तक भारत 161 करोड़ का आंकड़ा पार करके टॉप पर पहुंच जाएगा. जनंसख्या विस्फोट के कगार तक पहुंच चुकी भारत की जनसंख्या पिछले 100 वर्षों में पांच गुना बढ़ी है और वर्ष 2050 तक वह चीन को भी पीछे छोड़ देगी.
अगर जनसंख्या कम होगी तो ये फायदे होंगे-
- पीने के लिए साफ पानी मिलेगा.
- हवा ज्यादा प्रदूषित नहीं रहेगी.
- नौकरियां आराम से मिल पाएंगी.
- सभी को अच्छी शिक्षा की सुविधा मिलेगी.
- स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर मिलेंगी.
- भारत में सड़कों पर खासकर शहरों में जाम की स्थिति नहीं रहेगी.
- अपराध पर काबू पाया जा सकता है.
- गंदगी में कमी लाई जा सकती है.
- भारत दुनिया की टॉप पांच अर्थव्यवस्थाओं में से एक हो सकता.
अगर ध्यान दें तो पाएंगे कि भारत की हर समस्या के पीछे बढ़ती जनसंख्या सबसे बड़ी भूमिका निभाती है. गरीबी, बेरोजगारी, कमजोर शिक्षा व्यवस्था, लचर स्वास्थ्य सेवाएं, प्रदूषण, आदि के पीछे जनसंख्या में बेतहाशा वृद्धि ही उत्तरदायी है.
समय की मांग ये है कि जनसंख्या नियंत्रण को एक मिशन के तौर पर सरकार को लेना चाहिए और उसपर एक सकारात्मक और नीतिगत कानून बनाना चाहिए. इसको किसी भी धर्म और राजनीति के चश्मे से नहीं देखना चाहिए. विश्व के कई देश जैसे चीन, हांगकांग, सिंगापुर, वियतनाम आदि दो संतान नीति को सफलतापूर्वक अमल कर चुके हैं. चीन ने अपनी बढ़ती जनसख्या पर नियंत्रण करने के साथ साथ अपने मानव संसाधनों का उपयोग इस प्रकार किया कि वो विश्व में दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गई.
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