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Updated: 30 जुलाई, 2015 07:00 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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दो हफ्ते पहले याकूब मेमन की फांसी की तारीख बताई गई. सरकारी वकील उज्ज्वल निकम का कहना था कि इसका मकसद ये था कि इस दौरान याकूब बचाव के सारे तरीके आजमा ले. याकूब को इसका पूरा मौका भी मिला. आखिरी वक्त तक उसकी ओर से हर मुमकिन कोशिश भी हुई.

3.30 बजे तक सुनवाई

अगली सुबह याकूब को फांसी दी जानी है. तारीख - 30 जुलाई, समय - 7 बजे. कुछ ही घंटे बचे होते हैं. देर रात याकूब के वकील चीफ जस्टिस के घर दस्तक देते हैं. दलील है कि राज्यपाल ने माफी याचिका में बाद में जोड़ी गई बातों पर गौर नहीं किया और रिजेक्ट कर दिया.

इतना ही नहीं. याकूब के वकील के अलावा भी कई वकील आधी रात को चीफ जस्टिस के घर पहुंचते हैं. इनमें प्रशांत भूषण जैसे नामी वकील भी शामिल हैं. ये चाहते हैं कि याकूब को 14 दिन की मोहलत दे दी जाए.

एक मुजरिम जिस पर 257 बेगुनाहों की मौत की साजिश में शामिल होने का दोष साबित हो चुका हो. जिसका मर्सी पेटिशन दो बार सुप्रीम कोर्ट रिजेक्ट कर चुका हो. जिसका क्यूरेटिव पेटिशन भी निरस्त हो गया हो. जिसकी दया याचिका को राष्ट्रपति ने भी दो बार नामंजूर कर दिया हो.

उस मुजरिम की फरियाद देश के चीफ जस्टिस आधी रात को सुनने के लिए तैयार हो जाते हैं. तैयार ही नहीं होते बड़े गौर से सुनते हैं. वो भी भोर के साढ़े तीन बजे तक. ऐसा मौका और कहां मिलेगा?

दो बार दया माफी

याकूब की दया याचिका को एक बार राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी खारिज कर चुके होते हैं. कोर्ट से डेथ वारंट जारी हो चुका होता है. फांसी की तारीख की घोषणा हो चुकी होती है.

राष्ट्रपति के पास दोबारा माफी की अर्जी पहुंचती है. इस बार राष्ट्रपति के पास देश की नामी गिरामी हस्तियों के सिफारिशी पत्र भी होते हैं. राष्ट्रपति दोनों पर गौर करते हैं. फिर उसे सरकार के पास भेजते हैं. गृह मंत्री राजनाथ सिंह और राष्ट्रपति मुखर्जी देर तक हर पहलू पर विचार करते करते हैं.

लंबे विचार विमर्श के बाद माफी याचिका को नामंजूर करने का फैसला लिया जाता है.

राष्ट्रपति को अपने फैसले पर दोबारा विचार करने को कहा जाता है. शायद कोई चूक रह गई हो, ये सोच कर.

लेकिन उसे यूं ही नहीं लौटा दिया जाता. उस पर गहन मंत्रणा के बाद फैसला लिया जाता है. कोई त्रुटि नहीं, पिछले फैसले पर मुहर लगा दी जाती है. वास्तव में, ऐसा मौका कहां मिलेगा.

बिलकुल फेयर ट्रायल

चाहे वो आमिर अजमल कसाब हो या फिर याकूब रज्जाक मेमन. कोई ये नहीं कह सकता कि किसी भी मामले में फेयर ट्रायल नहीं हुआ.

कसाब को पूरी दुनिया ने देखा. सरेआम गोलियों की बौछार करते हुए. पाकिस्तानी चश्मे की बात अलग है. फिर भी उसे ट्रायल से गुजारा गया. उसे भी हर मौका मुहैया कराया गया. उसके बचाव के लिए वकील भी दिया गया.

याकूब ने सुप्रीम कोर्ट में दया याचिका दी. फिर उसने क्यूरेटिव पेटिशन फाइल की. उसने दोबारा दया याचिका दाखिल की. जब दो जजों की बेंच में एक राय नहीं बन पाई तो इसे बड़ी बेंच के पास भेजा गया जहां उसे खारिज कर दिया गया.

याकूब का केस हो या कसाब का मामला. उन्हें भारतीय न्याय प्रणाली का शुक्रगुजार होना चाहिए. वैसे याकूब के भाई ने भी कैमरे पर यही कहा था. बाकियों की बात और है. याकूब को बचाव का पूरा मौका मिला. याकूब ने भी अपनी ओर से कोई कसर नहीं छोड़ी.

1993 में 257 बेगुनाह मारे गए उसकी वजह से, 2015 में वो फांसी पर चढ़ा, अपनी वजह से.

हिसाब बराबर. आखिर इसे ही तो कहते हैं - इंसाफ.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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