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Updated: 31 अक्टूबर, 2021 02:30 PM
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कहने की जरूरत नहीं है कि 21वीं सदी के युद्धों का मानव रहित हवाई वाहन यानी यूएवी एक अभिन्न हिस्सा हैं. इस दशक में हुए सभी युद्ध-संघर्षों में यूएवी के इस्तेमाल का चलन देखा गया है. युद्ध के एक निर्णायक हथियार के तौर पर यूएवी को बीते साल के आर्मीनिया और अजरबैजान के बीच हुए नागोर्नो-कराबाख संघर्ष के दौरान पहचान मिल गई है, जिसमें युद्ध के मैदान पर ड्रोन पूरी तरह से हावी हो गए थे. यूएवी यानी ड्रोन तकनीक तक अब आतंकियों की भी पहुंच बनती जा रही है. इस साल की शुरुआत में भारत के जम्मू एयरफोर्स स्टेशन पर हुए ड्रोन हमले ने आतंकियों द्वारा यूएवी की मदद के जरिये मचाई जा सकने वाली तबाही और नुकसान के खतरे को लोगों के सामने ला दिया है. भारतीय सेना प्रमुख ने हाल ही में बताया था कि खतरा कितना गंभीर है. साथ ही भारत के यूएवी ड्रोन बेड़े को मजबूत करने की जरूरत पर बल दिया था.

भारतीय सशस्त्र बलों ने इस अहम मुद्दे को समझते हुए इस पर आगे बढ़ना शुरू कर दिया है, जबकि देश में प्रभावी लड़ाकू ड्रोन (Combat Drone) बनाने के स्वदेशी प्रयास अभी भी प्रारंभिक चरण में हैं. इसका मतलब है कि भारतीय सेना इस दशक के अंत तक आयातित ड्रोन पर ही निर्भर रहेगी. द यूरेशियन टाइम्स में छपी एक खबर में बताया गया था कि कैसे भारत ड्रोन और यूएवी के मामले में पाकिस्तान से कम से कम एक दशक और चीन से और भी ज्यादा पीछे है. दरअसल, सदाबहार दोस्त पाकिस्तान और चीन लड़ाकू ड्रोन समेत कई सैन्य प्लेटफार्मों और हथियारों को विकसित और पाने के लिए एकदूसरे के करीबी सहयोगी की भूमिका निभा रहे हैं.

Ghatak Droneभारत के रहस्यमयी स्टेल्थ ड्रोन घातक को एक परीक्षण के दौरान देखा गया था. (फोटो साभार:स्क्रीनग्रैब/Reach Defence)

भारत का 'घातक' ड्रोन प्रोजेक्ट

भारत के रहस्यमयी स्टेल्थ ड्रोन घातक (Stealth Drone Ghatak) को हाल ही में एक परीक्षण के दौरान देखा गया था. स्टेल्थ विंग फ्लाइंग टेस्टेड (SWiFT) का नाम लिए हुए इस ड्रोन का एक वीडियो और फोटो सामने आए हैं. स्टेल्थ ड्रोन घातक को रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन यानी डीआरडीओ (DRDO) द्वारा विकसित किया जा रहा है. लेकिन, इसकी जानकारी को पूरी तरह से गुप्त रखा गया है. घातक प्रोजेक्ट को इसी साल फ्लैगशिप का दर्जा मिला है. भारत सरकार इस प्रोजेक्ट पर गंभीरता के साथ आगे बढ़ रही है और भारतीय नौसेना में शामिल करने के लिए इसके एक डेक-आधारित लड़ाकू यूएवी वेरिएंट की संभावनाएं भी तलाशने पर जोर दे रही है. माना जा रहा है कि 2024 से 2025 के बीच में स्टेल्थ ड्रोन घातक का प्रोटोटाइप लोगों के सामने आ सकता है.

वीडियो से संकेत मिलता है कि इस साल अगस्त महीने के बीच में स्टेल्थ विंग फ्लाइंग टेस्टेड यानी SWiFT का परीक्षण दक्षिण भारत के कर्नाटक में चित्रदुर्ग एयरोनॉटिकल टेस्ट रेंज में किया गया था. लेकिन, इस मामले पर ना ही भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय (MoD) और ना ही डीआरडीओ ने कोई बयान जारी किया था. इस साल की शुरुआत में सेना दिवस 2021 के मौके पर भारतीय सेना ने 75 लड़ाकू ड्रोन के साथ स्वार्म ड्रोन तकनीक का सफलतापूर्वक प्रदर्शन किया था. इस प्रदर्शन में दिखाए गए 75 लड़ाकू ड्रोन्स लक्ष्यों की पहचान कर उन पर आत्मघाती शैली हमला करने में काबिल हैं. यह भारत के 1,000 स्वार्म ड्रोन के लक्ष्य की दिशा में बढ़ाया गया एक बड़ा कदम था.

वैश्विक सैन्य विशेषज्ञों ने भारत के इस कदम की तारीफ की थी. लेकिन, ये भी कहा था कि यह एक प्रदर्शन था, नाकि किसी ऑपरेशन में मिली कामयाबी. हालांकि, भारत ने अपने इजरायली ड्रोन हरोप (HAROP) के बेड़े को भी विस्तार दिया है. माना जा रहा है कि इस बेड़े में करीब 164 इजरायली ड्रोन हरोप जुड़ चुके हैं. भारत ने आपातकालीन खरीद लीज के अंतर्गत अमेरिका से दो जनरल एटॉमिक्स एमक्यू-9बी (MQ-9B) सीगार्डियन खरीदे थे. इसके प्रदर्शन से प्रभावित होकर भारतीय सशस्त्र बल 3 बिलियन डॉलर के अनुबंध के हिस्से के रूप में 30 एमक्यू-9बी रीपर या प्रेडेटर बी (Predator B UCAVs) लड़ाकू ड्रोन को शामिल करना चाह रहे हैं. माना जा रहा है कि ये सौदा जल्द पूरा हो सकता है. क्योंकि, हाल ही में अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान पीएम नरेंद्र मोदी ने जनरल एटॉमिक्स के सीईओ विवेक लाल से मुलाकात की थी.

हालांकि, इन तमाम घटनाओं के बाद भी विश्लेषकों का मानना ​​है कि भारत स्वदेशी रूप से विकसित लड़ाकू ड्रोन यानी यूसीएवी (UCAVs)के मामले में पीछे है. भारत की रुस्तम 2 या घातक जैसे प्रस्तावित घरेलू लड़ाकू ड्रोन प्रोजेक्ट्स में से कोई भी वर्तमान में चालू नहीं है. दूसरी ओर, पाकिस्तान ने करीब एक दशक पहले अपने घरेलू बुर्राक लड़ाकू ड्रोन को सेना के बेड़े में शामिल कर लिया है. 

भारत का घातक ड्रोन बनाम चीन-पाकिस्तान

रक्षा विश्लेषकों का मानना है कि भारत फिलहाल बड़े और मिडिल साइज के यूएवी की परीक्षण उड़ान कर रहा है, जबकि तुर्की और चीन जैसे देशों ने इसे सेना में तैनात कर दिया है. चीन के यूएवी ड्रोन को विदेशों में उतना पसंद नहीं किया जा रहा है. भले ही ये ड्रोन हाई-टेक न हों, लेकिन इनका लगातार विकास और तैनाती की जा रही है. चीन अन्य देशों से ड्रोन तकनीक खरीदने या चोरी करने के अपने पैटर्न पर चल रहा है. पाकिस्तान ने आयतित ही सही, लेकिन यूएवी ड्रोन तैनात कर दिए हैं. वहीं, भारत की ओर से इजरायल और अमेरिका से आयातित यूएवी ड्रोन का सीमित मात्रा में ही इस्तेमाल किया जा रहा है. रक्षा विश्लेषकों के अनुसार, भारत में मानव रहित विमानों में नए सिरे से प्रगति दिखना अच्छा है और इसमें डीआरडीओ का नेतृत्व कम नहीं कहा जा सकता है. भारत में एक उभरता हुआ एयरोस्पेस सेक्टर है और मानव रहित विमानों के लिए यहां भरपूर संभावनाएं हैं. भले ही स्थानीय रूप से विकसित प्रणालियां हों या उन्हें धीरे से अपनाया जाए.

हालांकि, चीन के साथ बिगड़ते संबंधों की वजह से भारतीय सशस्त्र बलों को अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख जैसे राज्यों में युद्धस्तर पर तैयार रहना पड़ता है. लेकिन, घातक जैसे नए यूएवी लड़ाकू ड्रोन का आगमन जल्द नहीं हो सकता है. पहले चीन को लेकर माना जाता था कि यूएवी और अन्य ऑटोमेटेड तकनीक के इस्तेमाल के मामले में वह अमेरिकी सेना से काफी पीछे है- जो गलत है. इस बीच एक उभरता हुआ चलन बना है कि चीनी सेना बड़े पैमाने पर लड़ाकू ड्रोन पर अपनी निर्भरता बढ़ा रही है. जिसका मतलब है कि चीनी सेना के लड़ाकू ड्रोन का बेड़ा विशेष रूप से उसकी वायु सेना से भी बड़ा आकार ले सकता है. रक्षा विश्लेषकों की मानें, तो इनोवेशन, प्रोडक्शन और वैराइटी के मामले में चीन विश्व में अग्रणी है. दरअसल, हाल ही में हुए चीन के एयर शो 2021 को देखते हुए कहा जा सकता है कि चीनी एयरोस्पेस और हाई-टेक क्षेत्र की ओर से आने वाले समय में सैन्य ड्रोनों की तेजी से भरपूर आपूर्ति होगी. चीन की उत्पादक क्षमता को देखते हुए उसे मानव रहित विमानों के लिए हथियारों और गोला-बारूद के लिए भी ज्यादा भटकना नहीं पड़ेगा.

रक्षा विश्लेषकों का कहना है कि भारत के पास रूस जैसी विदेशी भागीदारों द्वारा दिए गए इंजनों तक अप्रतिबंधित पहुंच है. और, वह स्थानीय तौर पर बनाए गए भारी या मल्टी-फ्यूल इंजन भी चुन सकते हैं. निश्चित रूप से भारत में मानव रहित विमानों के विकास में तेजी लाने के लिए इंजीनियरों और पैसों की कोई कमी नहीं है. हालांकि, रक्षा विश्लेषकों का ये मानना है कि अगर उत्पादन को सबसे महत्वपूर्ण माना जाए, तो चीन जल्द ही ड्रोन तकनीक में दुनियाभर में सबसे आगे हो सकता है. चीनी सेना के पास अपनी इनवेंट्री में जोड़े गए ड्रोन्स के साथ सीखने का मौका है. वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी एलएसी (LAC) पर चीन निर्मित स्टेल्थ ड्रोन्स से सूचना और स्थितिजन्य प्रभुत्व स्थापित किये जाने का जोखिम बढ़ जाएगा. पाकिस्तान ने अपनी सैन्य और सरकारी एजेंसियों के लिए यूएवी/यूसीएवी की एक पूरी पीढ़ी विकसित की है. जो छोटे रोटरक्राफ्ट और हाथ से लॉन्च होने वाले निगरानी ड्रोन से लेकर शाहपर II जैसे लंबे समय तक हवा में रहने वाले मॉडल तक हैं. इस बात की भी लगातार अफवाह उड़ती रही हैं कि पाकिस्तान के सरकारी स्वामित्व वाली एयरोस्पेस निर्माता कंपनी एक नहीं, बल्कि दो लड़ाकू ड्रोन यूसीएवी को बना रही है.

रक्षा विश्लेषकों की मानें, तो भारत अपनी आदत से बाहर निकलने की लगातार कोशिश कर रहा है और अपनी खुद की विश्व स्तरीय मानव रहित प्रणाली शुरू करने की कगार पर है. भारत में बना यूएवी तापस बीएच201 (TAPAS BH201) इस मामले में आशा दर्शाता है. लेकिन, यूएवी और लड़ाकू ड्रोन के लिए डीआरडीओ के प्रयासों को भूला दिए जाने वाली स्थिति में रख दिया गया है, भले ही निजी क्षेत्र के भागीदार इसमें शामिल होने के लिए तैयार हैं. इन सबके बीच भारतीय सेना लंबे समय तक इजरायल द्वारा आपूर्ति किए गए महंगे ड्रोन और अब जल्द ही अमेरिका के ड्रोन्स को प्राथमिकता देगी. यहां ऐसा होने की जरूरत नहीं है, लेकिन इस समय चीजें ऐसी ही हैं.

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