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Updated: 28 मई, 2019 04:37 PM
प्रभाष कुमार दत्ता
प्रभाष कुमार दत्ता
  @PrabhashKDutta
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चुनाव पंडितों की अटकलों से उलट, इस बार लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी की जो लहर देखी गई वो 2014 से भी ज्यादा मजबूत थी. जो दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी के लिए एक चेतावनी है. अरविंद केजरीवाल की पार्टी दिल्ली में 70 में से किसी भी विधानसभा क्षेत्र में सफल नहीं हो सकी. जबकि भाजपा ने लोकसभा की सभी सातों सीटों पर जीत हासिल की. ये तब है जब AAP ने दिल्ली विधानसभा चुनाव 2015 में 67 विधानसभा सीटें जीती थीं.

इस नए चुनावी झुकाव से चिंतित होकर अरविंद केजरीवाल ने 2020 में दिल्ली में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी के सभी विधायकों को व्हाट्सएप मैसेज भेजकर उन्हें तैयारी करने को कहा है. केजरीवाल का संदेश स्पष्ट है कि 'आम आदमी पार्टी के विधायकों को छोटी सार्वजनिक सभाएं करनी होंगी और मतदाताओं को बताना होगा कि उन्होंने गलतियां की हैं और वे विधानसभा चुनावों में उसकी भरपाई कर लेंगे.'

arvind kejriwalलोकसभा चुनाव में दिल्ली की जनता ने आप को नकार दिया, लेकिन अब 2020 की तैयारी

और उस निर्णय के बाद हुआ है जब लोक सभा चुनाव में भाग लेने के लिए आम आदमी पार्टी ने भाजपा की ही चुनावी रणनीति अपनाई थी और हर एक मतदान केंद्र पर 10 विजय प्रमुख नियुक्त किए थे (विजय प्रमुख जिनपर इलाके के 10 घरों की पूरी जिम्मेदारी होती है). भाजपा पन्ना प्रमुख नियुक्त करती है (पन्ना प्रमुख यानी वो पार्टी कार्यकर्ता जो मतदाता सूची के एक पूरे पन्ने का प्रभारी होता है)

पार्टी और सरकार में अरविंद केजरीवाल के डिप्टी मनीष सिसोदिया को भी कहते सुना गया है कि ' 2020 के दिल्ली चुनावों में केजरीवाल की टीम हिस्सा लेगी, व्यक्तिगत विधायक या उम्मीदवार के रूप में नहीं'

आम आदमी पार्टी डरी हुई क्यों है ?

अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन पर सवार होकर AAP ने 2013 में राजनीति में प्रवेश किया. इसने 28 सीटें हासिल कीं, जो भाजपा के बाद दूसरे स्थान पर रही, जिसने दिल्ली में अल्पसंख्यक सरकार बनाने के दावे को खारिज कर दिया था. AAP ने कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनाई, जिसके 70 सदस्यों की विधानसभा में आठ विधायक थे. अरविंद केजरीवाल मुख्यमंत्री बने लेकिन सरकार 49 दिनों से ज्यादा नहीं चल सकी और अरविंद केजरीवाल ने लोकपाल बिल के मुद्दे पर इस्तीफा दे दिया जो दिल्ली विधानसभा में पारित नहीं हो सका था.

दिल्ली चुनाव में देरी हुई और 2014 का लोकसभा चुनाव बीच में ही लटक गया. भाजपा ने दिल्ली की सभी लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की और AAP दूसरे स्थान पर रही और कांग्रेस तीसरे स्थान पर धकेल दी गई.

2014 में मजबूत मोदी लहर के बावजूद भी दिल्ली में AAP का औसत वोट शेयर 32.90 प्रतिशत था. 2015 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो AAP ने 95 फीसदी से अधिक की स्ट्राइक रेट के साथ 67 सीटें जीतीं. अन्य तीन सीटें भाजपा के हिस्से में आईं और कांग्रेस शून्य पर रही.

तब से AAP ढलान की ओर है. 2017 के नगर निगम चुनावों में AAP का वोट शेयर 2015 में 54.3 प्रतिशत से घटकर 26 प्रतिशत हो गया. यानी आधे से भी कम.

अब 2019 के लोकसभा चुनाव में AAP ने दिल्ली में डाले गए कुल वोटों का केवल 18.1 प्रतिशत ही मिला. कुल मिलाकर, ये कांग्रेस से भी पीछे तीसरे स्थान पर रही जिसे 22.5 प्रतिशत वोट मिले थे.

arvind kejriwal2017 के नगर निगम चुनावों में AAP का वोट शेयर 2015 में 54.3 प्रतिशत से घटकर 26 प्रतिशत हो गया

केजरीवाल की टीम की बड़ी चिंताएं

भाजपा को दिल्ली की सभी सातों सीटों पर 50 प्रतिशत से अधिक वोट मिले, जिसमें उत्तर पश्चिम दिल्ली में सबसे ज्यादा 60.49 वोट मिले. चांदनी चौक में कांग्रेस का सर्वाधिक वोट शेयर 29.67 प्रतिशत था. और AAP का सबसे ज्यादा वोट शेयर 26.35 प्रतिशत दक्षिण दिल्ली में रहा.

टीम केजरीवाल के लिए लोकसभा चुनाव की सबसे ज्यादा चिंताजनक बात ये है कि AAP 70 में से किसी भी विधानसभा क्षेत्र में बढ़त नहीं ले सकी. भाजपा 65 विधानसभा क्षेत्रों में आगे रही, जबकि अन्य पांच पर कांग्रेस. दिल्ली के 5 लोकसभा क्षेत्रों में दूसरे स्थान पर आकर कांग्रेस को जीवनदान मिला तो AAP केवल दो पर ही रनर अप रही. कांग्रेस पांच साल पहले सभी लोकसभा सीटों पर तीसरे स्थान पर रही थी.

इसके अलावा AAP ने संगम विहार और अंबेडकर नगर जैसी झुग्गियों और अनाधिकृत कॉलोनियों से अपना जनाधार खो दिया है, जिसने 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के पक्ष में भारी मतदान किया. जबकि कांग्रेस ने मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में खुद को मजबूत किया है.

सात विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां मुस्लिम मतदाता ही इन सीटों पर जीत तय करते हैं. इनमें से चांदनी चौक, बल्लीमारान, मतिया महल, सीलमपुर और ओखला में कांग्रेस ने बाजी मारी जबकि बाकी दो- बाबरपुर और मुस्तफाबाद में भाजपा ने.

लोकसभा चुनाव के दौरान अरविंद केजरीवाल ने शिकायत की थी कि रातोंरात सारा मुस्लिम वोट आप से कांग्रेस की तरफ चला गया. इससे ये साबित होता है कि केजरीवाल सरकार के कार्यकाल के आखरी वर्ष में AAP गंभीर संकट में है. लोकसभा चुनाव टीम केजरीवाल और AAP के लिए एक वेक-अप कॉल हैं.

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लेखक

प्रभाष कुमार दत्ता प्रभाष कुमार दत्ता @prabhashkdutta

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्टेंट एडीटर हैं.

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