New

होम -> सियासत

 |  3-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 11 सितम्बर, 2015 03:50 PM
कुलदीप मिश्र
कुलदीप मिश्र
  @kuldeepmishra4
  • Total Shares

बिहार और यूपी पक्के पड़ोसी हैं और एक दूसरे का पीछा नहीं छोड़ते. पूर्वाग्रहों से लदे किसी सामान्य मराठी-पंजाबी या दक्षिण भारतीय के लिए यूपी-बिहार के गरीब प्रवासियों की सामाजिक स्थितियां एक-सी होती हैं. लेकिन क्या मामला इतना सीधा है? उत्तर प्रदेश और बिहार में राजनीति का किरदार एक-दूसरे से पर्याप्त अलग है लेकिन क्या यह एक-दूसरे से बेअसर भी है?

अगर नहीं तो फिर महागठबंधन से मुलायम सिंह यादव के अलग होने को रोमांचक ट्विस्ट के तौर पर क्यों देखा जा रहा है? मुलायम के अलग होने की खबर को अगले दिन कुछ हिंदी अखबारों ने सबसे बड़ी खबर बनाया था. अगर सियासी तौर पर यह वाकई कोई ट्विस्ट है तो इस विमर्श में मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) कहां गायब है, जो बिहार में स्वतंत्र रूप से चुनाव लड़ रही है और सपा के मुकाबले कहीं ज्यादा मजबूत है.

सपा से 5 गुना ज्यादा वोट बीएसपी के

आंकड़ों से इसकी ताकीद होती है. 2010 विधानसभा चुनाव में मुलायम की पार्टी सपा 146 सीटों पर चुनाव लड़ी थी और उसके सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई थी. हर सपा उम्मीदवार को औसतन 1101 वोट मिले थे. पार्टी का कुल वोट फीसदी था 0.55.  इसी चुनाव में बीएसपी 239 सीटों पर लड़ी और तीन सीटों पर इसके उम्मीदवार दूसरे नंबर पर रहे. बीएसपी को इस चुनाव में 3.21 फीसदी वोट मिले और इस लिहाज से वह छठी सबसे बड़ी पार्टी थी. 2005 में बीएसपी 238 सीटों पर लड़ी और दो सीटें उसने जीतीं भी. 2000  में बीएसपी अविभाजित बिहार की 324 में से 249  सीटों पर चुनाव लड़ी और पांच सीटें जीतने में कामयाब रही.

bihar-bsp-650_090915071816.jpg
2010 के बिहार चुनाव में BSP का प्रदर्शन

बिहार में यादव समुदाय सबसे बड़ा वोट बैंक है जिसकी हिस्सेदारी करीब 14 फीसदी की है. लेकिन इन वोटों पर लालू यादव की आरजेडी की पकड़ आज भी मजबूत है और मुलायम इसमें असरदार सेंध कभी नहीं लगा सके. उत्तर प्रदेश के मुसलमान भले ही मुलायम पर मेहरबान रहे हों, लेकिन बिहार का अल्पसंख्यक कभी साइकिल पर बहुत यकीन से सवार नहीं हुआ.

bihar-sp-650_090915071839.jpg
2010 के बिहार चुनाव में SP का प्रदर्शन

यादव वोटों में सेंध की गुंजाइश?

यह बहस का विषय जरूर है कि यादव वोटों पर लालू की पकड़ कमजोर हुई है और उसमें सेंध की गुंजाइश बनी है. लोकसभा चुनावों में वोटिंग पैटर्न निश्चित तौर पर अलग होता है,  इसके बावजूद इस बात की अनदेखी नहीं की जा सकती कि 2014 लोकसभा चुनाव में लालू की पत्नी राबड़ी देवी और बेटी मीसा भारती यादव-बहुल सीटों- क्रमश: सारण और पाटलिपुत्र से चुनाव हार गईं. रामकृपाल यादव और पप्पू यादव के साथ छोड़ जाने के बाद आरजेडी लोकप्रिय यादव चेहरों की कमी से भी जूझ रही है. इस बीच दिल्ली से आकर नरेंद्र मोदी वोटरों को 'यदु भाई' कहकर संबोधित करते हैं और स्वयं को भगवान कृष्ण की धरती का वासी बताकर सेंध मारने की तैयारी में हैं. इस रेस में वह मुलायम से कहीं आगे नजर आते हैं.

इसके बावजूद बीएसपी, जिसकी चर्चा सबसे कम हो रही है,  हर प्रदेश की तरह बिहार में भी अपने पारंपरिक वोट रखती है और उन्हें बढ़ाने में जुटी है. सपा के अलगाव को पर्याप्त 'ओवररेट' कर लिया गया है. वह बिहार में एक-दो सीटों पर भी असर छोड़ने की स्थिति में नहीं लगती, अलबत्ता बीएसपी इस रेस में उससे बहुत आगे है. अगर इस बार वोटों के दो ध्रुव बने तो मुलायम का अलग होना सियासी तौर पर शून्य साबित होगा. फिर भी ट्विस्ट का टोस्ट परोसा जा रहा है और सोशल मीडिया के उत्साहित भाजपाई समर्थकों की बांछें बेवजह खिल रही हैं. इसमें बीजेपी के लिए खुश होने जैसा कुछ नहीं है,  हालांकि वे ओवैसी की एंट्री की संभावना पर बंद कमरों में जरूर मुस्कुरा सकते हैं.

#बिहार चुनाव, #मुलायम सिंह यादव, #नीतीश कुमार, बिहार चुनाव, मुलायम सिंह यादव, नीतीश कुमार

लेखक

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय