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Updated: 12 जून, 2015 06:26 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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"नीतीश कुमार को अब हम भोट क्यों दें? तब की बात और थी, ये पहले वाले नीतीश बाबू तो हैं नहीं..."

पटना निवासी कुमार बाबू एक बैंक में बड़े अधिकारी हैं. एनसीआर में रहते हैं. पूरा नाम शेयर नहीं करना चाहते, लेकिन राजनीति पर खूब बात करना चहते हैं. कल शाम ही पटना से लौटे. नीतीश कुमार से उनका अभी अभी मोहभंग हुआ है.

"बहुत गर्मी पड़ रही है. माथा खराब हो जा रहा है."

पटना में गर्मी मौसम की वजह से ज्यादा लगी या राजनीति के कारण? कुमार बाबू को शायद इसी सवाल का इंतजार रहता है. शुरू हो जाते हैं, निशाने पर कोई और नहीं सिर्फ बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हैं.

"वो तो राव जैसा अफसर था... अरे वो लंबे वाले... केजे राव... वो आए और सबको भोट देने को कहा... वरना कौन जाता था भोट देने..."

चुनाव आयोग के ऑब्जर्वर केजे राव को बिहार के लोग अब भी भूले नहीं हैं.

"भोट देने का कोई फायदा नहीं था, इसलिए कोई पोलिंग बूथ तक जाना नहीं चाहता था. राव के कहने पर वो भी घर से निकला... जो भोट देना फालतू समझता था... क्या डॉक्टर, क्या व्यापारी... सबके सब निकले और जमके भोट डाले."

सिर्फ एक अफसर के कहने पर, इतना कुछ?

"तब लोगों को लगा था नीतीश बनेंगे तो जंगलराज खत्म होगा. डॉक्टर हो, व्यापारी हो, कोई और भी... गाड़ी से चलता हो, अच्छा मकान बनवाया हो, बस. एक पर्ची आ जाती थी और मुंहमांगी रकम भिजवानी पड़ती थी. रोज रोज की किचकिच से निजात मिलेगी. मिली भी. ऐसा नहीं है कि नहीं मिली. विकास भी हुआ."

फिर?

"भोट तो वो बदलाव के लिए दिया था. बीजेपी-जेडीयू गठबंधन को भोट पड़ा था. खाली जेडीयू को थोड़े ही कोई देता."

कुमार बाबू की हर बात उनके साथी भी गौर से सुन रहे हैं. बोलते बोलते कुमार बाबू को गुस्सा भी आ रहा है.

"अब देखो. नीतीश ने लालू से हाथ मिला लिया. जिसके शासन से निजात पाने के लिए हम लोगों ने नीतीश को सिर आंखों पर बिठाया, अब उसी को गुलदस्ता लेके हैपी बर्थडे बोल रहे हैं. नीतीश बाबू अब कैसे समझाएंगे कि लालू से मदद लेकर जब वो मुख्यमंत्री बनेंगे तब भी वो सुशासन दे पाएंगे? दे पाएंगे? कभी नहीं. किसी जनम में नहीं."

काफी देर से खामोश रहे कुमार बाबू के साथी खुद को रोक नहीं पाते. बातचीत में कूद पड़ते हैं, "नीतीश क्या समझते हैं? पहले तो - वो फिर से सीएम बनने से रहे, और जदि बन भी गए तो लालू उन्हें बकरी बनाके रखेगा. एक होता है जो पैर पे कुल्हाड़ी मार लेता है. एक होता है जो कुल्हाड़ी पे पैर मारता है. नीतीश ने तो कुल्हाड़ी पे सर ही मार दिया है. अब भोगें. अरे गट्स था तो अकेले उतरते मैदान में. इससे तो ज्यादा ही भोट पाते. मैं लिखके दे सकता हूं."

कुमार बाबू के साथी का चेहरा तमतमा उठता है. फिर, कुमार बाबू उनकी बातों को एनडोर्स करते हैं.

"बिलकुल. अब नीतीश को कौन भोट देगा? लालू का यादव तो नीतीश को भोट तो देने से रहा. मांझी के साथ जो उन्होंने किया, दलित भोट देगा नहीं. मुस्लिम भोट मिलेगा, लेकिन वो भी बंटेगा... पक्का. मान लीजिए, सर, हमारी बात."

कुमार बाबू के साथी अपनी बारी का इंतजार करते हैं. कट प्वाइंट मिलते ही, बोलते हैं.

"अब देखो. प्रधानमंत्री का सपना देख रहे थे अब तो मुख्यमंत्रीओ की कुर्सी न बचनेवाली है."

फिर कुमार बाबू फाइनल अनाउंसमेंट करते हैं.

"तब सबने नीतीश को हाथों-हाथ लिया था. आगे बढ़के नीतीश को भोट किया... मैंने भी नीतीश को भोट दिया था... लेकिन इस बार तो हम नहिंए देंगे."

 

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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