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Updated: 13 अक्टूबर, 2016 10:35 AM
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लखनऊ में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भाषण बिलकुल मौके के मुताबिक रहा. मोदी ने इस बात का पूरा ख्याल रखा कि उनकी बातों से न तो किसी को उसमें 'खून की दलाली' का नुस्खा मिले - और न ही किसी के लिए कोई चुनावी एजेंडा ढूंढने का स्कोप बचे. सीधे शब्दों में नपी तुली बातें, बस.

ऐशबाग के मंच से मोदी ने दहशतगर्दी के पनाहगारों को आगाह किया कि बख्शे नहीं जाएंगे. ठीक वैसे ही जैसे कोझिकोड के मंच से भी मोदी ने दहशतगर्दों को कान खोल कर सुन लेने की बात कही थी - हम भूलने वाले नहीं हैं.

सर्जिकल स्ट्राइक के बाद इस बात की खूब चर्चा हुई कि मोदी ने कार्रवाई के संकेत तो कोझिकोड में ही दे दिये थे. कोझिकोड के कोडवर्ड की तरह क्या मोदी की विजयदशमी स्पीच को भी डिकोड किया जा सकता है ?

एलान-ए-जंग

कोझिकोड में मोदी ने कहा था, “भारत आतंकवाद के आगे न झुका है और झुकेगा. देश में आक्रोश है. उड़ी में पड़ोसी देश के एक्सपोर्ट किए गए आतंकवादियों के कारण हमारे 18 जवानों को बलिदान देना पड़ा. आतंकवादी कान खोलकर सुन लें... ये देश इस बात को कभी भूलने वाला नहीं है.”

सर्जिकल स्ट्राइक पर सेना की प्रेस कांफ्रेंस के बाद ये मोदी की ये बातें टीवी स्क्रीन पर कई बार देखने को मिली. फिर खबरों में आया कि ये संकेत तो था ही मोदी सरकार की अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति का हिस्सा भी रहा जिसमें बहाने से दुश्मन को लगातार गुमराह भी किया गया.

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लखनऊ में मोदी ने कहा, "हम वो लोग हैं जो युद्ध से बुद्ध की ओर चले जाते हैं. राम और कृष्ण दोनों ने युद्ध देखे, लेकिन हमें बुद्ध की जरूरत है."

लेकिन सवाल ये है कि अगर बुद्ध बनने से पहले युद्ध की नौबत आई तो? मोदी अपने भाषण से इस बात का भी संकेत दिये हैं.

जरा गौर फरमाइये, "युद्ध के मैदान में गीता का संदेश देने वाले मोहन का है ये देश, ये चरखे वाले मोहन का भी देश है."

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"समझने वाले समझ लें..."

मतलब ये कि हम अहिंसा के पुजारी तो हैं - लेकिन 'युद्ध भी जरूरी होता है...' वाले कृष्ण के संदेश से पूरा इत्तेफाक रखते हैं.

आखिर सम्राट अशोक ने भी तो बुद्ध की शरण में जाने से पहले युद्ध तो किया ही था. है कि नहीं?

कोझिकोड की तरह ही मोदी का लखनऊ संदेश भी साफ है, "आतंक को पनाह देने वालों को बख्‍शा नहीं जा सकता... आतंकवाद को खत्‍म किए बिना मानवता की रक्षा संभव नहीं."

लखनऊ में मोदी के भाषण पर गौर करें तो उसमें दूसरे देशों के लिए कूटनीतिक संदेश और दुश्मन के लिए चेतावनी तो है ही - यूपी के लिए पॉलिटिकल मैसेज भी है. अब समझने वाले समझ पाते हैं या नहीं, बात बस इतनी सी है.

चुनावी एजेंडा

प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण की शुरुआत 'जय श्रीराम' के साथ की - और भी उसी नारे के साथ लेकिन ज्यादा जोर देते हुए.

हाल के दिनों में बीजेपी अयोध्या के मंदिर आंदोलन और 'जय श्रीराम' के नारों से बचती दिखी. लेकिन विजयदशमी के मौके पर?

मोदी के भाषण के बाद आप नेता अरविंद केजरीवाल ने भी ट्वीट किया, 'जय श्रीराम'

फिर क्या था, लोग सोशल मीडिया पर केजरीवाल के खिलाफ पिल पड़े. लोगों ने अपने तरीके से भड़ास भी निकाली और नसीहत भी दी.

अभी भई बीजेपी के पैरोकारों का ये तर्क तो बनता है - अगर विजयदशमी के दिन भी 'जय श्रीराम' के नारे न लगाएं तो क्या करें?

हाल ही में यूपी के सीएम अखिलेश यादव से सवाल पूछा गया - दशहरे पर मोदी लखनऊ पहुंच रहे हैं, कोई टिप्पणी?

अखिलेश यादव ने फौरन जवाब दिया, "अगर बिहार में चुनाव होता, तो वो वहां रावण वध करने जाते.’

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इसी साल, दुबई के खचाखच भरे स्टेडियम में भी मोदी ने आतंक को पनाह देने वालों को ऐसे ही लपेटा था. मोदी ने कहा, "अच्छा तालिबान और बुरा तालिबान नहीं होता. हमलोग का संयुक्त बयान उन सभी देशों के खिलाफ है जो आतंकवाद को समर्थन देता है. ऐसा कभी धर्म के नाम पर होता है तो कभी कोई और वजह होती है."

साथ ही मोदी ने ये भी कहा कि 'समझने वाले समझ गये जो ना समझें...' तभी भीड़ ने ताली बजा दी. लखनऊ में भी मोदी के बात पर जोरदार ताली बजी, क्या आपने भी कुछ ऐसी बातें सुनीं जो तालियों की गूंज में गुम गईं? जैसे युधिष्ठिर ने महाभारत में कहा था, "अश्वत्थामा मरो..."

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