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Updated: 17 अगस्त, 2016 04:33 PM
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शराबबंदी को लेकर नीतीश कुमार के इरादे पूरी तरह साफ हैं और बेहद सख्त भी. नीतीश का कहना है कि लोगों ने उन्हें सरकार चलाने के लिए वोट दिया है और वो शराबबंदी भी वो लागू करके रहेंगे - चाहे कुछ भी हो जाए.

जब नीतीश ने कहा कि 'कुछ भी हो सकता है... ' तो इसे उनकी जान पर खतरे के तौर पर भी समझा गया. नीतीश ने संकेत भी दिये थे - शराब माफिया बाज नहीं आएंगे.

फिर नीतीश ने पुलिसवालों खासकर थानेदारों को भी धमकाया - कोई समस्या नहीं है. न सिर्फ पद छोड़िये, बल्कि इस्तीफा दे दीजिए, लेकिन शराबबंदी कानून से कोई समझौता नहीं होगा.

गोपालगंज का सच क्या है

नीतीश कुमार संघमुक्त भारत और शराबमुक्त समाज के मिशन पर हैं - लेकिन गोपालगंज से जो रिपोर्ट आ रही है वो बड़ी ही नहीं, बुरी खबर भी है. दर्जन भर लोग मर चुके हैं, स्थानीय प्रशासन से लेकर जेडीयू नेता तक एक ही बयान दे रहे हैं - मौत की वजह शराब नहीं है.

गोपालगंज की घटना कोई नयी नहीं है. ऐसी घटनाएं बिहार में आम रही हैं. शराबबंदी लागू होने से पहले इसे लेकर प्रशासन पर कोई अलग दबाव नहीं होता था. मगर, शराबबंदी कानून लागू होने के बाद ऐसी घटना हकीकत का बयान कर रही है.

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प्रशासन और नेता जो भी कहें, घरवालों का कहना है कि वे लोग शराब पीकर आये थे - और उनकी नजर में ये कोई नयी बात नहीं लगी. जब पेट दर्द की शिकायत की तो अस्पताल ले जाया गया - उन्हें बचाया नहीं जा सका. पीड़ित परिवार के लोगों के हवाले से रिपोर्ट आ रही है कि पाबंदी के बावजूद वहां शराब बिकती है.

कानून लागू होने के बावजूद शराब बिकने की बात अगर सामने आती है तो कुछ गड़बड़ तो है. वो भी ऐसे में जब इस कानून के पालन में नाकाम रहने पर पुलिसवाले सस्पेंड किये जा चुके हों.

थानेदारी पर खतरा

शराबबंदी कानून पर स्टेटस अपडेट तो यही है कि ये थानेदारों की नौकरी पर बन आई है - और शराब पीने वालों की जान पर. एक थानेदार ने तीन महीने में शराबबंदी कानून के तहत सिर्फ एक व्यक्ति को गिरफ्तार किया. उसी इलाके से उत्पाद विभाग वालों 90 लोगों को गिरफ्तार किया - कुछ को शराब पीने के आरोप में तो कइयों को शराब बेचने के इल्जाम में.

जिले के कप्तान ने माना कि थानेदार शराबबंदी कानून के अमल में रुचि नहीं दिखा रहा, इसलिए लापरवाही मानते हुए उसे हटा दिया - और डिपार्टमेंटल एक्शन के आदेश दे दिये.

उसी थाने के एक सहायक दारोगा शराब पीते पकड़े गये, लेकिन पश्चिम बंगाल में. किसी ने वीडियो बना कर भेज दिया - और फिर उन्हें सस्पेंड कर दिया गया.

एक और थानेदार को ड्यूटी पीरियड में शराब पीते पाया गया. गिरफ्तार कर जेल भेजा गया, लेकिन कोर्ट से जमानत मिल गयी.

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रहे न हाला, प्याला, साकी और न मिलेगी मधुशाला!

थानेदारों का दावा है कि शराबबंदी को लागू कराने में वे जी जान से जुटे हैं, लेकिन पूरे थाना क्षेत्र के किसी घर में अगर चोरी छिपे कोई शराब बना रहा हो तो हर घर को चेक करना कैसे मुमकिन है? तर्क ये भी है कि थानों में इतने पुलिसवाले भी नहीं हैं कि हर जगह उन्हें तैनात कर दिया जाये. बात में दम तो है, लेकिन उत्पाद विभाग कैसे पुलिस से आगे निकल जा रहा है? कुछ तो गड़बड़ है.

कानून पर अमल में कोताही के आरोप में 11 थानेदारों को सस्पेंड किये जाने के बाद से पूरे पुलिस महकमे में हड़कंप मचा हुआ है. सिर्फ सस्पेंड ही नहीं उन्हें 10 साल तक न तो थाने का चार्ज दिया जाएगा, न प्रमोशन होगा.

ऐसे में कई थानेदार डॉक्टर के पास बीपी चेक करा रहे हैं. कई तो अपने अफसरों को एप्लीकेशन देकर जिम्मेदारी से मुक्त करने का भी आग्रह कर चुके हैं.

अगर पुलिसवाले टारगेट पूरा करने लगें

शराबबंदी को लेकर सुशील मोदी और उपेंद्र कुशवाहा से लेकर रघुवंश प्रसाद सिंह तक नीतीश कुमार पर लगातार हमलावर बने हुए हैं. नीतीश के लिए राहत भरी बात सिर्फ इतनी है कि लालू के बयान उनके सपोर्ट में हैं.

कानून को लेकर भी सवाल उठ रहे हैं. कई खामियां भी हैं. अगर किसी गांव में शराब पीते और बेचते लोग पाये गये और ये बार बार हुआ तो पूरा गांव दोषी होगा. अगर घर के बच्चे शराब लाए तो परिवार के सारे एडल्ट जेल भेज दिये जाएंगे.

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ये सब तो हो जाएगा - क्योंकि काम पुलिस को करना है. मगर जब पुलिसवाले अपने पर आ गये फिर क्या होगा? अगर पुलिसवाले कोटा पूरा करने पर उतर आए तो जेलों में जगह की कमी पड़ जाएगी. वैसे भी हर जेल ओवरक्राउडेड ही हैं.

सवाल नीतीश के इरादों पर कोई नहीं उठा रहा, लेकिन कानून की खामियों को दूर करने की अपेक्षा तो हर किसी को होगी. सवाल नीतीश से कोई नहीं पूछेगा अगर देश संघ मुक्त नहीं हुआ. सवाल उनसे कोई नहीं पूछेगा अगर पूरा समाज शराबमुक्त नहीं हुआ, लेकिन बिहार में शराब से होने वाली हर मौत का जवाब तो उन्हें देना ही पड़ेगा.

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