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Updated: 12 फरवरी, 2019 10:23 PM
अनुराग वत्स
अनुराग वत्स
  @jianuragji
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राहुल गांधी पिछले एक हफ्ते से बदली हुई भाषा बोल रहे हैं. यह भाषा उनके राजनीतिक विरोधी नरेंद्र मोदी की है. इसमें पर्याप्त बदज़ुबानी है. नादानी तो खैर राहुल के पास पहले से ही पर्याप्त थी. उसमें अब कुछ इजाफा हो गया है. दिक्कत यह है कि मंच से जब आप तू-तड़ाक, सीने की नाप और तमाम परिचित थिऐट्रिक्स पेश करने लगते हैं, तो आपमें और आपके विरोधी में बहुत कम फर्क रह जाता है. गाय के चलते मनुष्यों पर मध्य प्रदेश में रासुका लगा कर आपकी पार्टी यह साबित करने से भी नहीं चूकी कि दरअसल बीजेपी से आप अलग नहीं हैं. तो सवाल उठता है कि राहुल गांधी में यह बदलाव और बौखलाहट कहॉं से और क्यों कर आई? जवाब दृश्य पर ही है. इसे ग़ौर से पढ़ने की दरकार है.

राहुल तीन फरवरी को पटना में रैली करते हैं. बढ़िया आयोजन, भाषण वगैरह होता है. न्यूजरूम में पीएम मोदी पर राहुल के अटैक वाले पैकेज दनादन बनने लगते हैं. टीवी पर कई पैकेज शाम तक समां बांध देते हैं. फिर अखबारों के पहले पन्ने पर सजने की बारी आती है. लेकिन तभी सीबीआई बनाम ममता बनर्जी का मामला शुरू हो जाता है. राहुल पर बने तमाम पैकेज स्क्रीन से हटने लगते हैं. अखबारों में राहुल पहले पेज से पिछड़कर अंदर के पेजों पर शिफ्ट कर दिए जाते हैं. सब तेज़-ताप दीदी यानी ममता बनर्जी हर लेती हैं.

राहुल गांधी, कांग्रेस, नरेंद्र मोदी, लोकसभा चुनाव 2019  प्रधानमंत्री की आलोचना में राहुल गांधी लगातार भाषा की मर्यादा को तार तार किये जा रहे हैं

बौखलाहट यहां से शुरू होती है.

चुनाव में कम दिन रह गए हैं. हिंदी हार्ट लैंड की एक मेगा रैली कुछ घंटों की सनसनी बनकर खत्म हो गई. पीएम पद की विपक्षी दावेदारी में ममता बनर्जी रातों-रात गजब के गर्जन-तर्जन से सबसे ऊपर पहुंच गईं. उनके रौद्र से धरनातुर केजरीवाल तक सहम गए. मायावती, अखिलेश, चंद्रबाबू, कुमारस्वामी मन मसोसकर ही सही, दीदी की जय बोल पड़े. सुबह अखबारों में मुकाबला मोदी बनाम राहुल नहीं, ममता बनाम मोदी बन गया. जिस टीएमसी और उनकी मुखिया को राहुल बंगाल में कुछ बरस पहले चिट फंड घोटालों के लिए पानी पी-पीकर कोस आए थे, उन्हें मोदी विरोध में मजबूरन बहादुरी और समर्थन के नोट लिख कर भेजने पड़े.

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान जीत कर अपने लिए 2019 में बेस्ट चांस देख रहे राहुल गांधी के लिए दीदी की आंधी ने विपक्ष में द्वितीय बनने के अलावा ज्यादा  विकल्प नहीं छोड़ा है. दीदी एक हमला बोल कर चुप नहीं हैं. वह लगातार मोर्चे पर हैं. ऐसा करके उन्होंने पूरे विपक्ष में ही काम बढ़ा दिया है. राहुल का तो खास तौर पर.

अब राहुल गांधी को नरेंद्र मोदी के खिलाफ़ ममता बनर्जी से ज़्यादा आक्रामक होकर भिड़ते दिखना है. विपक्षी खेमे में प्रधानमंत्री के पद के लिए बंगाल की दीदी से खुद को बड़ा दावेदार दिखाना और साबित करना है. कहीं कमी न रहे, इसलिए वह अपनी ‘दीदी’ को भी चुनावी समर में झोंक चुके हैं. एक लड़ाई प्रकट है, दूसरी बहुत विकट.

राहुल मुमकिन है आने वाले वक्त में बातों, बयानों और सबसे ज्यादा  अपनी भाषा से चौंकाएं! ऐसा लगता है कि जो काम 2014 तक मणिशंकर अय्यर और कपिल सिब्बल कर रहे थे, इस चुनाव के निकट आने तक उसे खुद कांग्रेस अध्यक्ष करना चाहते हैं. लोग राहुल गांधी की इस नई भाषा से जितना चौंकेंगे, नरेंद्र दामोदरदास मोदी की केंद्र में सत्ता-वापसी उतनी ही आसान होती जाएगी.

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अनुराग वत्स अनुराग वत्स @jianuragji

लेखक पेशे से पत्रकार हैं.

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