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Updated: 12 जून, 2019 06:52 PM
मनोज्ञा लोइवाल
मनोज्ञा लोइवाल
  @manogya.loiwal
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मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 10 जून को हावड़ा स्थित पश्चिम बंगाल के राज्य सचिवालय नबाना में एक बैठक ली थी. लोकसभा चुनाव के बाद यह पहली ऐसी बैठक थी जिसमें सभी जिलों के डीएम और एसपी मौजूद थे. राज्य में पार्टी के निराशाजनक प्रदर्शन के लिए किसी न किसी तरह से सभी को जिम्मेदार बता दिया गया. अपमानजनक शब्दों से लेकर गालीगलौज तक, मुख्यमंत्री और उनके मंत्रिमंडल के सदस्यों ने नौकरशाहों- IPS और IAS दोनों पर अपना गुस्सा निकालने का ये मौका नहीं छोड़ा.

जिन्हें भारत के सबसे ज़िम्मेदार नागरिक माना जाता है, जो अपने कार्यक्षेत्र की जिम्मेदारियों को अपने बौद्धिक कौशल से वहन करते हैं, ये वो नौकरशाह हैं जिन्हें इस राज्य में सिर्फ सम्मान और शक्ति दोनों कागज पर ही मिलते हैं.

फिर गलत क्या हुआ?

TMC के नेताओं ने इन लोगों के अपने जिलों और किसी विशेष संसदीय क्षेत्र में खुफिया जानकारी न जुटा पाने के लिए जिम्मेदार ठहराया. यहां नौकरशाह तभी बोल सकते हैं, जब आप उसे सुनने और उसका जवाब देने के लिए तैयार हों. कई लोगों का मानना है कि जमीनी स्तर की खुफिया जानकारी देने का कोई मतलब नहीं है अगर इसे और भी ज्यादा शक के साथ देखा जाए या आपको विरोधी प्रतिष्ठान के रूप में टैग किया जाए.

mamata-banerjeeबंगाल में नौकरशाह को सम्मान और शक्ति दोनों कागज पर ही मिलते हैं

दिलचस्प बात यह है कि जिन अधिकारियों से मैंने अलग-अलग स्तरों पर बात करने की कोशिश की और उन्हें जमीनी हकीकत के बारे में बताया, उन्होंने वकालत करते हुए कई कारण गिनवा दिए जो जमीनी स्थिति का मिजाज समझने के मेरे विश्वास को हिला नहीं सके.

कई लोग विवादों से दूर रहने के लिए राष्ट्रीय चैनल के पत्रकारों से बात करने से बचना ही बेहतर समझते हैं. लेकिन वो भूल जाते हैं कि इनमें से ज्यादातर वही लोग हैं जिन्होंने सिंगूर और नंदीग्राम आंदोलन पर रिपोर्ट कवर की थीं जब ममता बनर्जी वाम मोर्चा सरकार के खिलाफ ताकतवर तरीके से बढ़ रही थीं.

लेफ्ट टर्न-

लेकिन वाम शासन के तीन दशकों में भी नौकरशाही को इस तरह के अपमान का सामना नहीं करना पड़ा था. चुनाव ड्यूटी पर तैनात रहे अधिकारियों ने भी बीजेपी के आने पर राहत की उम्मीद लगाई होगी कि अब टीएमसी को आत्मनिरीक्षण करने का मौका मिलेगा. लेकिन चीजें और भी बुरी तरह बदल गईं.

ममता बनर्जी ने अपने अधिकारियों की पूरी सेना पर निशाना साधा है, जिनमें से अधिकांश ममता बनर्जी और उनके भतीजे के साथ-साथ डायमंड हार्बर से टीएमसी सांसद अभिषेक बनर्जी के भी आदमी थे. जिले के जिलाधिकारी कभी भी किसी अपराध की पुष्टि नहीं करते, न कॉल लेते हैं, यहां तक कि अपने क्षेत्र में हुए किसी भी अपराध या घटना की जानकारी स्पस्ट करने के लिए मैसेज का जवाब भी नहीं देते.

पुलिस अधीक्षक इतने व्यस्त हैं कि वो मीडियाकर्मियों से न तो बात करते हैं और न ही कोई प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं. ये सब तभी होता है जब वो उनके राजनीतिक आकाओं के हित में हो.

तो दोष किसका ?

राजनेता और नौकरशाह दोनों इस पराजय के लिए समान रूप से जिम्मेदार हैं. पूर्ण सत्ता भ्रष्ट है और यह सभी पर लागू होती है- केंद्र सरकार से लेकर राज्य सरकार तक. यहां तक ​​कि वाम शासन के दौरान भी जूनियर या वरिष्ठ अधिकारी, IAS या IPS को हमेशा उनकी उपलब्धियों, विफलताओं या यहां तक ​​कि राजनीतिक हिंसा पर मीडिया को ब्रीफ करने की इजाज़त थी.

2011 तक जब राज्य में वाम शासन के दौरान किसी टीएमसी कार्यकर्ता की मृत्यु होती तो उसे जहां पार्टी चाहती थी वहां उसका अंतिम संस्कार होता था भले ही उसके लिए दूसरे शहर तक की यात्रा करनी हो. सिंगूर और नंदीग्राम आंदोलनों में भी पुलिस पर राजनीतिक दबाव था. लेफ्ट कैडर पर हुआ लाठीचार्ज भी किसी वरिष्ठ वाम नेता के लिए ऐसा कारण नहीं होता था कि कानून और व्यवस्था के लिए किसी नौकरशाह को बुलाया जाए.

Bengal-Bureaucracyवरिष्ठम आईपीएस अधिकारियों को नजरअंदाज किया गया, उन्हें नीचा दिखाया गया

2011 तक वामपंथियों हटाए जा चुके थे. लेकिन अब एक पुलिस अधिकारी भी यह स्वीकार नहीं करता कि कोई भी राजनीतिक हिंसा हुई है या किसी पार्टी समर्थक की मौत हुई है. यहां तक ​​कि परिणामों से पहले भी इस तरह की स्थिति थी कि अधिकारियों को लगता था कि वो सब कुछ जानते हैं और वे अपने जानकार सूत्रों से जानकारी इकट्ठा कर रहे हैं, जिनमें से ज्यादातर का झुकाव सत्ता के गलियारों की तरफ था.

जिन अधिकारियों ने बोलने का प्रयास किया उन्हें इंतजार करवाया गया. वरिष्ठम आईपीएस अधिकारियों को नजरअंदाज किया गया, उन्हें नीचा दिखाया गया, अपमान किया गया, यहां तक ​​कि कइयों को दिल्ली भेजने या नौकरी छोड़ देने तक के लिए मजबूर किया गया.

दीदी के पसंदीदा आईएएस अधिकारी पांच साल से भी ज्यादा समय तक एक ही विभाग या मंत्रालय की प्रोफाइल में रहे, भले ही उन्हें मुख्य सचिव या अतिरिक्त मुख्य सचिव स्तर तक अपग्रेड किया गया. इसलिए अगर कान वही सुनना चाहते हैं जो वे चाहते हैं और आंखें वही देखना चाहती हैं जो उन्हें पसंद है...तो ये अधिकारी ऐसी किसी भी जानकारी का उल्लेख क्यों करेंगे जो उनके राजनीतिक आकाओं को परेशान करे.

मेरा मानना तो ये है कि

अगर मैं बंगाल की 42 सीटों में से 25 सीटों पर टीएमसी और 15 से ज्यादा पर भाजपा को देखकर परिणाम के दिन दिल्ली में अपने वरिष्ठों के साथ एक शर्त जीत सकती हूं, तो समय के साथ-साथ नौकरशाही भी अपनी आंखें खुली और कान जमीन पर रखती है.

राज्य की मशीनरी सरकारी धन से चलती है जो उन करों से आती है जिसका भुगतान आम आदमी करता है. बहुत से लोग यह भूल गए हैं कि वे संघ लोक सेवा आयोग का भी हिस्सा हैं, जिसके लिए अपने नाम के पीछे उस प्रतिष्ठित प्रत्यय को पाने के लिए रात-रात जागकर मेहनत की होगी. आप सोच सकते हैं कि मीडिया से बचना मददगार हो सकता है, यकीनन इसने आपको जमीनी हकीकत से दूर रहने में बहुत मदद की.

अगर मौन ही समाधान होता तो दुनिया एक मौन जगह होती. अगर आंख के लिए आंख उपाय होता तो दुनिया अंधी होती.

तो बंगाल में नौकरशाही के मेरे दोस्तों गेंद का लुढ़कना शुरू हो गया है और इस गेंद के इस खेल को जीतने के लिए अब समय आपका है.

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लेखक

मनोज्ञा लोइवाल मनोज्ञा लोइवाल @manogya.loiwal

लेखक आजतक में डिप्टी एडिटर हैं

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