New

होम -> सियासत

 |  3-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 26 मार्च, 2015 01:04 PM
आशीष मिश्र
आशीष मिश्र
  @ashish.misra.77
  • Total Shares

उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में कैमूर पर्वत श्रेणी पर मां विंध्यवासिनी के धाम विंध्याचल से सात किलोमीटर दूर दक्षिण में मौजूद महुआरी गांव में विख्यात संत देवरहा बाबा की तपोस्थली पहली बार राजनैतिक साधना की गवाह बनी. यहां 14 दिसंबर से दो दिन तक प्रदेश कार्यकारिणी की बैठक करके बीजेपी ने यूपी की सत्ता पर काबिज होने के लिए 'तप’ की शुरुआत की. साथ ही मध्य प्रदेश, गुजरात और महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों में बीजेपी की जीत के आर्किटेक्ट रहे वरिष्ठ नेता ओम माथुर ने इस बैठक से प्रदेश में बीजेपी प्रभारी के तौर पर अपने आधिकारिक कार्यभार की शुरुआत भी की. चारों ओर धर्मांतरण के शोर के बीच देवरहा बाबा आश्रम के एक निर्माणाधीन मंदिर परिसर के भीतर कार्यकारिणी की बैठक करने जुटे पार्टी नेताओं को प्रवेश करने से पहले एक बड़े बोर्ड पर पार्टी की कार्यसंस्कृति अनुशासन, अनुशासित आचरण और शालीनवाणी से परिचित कराया गया. यह एक बड़ा बदलाव था जिसने विवादास्पद मुद्दों से दूरी बनाने की पार्टी की रणनीति का संकेत दिया है. लोकसभा चुनाव के बाद 'लव जेहाद’ और 'हिंदुत्व’ जैसे मुद्दों को आगे कर विधानसभा उपचुनाव लडऩे वाली बीजेपी 12 में से सिर्फ तीन सीटें ही जीत सकी थी. 31 दिसंबर तक डेढ़ करोड़ सदस्ययूपी में लोकसभा चुनाव में 80 में से 71 सीटों पर जीतने वाली बीजेपी को कुल 3 करोड़ 45 लाख वोट मिले थे. पार्टी ने इनमें से डेढ़ करोड़ लोगों को सदस्य बनाने का लक्ष्य तय किया है. प्रदेश पार्टी अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत वाजपेयी कहते हैं, ''यूं तो राष्ट्रीय स्तर पर यह मोबाइल सदस्यता अभियान अगले वर्ष 31 मार्च तक है लेकिन यूपी में पार्टी ने अपना लक्ष्य पाने के लिए इसी वर्ष की 31 दिसंबर तय की है.” नए सदस्य बनाने के लिए उसने करीब दो लाख स्थानीय कार्यकर्ताओं को निगरानी का जिम्मा सौंपा है और यूपी के सभी 1.42 लाख बूथों पर बूथ प्रवासी और बूथ प्रमुख की तैनाती की है. बूथ प्रवासी पार्टी के पूर्व मंडल स्तर के पदाधिकारी हैं जिन्हें उनके बूथ के अलावा एक अन्य बूथ की जिम्मेदारी दी गई है. बीजेपी ने राज्य को संगठनात्मक दृष्टि से 2,400 मंडलों में बांटा है. पार्टी ने इन मंडलों में प्रत्येक में अध्यक्ष, सदस्यता प्रमुख और सदस्यता प्रवासी का त्रिस्तरीय ढांचा तैयार किया है. गांव की पार्टी बनने की कवायदगांवों तक पहुंच बनाने के लिए बीजेपी पहली बार यूपी के पंचायत चुनावों में हाथ आजमाने जा रही है. 2015 में होने वाले त्रिस्तरीय ग्राम पंचायत चुनावों में पार्टी प्रधान, क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत सदस्यों के प्रत्याशियों को पार्टी अधिकार पत्र देकर चुनाव लड़ाएगी. पार्टी ने अपने सभी आठ संगठन क्षेत्रों में पंचायत प्रभारियों की घोषणा कर चुनाव की तैयारी शुरू कर दी है. इसी बीच हरदोई जिले के मल्लावां ब्लॉक प्रमुख पद, गोंडा में चार ग्राम प्रधान के पद पर हुए उपचुनाव में तीन पर जीत और 7 दिसंबर को वाराणसी में जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी पर निर्विरोध कब्जा जमाकर पार्टी ने अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं. तीन माह पहले हुए विधानसभा उपचुनाव में भी पार्टी केवल तीन शहरी सीटें ही जीत सकीं. नवंबर में यूपी विधान परिषद में बरेली-मुरादाबाद स्नातक निर्वाचन सीट पर हुए उपचुनाव में जीत दर्ज कर बीजेपी ने उपचुनाव की हार पर मरहम लगाने की कोशिश की थी. यह जीत इस मायने में महत्वपूर्ण है क्योंकि इस विधान परिषद सीट के अंतर्गत सपा के वरिष्ठ नेता आजम खान के जिले रामपुर के अलावा बिजनौर, मुरादाबाद की ठाकुरद्वारा और लखीमपुर खीरी का निघासन विधानसभा क्षेत्र आता है जहां उपचुनाव में पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा था. दलित-पिछड़ा गठजोड़ पर भरोसादेवरहा बाबा आश्रम में बैठक स्थल के बाहर सरदार वल्लभ भाई पटेल के साथ डॉ. भीमराव आंबेडकर के चित्र की प्रमुखता बीजेपी की नई सोशल इंजीनियरिंग की झलक दर्शा रही थी. दलित-पिछड़ा गठजोड़ के नए समीकरण का संकेत तो 10 दिसंबर को प्रदेश कार्यसमिति के विस्तार में भी मिल गया था. नई कार्यसमिति के कुल 35 पदाधिकारियों में सबसे ज्यादा 12 पदों पर पिछड़े वर्ग के नेताओं को तरजीह दी गई है तो दलित, ठाकुर और ब्राह्मïणों की संख्या 6-6 है. यही नहीं, 105 सदस्यों वाली कार्यसमिति का विस्तार करके इसे अब 250 सदस्यीय बना दिया है. इसमें भी 80 फीसदी पदों पर दलित-पिछड़े वर्ग के नेताओं को तरजीह दी गई है. बड़ी कार्यसमिति का बचाव करते हुए संगठन मंत्री सुनील बंसल कहते हैं, ''काम ही सदस्यों के मूल्यांकन का एकमात्र पैमाना होगा. काम न करने वाले पदाधिकारी हटेंगे और दूसरे इनकी जगह लेंगे.” कोशिशों के बावजूद बीजेपी यूपी में गुटबाजी और असंतोष से नहीं उबरी है. इसका भान माथुर को भी है. बैठक में उन्होंने कार्यकर्ताओं को समझने के लहजे में कहा, ''कोई भी पद मिले चाहे आज या कल, उसके आगे एक न एक दिन पूर्व लगना ही है. केवल कार्यकर्ता के आगे कभी पूर्व नहीं लगता. इसलिए कार्यकर्ता की तरह काम कर पार्टी को मजबूत करें.” पार्टी नेता इस संदेश को कितना आत्मसात कर पाते हैं, पार्टी की कामयाबी इस पर बहुत निर्भर करेगी.

,

लेखक

आशीष मिश्र आशीष मिश्र @ashish.misra.77

लेखक लखनऊ में इंडिया टुडे के पत्रकार हैं.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय