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Updated: 05 मार्च, 2023 08:13 PM
अशोक भाटिया
अशोक भाटिया
 
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पूर्वोत्तर में भाजपा के सूर्योदय में मदद करने वाले विभिन्न गठबंधनों को एक साथ लाने वाले व्यक्ति ने एक बार फिर वही किया है. इस क्षेत्र से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के 'पोस्टर बॉय' एवं असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा पार्टी के 'डील मेकर' के रूप में उभरे हैं. वह लगभग 'हर दिन' पूर्वोत्तर के उन सभी तीन राज्यों के लिए उड़ान भरते रहे जहां इस साल फरवरी में चुनाव हुए थे. दिल्ली में काफी महत्व रखने वाले शर्मा काफी दूर स्थित गुजरात और दिल्ली में क्षेत्र से भाजपा के पहले स्टार प्रचारक थे.चाहे समान नागरिक संहिता (यूसीसी) का मुद्दा हो, पीएफआई पर प्रतिबंध लगाना हो, मवेशी संरक्षण अधिनियम पारित करना हो, अल्पसंख्यक जनसंख्या वृद्धि को धीमा करने के लिए विशिष्ट नीतिगत उपायों की मांग करना हो या 'अवैध' गांवों पर बुलडोजर चलाना हो, शर्मा ने भाजपा के अहम एजेंडे को आगे बढ़ाने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ी है.

गौरतलब है कि इस समय हेमंत बिस्वा शर्मा नॉर्थ ईस्ट डेमोक्रेटिक अलायंस के कॉर्डिनेटर हैं. संयोजक होने के नाते निश्चित रूप से उत्तर पूर्व के सारे चुनावों में, सरकार गठन में, वहां की राजनीतिक रणनीति में, सबमें उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है. उत्तर पूर्व में इस समय देखा जाए तो सर्वाधिक चर्चित और सर्वाधिक लोकप्रिय चेहरा वो हैं. उनका योगदान भारतीय जनता पार्टी तो स्वीकार करेगी ही, बाकी पार्टियां भी जो वहां खत्म हुई हैं, वो भी उनके योगदान को स्वीकार करेंगे. उनके बयानों से, उनकी रणनीति से, उनके राजनीतिक गतिविधियों से और उत्तर पूर्व के नेताओं को विश्वास में लेकर संगठित होकर काम करने के तरीके से कैसे दूसरी पार्टियों के जनाधार का क्षरण हुआ है. वो भी याद रखेंगे. लेकिन हमें ये नहीं भूलना चाहिए कि हेमंत बिस्वा शर्मा ने अपने आप यह काम नहीं कर लिया है. यहीं पर नेतृत्व की पहचान होती है.

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लीडरशिप किसको बोलते हैं, जो यह पहचाने कि इस व्यक्ति के अंदर क्षमता है. उसका फिर उसके अनुरूप उपयोग करें. हेमंत बिस्वा शर्मा कांग्रेस में भी थे, लेकिन वहां इस प्रकार की भूमिका उनको कभी नहीं मिली. लेकिन भाजपा में आए तो उसके केंद्रीय नेतृत्व चाहे नरेंद्र मोदी हों, अमित शाह हों, दूसरे नेता हों, उन्होंने उनकी संभावनाओं को देखा और उत्तर पूर्व में भारतीय जनता पार्टी के विस्तार और सुदृढ़ीकरण के बड़े लक्ष्य का ध्यान रखते हुए उनको जिम्मेदारी दी. उनका सहयोग किया. समय समय पर साथ दिया, उनके साथ खड़े रहे. स्वयं की योजना भी, फिर से आवश्यकता अनुसार उनकी योजनाओं से भी काम किया. लीडरशिप को इसमें इतना श्रेय देना पड़ेगा कि उन्होंने एक व्यक्ति की क्षमता को पहचाना और उसकी संपूर्ण संभावनाओं का कितना सदुपयोग हो सकता है, वो किया. उस पर हेमंत बिस्वा शर्मा इस समय की दृष्टि से देखें तो काफी हद तक खरे उतरे हैं.

जिस प्रकार उत्तर प्रदेश की चर्चा होने पर योगी आदित्यनाथ का नाम सबसे पहले जबान पर आता है उसी प्रकार पूर्वोत्तर राज्यों की चर्चा होने पर हेमंत बिस्वा शर्मा का नाम सबसे पहले आता है तो स्वाभाविक है दोनों में तुलना भी होती है. शायद ही ऐसा होता है जब किसी राज्य के मुख्यमंत्री का प्रभुत्व दूसरे राज्य में भी होता हो. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने योगी आदित्यनाथ जैसे नेताओं का अन्य राज्यों में उपयोग तो किया लेकिन सिर्फ चुनाव प्रचार के लिए. ऐसा कोई भी प्रमाण नहीं है कि उत्तर प्रदेश से बाहर किसी राज्य में अन्य दलों के साथ गठबंधन के लिए बातचीत में योगी आदित्यनाथ की भूमिका रही हो. इस तरह के इस श्रेय के हकदार अकेले हिमंत बिस्वा सरमा ही हैं.

योगी आदित्यनाथ के शरीर पर भगवा वस्त्र और उनकी आवाज की प्रखरता, हिंदुत्व को लेकर स्पष्टता, राष्ट्रवाद को लेकर उनकी स्पष्ट शैली, ये सब चीजें आकर्षित करती हैं और उसी की प्रतिध्वनि हेमंत बिस्वा शर्मा में दिखाई देती है. लेकिन यह न भूलिए कि भारतीय जनता पार्टी में भी कई मुख्यमंत्री हैं, जिनमें वो चीजें नहीं दिखाई देती हैं. योगी आदित्यनाथ के सामने दूसरे मुख्यमंत्री भी हैं लेकिन वो नहीं दिखाई देती है. इसलिए हेमंत बिस्वा शर्मा को किसी का प्रतिरूप हम कह दें या दूसरा योगी कह दें, ये शायद उचित नहीं होगा. इतना ही कहा जा सकता है कि हेमंत बिस्वा शर्मा अगर कांग्रेस में थे तो ये बात स्पष्ट हो रही है कि उनकी जो सोच थी, उत्तर पूर्व की जो समस्यायें थीं, वहां जिस प्रकार जो घुसपैठियों की समस्या थी, वहां सांप्रदायिक समस्या थी, मुसलमानों की समस्या थी, अपराध की समस्या थी, धर्म परिवर्तन की समस्या थी. इन सबको लेकर जो उनकी सोच थी वो कांग्रेस से मेल नहीं खाती रही है इसलिए वहां वो मुखर नहीं हुआ. यहां भारतीय जनता पार्टी में वो वातावरण मिला है, जिससे वो मुखर हुए हैं.

आज का सच यही है कि इस समय अगर देश में भारतीय जनता पार्टी के अंदर और पूरे संघ परिवार में देखा जाए कि अगर किसी नेता को सर्वाधिक लोकप्रियता प्राप्त है तो उसमें दोनों नाम आते हैं हेमंत बिस्वा शर्मा और योगी आदित्यनाथ. बल्कि इस समय कई मायनों में तो हेमंत बिस्वा शर्मा का आकर्षण ज्यादा हुआ है. कुछ बातें उन्होंने ऐसी बोली हैं जो कल्पना में भी नहीं था कि बोल सकते हैं. कुछ कदम उठाए हैं जैसे इस समय जो उन्होंने बाल विवाह के विरुद्ध जी कार्यवाही की है, 4000 से ज्यादा एफआईआर की है, अरेस्टिंग की है. इसकी तो किसी ने कल्पना नहीं की थी. उसको केवल समाज सुधार का विषय मान लिया गया था. जहां तक एक चुनाव प्रबंधक के नाते हेमंत बिस्वा शर्मा को देखे तो प्रबंधन की अपनी सीमा होती है. हेमंत बिस्वा शर्मा एक ऐसे नेता है जो चुनाव प्रबंधन भी करते हैं.

जनता के बीच जाकर जनता को वो अपनी बात से अवगत भी कराते हैं. लोगों को, कार्यकर्ताओं को, नेताओं को नेतृत्व देकर कहा कि इसकी क्या भूमिका हो सकती है, ये भी करते हैं. उनकी अपनी एक टीम है. चारों तरफ भारतीय जनता पार्टी की टीम है. प्रबंधन को आजकल थोड़ा छोटा शब्द मान लिया गया है. हम मान लें कि अमित शाह केवल चुनाव प्रबंधक रणनीतिकार हैं तो फिर उसके कद को छोटा करता है. एक नेता है जिसमें चुनाव प्रबंधन का भी गुण है. राजनीति हमेशा संभावनाओं से भरी हुई है. किसी के बारे में बिलकुल सुनिश्चित टिप्पणी नहीं कर सकते हैं कि कौन कल कहां होगा? नरेंद्र मोदी को लेकर न तो किसी के ध्यान में था, जब वो मुख्यमंत्री बने कि इनको मुख्यमंत्री भी बनाया जा सकता था. एक आरएसएस का प्रचारक जिसको आरएसएस ने भारतीय जनता पार्टी में संगठन मंत्री के नाते काम करने को भेजा था. लेकिन वो बने.

वहां से वो प्रधानमंत्री बनेंगे, कम से कम 2007 तक तो इसकी कल्पना नहीं थी. उसके बाद जरूर संगठन के अंदर चर्चा चलने लगी. तो हेमंत बिस्वा शर्मा की भूमिका भविष्य में क्या होगी, इस समय कहना कठिन है. केंद्र में भी उनकी भूमिका हो सकती है और केंद्र में भूमिका है. अगर वो उस रूप में मंत्री नहीं हैं. लेकिन नॉर्थ ईस्ट को लेकर के केंद्र की जो भी पॉलिसी है, वो आर्थिक, वो सांस्कृतिक नीति हो, राजनीतिक नीति हो, सुरक्षा से संबंधित हो या अलग अलग संगठनों के साथ समझौते की बात हो, उनसे बातचीत करना हो तो उनकी एक केंद्रीय भूमिका वहां है. यहां तक कि दूसरे क्षेत्रों में भी जो चुनावी रणनीति बनती है उसमें भी उनसे सलाह मशविरा होता है. भूमिका तो उनकी शुरू हो गई है. लेकिन नॉर्थ ईस्ट में अभी असम का जो वायुमंडल बना हुआ है. भारतीय जनता पार्टी का पूरे उत्तर पूर्व में उनका जनाधार जहां तक पहुंचा है, उसे आगे विस्तारित करना और उसको सुदृढ़ करना, लोगों के मानस को विचारधारा के स्तर पर काम करते हुए बदलना और उनके क्षेत्रभाव और जो स्थानीय जाति है, नस्ली और बाकी बातें हैं उनको राष्ट्रभाव से जोड़ना.

ये अभी उत्तर पूर्व में एक अभियान की तरह चलेगा. उसकी पूर्णता लगता है कि वो केंद्र में रहें, चाहे क्षेत्र में रहें, उनकी भूमिका बनी रहेंगी. पार्टी की निश्चित रूप से कोशिश होगी कि हेमंत बिस्वा शर्मा की तरह नॉर्थ ईस्ट में कुछ और नेताओं का उदय हो. उसकी कोशिश चल रही है. उनके केंद्र में भूमिका तो हो ही चुकी है. केंद्र में वैसे भी भारतीय जनता पार्टी या किसी पार्टी में शायद  नेशनल एक्जीक्यूटिव का मेंबर उन्हें  सीधा ना भी बनाया जाए, तब भी मुख्यमंत्री होने के नाते वे नेशनल एक्जीक्यूटिव में अधिकृत होते हैं, अपनी बात रखने के लिए, प्रस्ताव रखने के लिए. नैशनल काउंसिल में तो होते ही हैं. तो आने वाले समय में हम कहीं भी देख सकते हैं. अब जहां तक केंद्र की भूमिका है तो दो बड़ी इकाई होती है. चुनाव समिति है और पार्लियामेंटरी बोर्ड है. अब देखना पड़ेगा. उसमें अभी तक तो कोई मुख्यमंत्री नहीं है. उसमें आगे अगर कोई आएगा तो निश्चित रूप से पार्टी में जिन नेताओं के नामों पर चर्चा होगी उनमें हेमंत बिस्वा शर्मा का स्थान ऊपर होगा.

लेखक

अशोक भाटिया अशोक भाटिया

अशोक भाटिया, वरिष्ठ स्वतंत्र पत्रकार ,लेखक एवं टिप्पणीकार पत्रकारिता में वसई गौरव अवार्ड – 2023 से सम्मानित, वसई पूर्व - 401208 ( मुंबई ) फोन/ wats app 9221232130 E mail – vasairoad.yatrisangh@gmail।com

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