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Updated: 25 अक्टूबर, 2019 08:13 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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हरियाणा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव सब बोरिंग लग रहा था. न तो कैंपेन में आक्रामता दिख रही थी, ना ही जनता में कोई उत्साह नजर आ रहा था. चुनाव के दिन 21 अक्टूबर को भी वोटिंग में रिकॉर्ड गिरावट दिखी. हरियाणा में तो 19 सालों में सबसे कम वोटिंग हुई और महाराष्ट्र में करीब 9 सालों में सबसे कम वोटिंग दर्ज की गई. लेकिन 24 अक्टूबर को जब मतगणना शुरू हुई तो अचानक ही ये चुनाव दिलचस्प हो गए. महाराष्ट्र की तस्वीर तो फिर भी कुछ देर में साफ हो गई, लेकिन हरियाणा में त्रिशंकु विधानसभा बन गई, जिसके बाद इस चुनाव एक अलग ही मोड़ ले लिया. सोशल मीडिया पर लोगों ने बहस करना शुरू कर दिया. बहस इस बात की कि सरकार किसकी बनेगी? क्या फॉर्मूले हो सकते है? साथ तमाम तरह के उदाहरण और रिकॉर्ड भी शेयर किए जाने लगे. इस पर चर्चा शुरू हो गई कि लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव को जनता अलग-अलग चश्मों से देखती है. तो क्या वाकई ऐसा है? चलिए आंकड़ों पर एक नजर डालकर इसे समझने की कोशिश करते हैं.

हरियाणा, महाराष्ट्र, लोकसभा चुनाव, विधानसभा चुनावरिसर्च से पता चला है कि अगर लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ हों तो अधिकतर बार जनता एक ही पार्टी को वोट देती है.

5 महीनों में बदल गया हरियाणा की जनता का मूड

लोकसभा चुनाव में जनता पीएम के चेहरे पर वोट डालती है, जबकि विधानसभा चुनाव में ये देखती है कि उनका नेता, उनका मुख्यमंत्री उम्मीदवार कौन है. तभी तो, जिस भाजपा को लोकसभा में हरियाणा में 58.2 फीसदी वोट मिले थे, अब वह महज 36.2 फीसदी रह गए हैं. यानी करीब 22 फीसदी की गिरावट. वैसे हरियाणा में पिछली बार ऐसी गिरवाट नहीं दिखी थी, लेकिन इस बार दिखी है. 2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा को 35-40 फीसदी वोट मिले थे और विधानसभा में भी स्थिति वही रही. 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी लहर ऐसी बढ़ी कि करीब 55-60 फीसदी लोगों ने भाजपा को वोट दिया और राज्य की सभी लोकसभा सीटों पर भाजपा जीती. हालांकि, 2019 के विधानसभा चुनाव में फिर से भाजपा 35-40 फीसदी वोट पर आकर टिक गई है, जो स्थिति पिछली बार थी. यानी जनता का मूड महज 5 महीनों में बदल गया.

क्या कहती है रिसर्च?

पब्लिक पॉलिसी थिंक टैंक आईडीएफसी इंस्टीट्यूट ने एक स्टडी की है, जिससे ये बात साफ हुई है कि अगर लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ कराए गए तो अधिकतर वोटर दोनों ही चुनावों में एक जैसा बर्ताव करते हैं. इसके लिए 1999, 2004, 2009 और 2014 के आंकड़ों को आधार बनाया गया है. इसके अनुसार ये साफ होता है कि अगर लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाएं तो औसतन 77 फीसदी बार ऐसा होता है कि लोग दोनों ही चुनावों में एक ही पार्टी को वोट देते हं.

ये बात एक अन्य स्टडी से भी साफ हुई है, जिसे इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, अहमदाबाद के पूर्व प्रोफेसर, डीन और डायरेक्टर इंचार्ज जगदीप छोकर और सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज़, दिल्ली के डायरेक्टर संजय कुमार ने किया है. छोकर और कुमार ने 1989 से लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराए जाने वाले 31 मौकों का विश्लेषण किया और पाया कि इनमें से 24 बार एक ही पार्टी को दोनों चुनावों में करीब बराबर वोट मिले. सिर्फ 7 मौके ही ऐसे थे, जब ये ट्रेंड देखने को नहीं मिला.

2014 के बाद की तस्वीर देखिए

2014 के लोकसभा चुनावों और उसके तुरंत बाद कराए गए विधानसभा चुनावों की तुलना करें तो भी हमें ऐसे कुछ उदाहरण दिखते हैं. इनमें 3 राज्य ऐसे हैं, जो ऊपर की स्टडी को बिल्कुल सटीक बनाती हैं. उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और हरियाणा. उत्तर प्रदेश में वोटों का अंतर 1.6 फीसदी था. यहां 2014 के लोकसभा चुनाव में 41.3 फीसदी वोट पड़े थे, जबकि विधासनभा चुनाव में 39.7 फीसदी वोट पड़े. महाराष्ट्र में ये अंतर महज 0.5 फीसदी है. लोकसभा में यहां 27.6 फीसदी वोट पड़े, जबकि विधानसभा में आंकड़ा 28.1 फीसदी हो गया. हरियाणा में ये अंतर करीब 1.5 फीसदी है. यहां लोकसभा में 34.8 फीसदी वोट पड़े थे, जबकि विधानसभा में 33.3 फीसदी वोट पड़े. खैर, महाराष्ट्र में तो इस बार 2019 में भी कुछ ऐसे ही नतीजे देखने को मिल रहे हैं, लेकिन हरियाणा में गम बदला हुआ सा है. भाजपा को करीब 22 फीसदी कम सीटें मिली हैं, जिसकी वजह से ही हरियाणा में त्रिशंकु विधानसभा की नौबत आ गई है.

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