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Updated: 26 अगस्त, 2015 04:56 PM
कमलेश सिंह
कमलेश सिंह
  @kamksingh
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गुजरात में पाटीदार आरक्षण आंदोलन का चेहरा है हार्दिक पटेल. जिसने अहमदाबाद में एक विशाल रैली को संबोधित किया और गुजराती के बजाय हिन्ही में बोलना पसंद किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जब गुजरात के मुख्य मंत्री थे, जब भी वो चाहते थे कि उनका संदेश गुजरात के बाहर भी पहुंचे, वो ऐसा ही करते थे. हार्दिक का संदेश भी सिर्फ रैली में आए हुए लोगों के लिए नहीं था बल्कि भारत के बाकी लोगों के लिए भी था, जो उन्हें टीवी पर देख रहे थे. संदेश बहुत स्पष्ट था. वो खुद को उत्तर और मध्य भारत में फैली पाटीदार जाति के भविष्य के नेता के रूप में खुद को पेश कर रहे हैं. पटेल ने गंगा के मैदानी इलाकों के कुर्मी और आंध्र प्रदेश के कम्मा लोगों को भी संबोधित किया, जिससे कि सबको पता चले कि वो गुजरात ही नहीं उसके बाहर भी देख रहे हैं.

फॉर्वर्ड मार्च

वीरामगाम से 22 वर्ष के एक लड़के ने राजनीति में अपने आगमन की घोषणा इतनी शानदार गर्जना के साथ की है कि इसने भारतीय जनता पार्टी को अपने ही सुविधा क्षेत्र गुजरात में हिला कर रख दिया है. दो महीने पहले, हार्दिक से कुछ ही लोगों को परेशानी थी. आज, पुराने अनुभवी भी नहीं जानते कि इस बाहरी व्यक्ति से कैसे निपटें, जो खुद को मैदान में उतारने के लिए गुजरात के ताकतवर पाटीदारों के लिए आरक्षण का इस्तेमाल कर रहा है. पाटीदार या पटेल पिछड़ी जाति में नहीं गिने जाते हैं. वो कम से कम गुजरात में संख्यानुसार, आर्थिक और सामाजिक रूप से इतनी मज़बूत स्थिति में हैं कि उन्हें पिछड़ा नहीं समझा जा सकता.

पत्रकार और एमनेस्टी इंटरनेशनल के भारतीय कर्णधार आकार पटेल इसे बे सिर-पैर का समझते हैं, जैसा कि अमेरिका में यहूदी, जो खुद के आर्थिक रूप से कमजोर होने का दावा कर रहे हैं. जबकि, पटेल तो अमेरिका में भी पिछड़े नहीं हैं. वो अगर सबसे सफल नहीं है तो सबसे सफल अप्रवासी समूहों में से एक तो हैं ही.

मैं भी पिछड़ा

पिछली बार जब जमींदार पटेल शहर गये और चिल्ला चिल्लाकर नारे लगा रहे थे तो वो जाति आधारित आरक्षण के खिलाफ बहुत उत्तेजित थे. ये 1980 में हुआ था, जब कांग्रेस सरकार खाम(क्षत्रीय, हरिजन, आदिवासी और मुसलमान) के अजेय समीकरण के साथ शासन कर रही थी. मुसलमानों को छोड़कर बाकी तीनों समुदायों को आरक्षण मिल गया था.

पटेल, जो गुजरात की आबादी में करीब 20 प्रतिशत का दखल रखते हैं, बीजेपी की तरफ आ गए. मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू होने के बाद, दूसरी अन्य पिछड़ी जातियां भी कोटे में आ गईं. पटेल छोड़ दिए गए. लेकिन कारोबारी और उद्दमी पटेलों ने कभी इसकी परवाह नहीं की और वो बाद में उभरते हुए गुजराती के रूप में पहचाने जाने लगे. उनकी वजह से आर्थिक उछाल आया और वो बीजेपी को अपना समर्थन देकर उसे सत्ता में ले आए. पार्टी ने पटेल प्रभुत्‍व को मजबूती देने के लिए कई योजनाओं में गुजरात के एक और महान सपूत सरदार पटेल का नाम जोड़ा, बजाए महानतम सपूत महात्‍मा गांधी के. 

कोई रहस्य़ नहीं

तो हार्दिक पटेल ने कैसे अचानक इस आंदोलन में अपनी जगह बना ली और किस तरह इतनी ताकत के साथ आगे आ गये? खैर, कारण आर्थिक और राजनीतिक दोनों हैं. छोटे और मध्यम स्तर के उद्योगों में आई मंदी के कारण वो आहत हुए, कई कंपनियों के एक बड़े समूह के रूप में, पटेलों के नेतृत्व में कई लोग मामले पर प्रभुत्व रखने के लिए उभर कर आए. सूरत का हीरा उद्योग, पटोलों का दूसरा गढ़ है, जिसे हीरे के अंतर्राष्‍ट्रीय बाजार के बाकी खि‍लाडि़यों ने बहुत आहत किया. खेती जिस पर हमेशा पटेलों का प्रभुत्व रहा, उसमें विकास हुआ, लेकिन इसे भविष्य के व्यवसाय के रूप में नहीं देखा जाता.

उन्हें कृषक परिवारों से निकले युवाओं के लिए सरकारी नौकरियों में हिस्सेदारी चाहिए. उन्हें लगता है कि वो कोटा लाभ के साथ जातियों के साथ प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकते. हार्दिक पटेल को भावनात्मक बयानबाजी का अधिकार मिल गया है. 'एक पाटीदार विद्यार्थी को 90 प्रतिशत अंकों के बाद भी एक एमबीबीएस कोर्स में दाखिला नहीं मिलता है, जबकि अनुसूचित जाति/जनजाति या अन्य पिछड़ा वर्ग के विद्यार्थियों को सिर्फ 45 प्रतिशत अंकों के साथ दाखिला मिल जाता है.' पटेल अहमदाबाद के सहजानंद कॉलेज के हालिया सनातक हैं. और सिर्फ 50 प्रतिशत अंक ही पा सके. उनके पिता किसान हैं. उन्हें पता है कि उनकी तरह दूसरे पाटीदार विद्यार्थियों के पास अगर व्यवसाय शुरू करने के लिए पर्याप्त पूंजी नहीं है, तो उनके पास बहुत कम ही विकल्प बचते हैं.

खालीपन

उन्होंने उस खीज को समझा क्योंकि वो सरदार पटेल समूह नाम के एक पाटीदार युवा समूह का हिस्सा थे, वो संस्था जिसने शुरुआत में पाटीदार अनमत आंदोलन समिति(PAAS) या पाटीदार आरक्षण आंदोलन समिति का समर्थन नहीं किया था.

नरेन्द्र मोदी जैसे दिग्गज के राज्य छोड़कर दिल्ली जाने के बाद गुजरात में आए नेतृत्व के खालीपन को भी उन्होंने महसूस किया. उनकी उत्तराधिकारी, आनंदीबेन पटेल एक पटेल हैं, लेकिन वो मोदी के जाने के बाद हुए खालीपन को भर नहीं पाईं हैं.

पटेलों के सरदार

मोदी सरदार पटेल की विरासत का दावा करने में सफल रहे, लेकिन वो जाति से पटेल नहीं हैं. आनंदीबेन मोदी की चेली हैं और मौजूदा दौर की सबसे बड़ी पटेल नेता. चूंकि केशुभाई को रिटायर होने के लिए मजबूर किया गया मोदी द्वारा. एक घांची. कई पटेल ये मानते थे कि मोदी ने एक पटेल नेता से नेतृत्व छीन लिया और उन्हें हाशिए पर लाकर खड़ा कर दिया. हार्दिक पटेल आधिकारिक तौर पर महान पटेल विरासत के उत्तराधिकारी बनना चाहते हैं.

गुज्‍जू मर्दानगी

गुजरातियों को मोदी की आक्रामकता पसंद आई. ये अतिरिक्‍त मर्दानगी उनकी प्रतिभा का हिस्सा है. उन्होंने ऐसी भाषा बोली जिससे सीधे-साधे, व्यापारी, शांतिप्रिय, शाकाहारी गुजराती जुड़े हुए नहीं थे. हार्दिक अपने कंधों पर दुगनी जिम्मेदारी के साथ सबसे ऊपर हैं. प्यार से नहीं देंगे तो छीन लेंगे.

मुख्यमंत्री आनंदीबेन ने कहा है कि पटेलों को आरक्षण देना संभव नहीं है. क्योंकि, सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार सरकारी भर्तियों में, राज्य 50 प्रतिशत सीटों से ज़्यादा आरक्षित नहीं कर सकते. अगर पटेल पिछड़ी जाति में शामिल होकर 27 प्रतिशत आरक्षण के पात्र हो जाते हैं तो इस दायरे में पहले से मौजूद पिछड़े विरोध करेंगे. क्योंकि इससे उनके लिए जगह कम होगी. हरियाणा सरकार ने जाटों को पिछड़ी जाति में सम्मिलित करके ऐसा करने की कोशिश की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने उसे खारिज कर दिया था. हार्दिक पटेल के आंदोलन की वजह से चाहे पटेलों को आरक्षण मिले या नहीं, पर हार्दिक पटेल गुजरात की राजनीति में अपनी जगह बनाने के लिए पूरी तरह से तैयार हैं. वो अभी सिर्फ 22 वर्ष के हैं, 2019 में वो चुनाव लड़ने योग्य हो जाएंगे. उनका समय शुरू होता है अब.

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