इस होली इन नेताओं के चेहरे के रंग उड़ गए हैं
लोकसभा चुनाव 2019 आने से पहले 2019 की चुनावी होली अलग ही रंग लेकर आई है. कई विपक्षी नेताओं के रंग उड़े हुए से नजर आ रहे हैं.
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2019 की होली कई मामलों में खास है. कारण ये है कि इस होली का रंग उतरने के साथ-साथ भारतीय लोकसभा इलेक्शन का आगाज़ हो जाएगा और ये आलम है कि कई नेताओं के लिए तो इस चुनाव में आर या पार वाली स्थिति है. जहां विपक्ष इस समय इतिहास की अपनी सबसे बड़ी चुनौती यानी नरेंद्र मोदी का सामना कर रहा है वहीं दूसरी ओर इस पार या उस पार की लड़ाई में ये देखना भी दिलचस्प होगा कि 2019 लोकसभा इलेक्शन की राजगद्दी के लिए और किस तरह के मुद्दे सामने आते हैं.
फिलहाल होली के पहले के हालात देखकर लग रहा है जैसे इमानदारी से इस बार कई लोगों की होली फीकी रहने वाली है. पर अगर बात करी जाए उन लोगों की जिन्हें इस इलेक्शन कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है फागुन के इस महीने में उनके चेहरे से रंग उड़े हुए हैं.
1. राहुल गांधी का चटक गुलाबी रंग भी अब उतरने लगा है..
देखिए होली के रंगों की जब भी बात होती है तो सबसे पहले खयाल आता है उस गुलाबी रंग का जिसे कई दिनों तक रगड़ो तो वो शरीर से उतरता है. भले ही किसी ने कितना भी लाल, काला, पीला रंग लगाया हो, लेकिन पानी के साथ मिलाकर लगाया जाने वाला गुलाबी रंग कई दिनों तक चेहरे की शोभा बढ़ाता है. राहुल गांधी जब आए थे तब वो इसी गुलाबी रंग की तरह थे जिनको देखकर लग रहा था कि वो अपना असर छोड़कर जाएंगे, लेकिन 2004 से 2019 तक राहुल गांधी रिकॉर्ड 29 इलेक्शन हार चुके हैं. हाल ही में हुई विधानसभा इलेक्शन में कांग्रेस की जीत को देखा जाए तो भी राहुल का ग्राफ कुछ ज्यादा तेज़ी से नहीं बढ़ा.
विपक्ष की होली इस बार थोड़ी ज्यादा फीकी नजर आ रही है
राहुल गांधी के लिए करो या मरो वाली स्थिति इतनी तगड़ी हो गई कि उन्हें खुद को शुद्ध हिंदू ब्राह्मण साबित करना पड़ा और जनेऊधारी पंडित राहुल गांधी के लिए मंदिर-मंदिर परिक्रमा करना जरूरी हो गया. खैर, सिर्फ इतनी सी बात नहीं है. राहुल गांधी के लिए राफेल मुद्दा संजीवनी बूटी की तरह हो सकता था, लेकिन उनकी कुछ गलतियों ने इसे भी उनसे छीन लिया जैसे राफेल के मामले में अपने ही भाषणों में कीमत में बार-बार बदलना और कुछ करोड़ अपनी मर्जी से ऊपर-नीचे कर देना.
मनोहर पर्रिकर को ऐसी हालत में भी इस मुद्दे पर घसीटना जब वो अपने अंतिम दिन गिन रहे थे. साथ ही, एयरस्ट्राइक के बाद सबूतों की मांग करना. राहुल का सवाल पूछना इस मामले में गलत नहीं था यकीनन विपक्ष सवाल करेगा ही, लेकिन पहले उन्हें जनता का मूड भी देखना होगा. उस समय जब जनता पाकिस्तान की हार को लेकर खुशियां मना रही थी (भले ही मुगलते में हो या सच में) उस समय उन्हें ये सवाल नहीं करने चाहिए थे. उसपर सोने पर सुहागा हुई विंग कमांडर अभिनंदन की रिहाई जिसमें क्रेडिट मोदी को चला गया. ये काफी नहीं था कि राहुल गांधी के सामने प्रियंका गांधी की राजनीतिक एंट्री का नफा नहीं नुकसान हो गया. अब उनकी छवि ऐसी बन गई कि वो कांग्रेस अध्यक्ष होने के बाद भी अकेले दम पर इलेक्शन नहीं लड़ सकते हैं. ऐसा लगा जैसे राहुल गांधी फेल हो गए.
If we analyse Rahul Gandhi’s two speeches on Rafale, they are based on a personal hatred for the Prime Minister emanating from envy. A failed student always hates the class topper.
— Chowkidar Arun Jaitley (@arunjaitley) February 10, 2019
सिर्फ अपनी राजनीतिक गलतियों के ही नहीं राहुल गांधी किस्मत के कारण भी परेशान रहे हैं और यही कारण है कि 2019 चुनावों से पहले राहुल गांधी का रंग उड़ा हुआ सा लगता है.
2. पलाश के फूल जैसे केसरिया रंग के साथ खिले अरविंद केजरीवाल अब पतझड़ के पत्ते की तरह बेरंग हो गए हैं..
देखिए अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक एंट्री उसी तरह थी जिस तरह फागुन का मौसम आते-आते लोग पलाश के फूल और उसके केसरिया रंग के कायल हो जाते हैं उसी तरह तेज़ गर्मी आते ही पेड़ों के पत्ते गिरने लगते हैं और ये रंग कुछ फीके से हो जाते हैं केजरीवाल के साथ भी यही हुआ. जन लोकपाल के मुद्दे में अन्ना हज़ारे से जुड़े और इस तरह अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की कि लगा अब भारत को ऐसा नेता मिल गया है जो पढ़ा-लिखा भी है, इमानदार भी है, खुद के दम पर खड़ा हुआ है और लोगों को केजरीवाल में नायक का अनिक कपूर दिखने लगा जो दिल्ली को लंदन से भी बेहतर बना देगा, लेकिन हुआ क्या?
केजरीवाल की स्थिति कुआं और खाई वाली हो गई है
केजरीवाल 2012 में आम आदमी की छवि लेकर आए और 2013 खत्म होते-होते ही उनकी आरोप प्रत्यारोप की राजनीति दिखने लगी. 28 दिसंबर को केजरीवाल ने दिल्ली के दूसरे सबसे युवा मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली और फिर वो 14 फरवरी आते-आते इस्तीफा दे चुके थे. यानी जिस संघर्ष का नाम लेकर वो आगे बढ़े थे उसे शुरुआती दौर में ही छोड़ दिया.
अगर बात 2019 चुनावों की करें तो फिलहाल उनकी ये छवि बन चुकी है कि वो सिर्फ और सिर्फ आरोप लगाते हैं (भले ही केजरीवाल ने कितने भी सही काम किए हों, लेकिन इलेक्शन में छवि बहुत गहरा रोल निभाती है.). फिलहाल वो पुलवामा आतंकी हमले और पाकिस्तान और राफेल और देश की सुरक्षा की नहीं दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की बात कर रहे हैं और उन्हें न ही मीडिया कवरेज मिल रहा है न ही सोशल मीडिया सपोर्ट.
आलम ये था कि शुरुआती दौर में कांग्रेस को बुरा भला कहकर सत्ता में आने वाले केजरीवाल 2019 इलेक्शन के लिए कांग्रेस के साथ गठबंधन की बात भी सोचने लगे और वो भी मना हो गया. हाल ही में आई खबर के मुताबिक दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित कांग्रेस आलाकमान से कह चुकी हैं कि आप के साथ कोई गठबंधन नहीं होगा.
अब केजरीवाल के लिए भी पनघट की राह बहुत मुश्किल हो गई है.
3. पश्चिम बंगाल की हरियाली अब काली हो गई है ममता बनर्जी के लिए..
हमारी इस लिस्ट में ममता बनर्जी का नाम शामिल होना ही था. देखिए उसके दो बड़े कारण हैं. पहला ये कि ममता बनर्जी जिन्हें 2019 लोकसभा इलेक्शन के लिए प्रधानमंत्री पद का अहम उम्मीदवार भी माना जा रहा था वो अब विपक्ष महागठबंधन के चक्रव्यूह में फंसने के बाद पहला घेरा ही पार नहीं कर पाई हैं. और दूसरा ये कि जितना दम ममता बनर्जी ने धरने में बैठने में लगाया था उतने में उनकी छवि कम से कम बंगाल के अलावा अन्य राज्यों के सामने धूमिल हो गई थी.
देखिए मैं दीदी के जज्बे की काफी कदर करती हूं और ये मानती हूं कि वो एक बहुत ही मजबूत नेता हैं जिसमें इतनी हिम्मत है कि वो न सिर्फ समाज की बुराइयों से बल्कि केंद्र सरकार से भी लड़ सकती है और तृणमूल कांग्रेस की लाइफलाइन वही हैं. लेकिन फिर भी राफेल मामले में उनके सवाल, सीबीआई और कोलकाता पुलिस के मामले ने इस तरह तूल पकड़ा कि चिट फंड घोटाले की खबरें फिर सामने आ गईं.
ममता बनर्जी के सामने चिट फंड घोटाला एक बार फिर आकर खड़ा हो गया है
केंद्र में थे कोलकाता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार, जिसके इर्द-गिर्द CBI, ममता बनर्जी, कोलकता पुलिस, सुप्रीम कोर्ट और मोदी सरकार आपस में उलझे हुए हैं. केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) की टीम ने कोलकता पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार के घर छापा मारा, तो दांव उल्टा ही पड़ गया. पहले तो पुलिस ने उस टीम को घर में घुसने नहीं दिया, फिर सीबीआई के अधिकारियों को गिरफ्तार भी कर लिया. इतना ही नहीं कुछ ही देर में ममता बनर्जी खुद पुलिस कमिश्नर के बचाव में उतर गई थीं. और राजीव कुमार को साथ लेकर धरने पर बैठ गईं.
ये काफी नहीं था राफेल मामता छोड़िए ममता ने जिस तरह एयरस्ट्राइक पर सवाल उठाए उन्हें देशद्रोही का ही टैग मिल गया. अगर सवाल उठाने से पहले ममता बनर्जी थोड़ा संयम रखतीं तो भी ठीक था, लेकिन फिलहाल तो यही लग रहा है जिस तरह होली का चटक हरा रंग जाते जाते चेहरे को बदरंग कर जाता है वो ममता बनर्जी के साथ हो रहा है.
4. चमकते पीले सूरज जैसे भविष्य की जगह अखिलेश यादव पर चिंता की बदली छा गई..
अखिलेश यादव एक बहुत बेहतरीन नेता बन सकते थे, लेकिन उनकी काबिलियत सिर्फ यूपी तक ही सीमित रह गई और साथ ही उनके पिता का साथ छूटना किसी भी संस्कारी बेटे के लिए बदनामी का कारण बन सकता है और यही हुआ अखिलेश यादव की सबसे बड़ी गलती की बात करें तो 'यूपी को ये साथ पसंद है' नारा ही उन्हें ले डूबा. कांग्रेस के साथ 'यूपी के लड़के' वाला खेल न जनता को पसंद आया न खुद सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह को.
यहां तो मुलायम सिंह यादव ने ही कह दिया कि अगला पीएम मोदी ही होंगे
विधि का विधान देखिए जो इंसान विपक्ष की एक बड़ी पार्टी का कर्ता-धर्ता हैं अब कांग्रेस से कन्नी काट चुके हैं और मोदी लहर जो अब चौकीदार लहर बन चुकी है उसे रोक पाना सिर्फ सपा-बसपा के लिए आसान तो नहीं हैं. भले ही वो यूपी बचा भी ले जाएं (योगी आदित्यनाथ के विरोध की शुरुआत दिखती है.) वो सपा-बसपा गठबंधन के कारण होगा जो मायावति और अखिलेश जो अब बुआ-भतीजा राजनीति कर रहे हैं उसका परिणाम सिर्फ एक राज्य तक ही सीमित हो गया है.
अखिलेश यादव के चमकीले भविष्य पर सबसे बड़ा सवाल तो उनके पिता ने ही खड़ा कर दिया जब उन्होंने ये कहा कि 2019 चुनावों में भी नरेंद्र मोदी ही प्रधानमंत्री बनेंगे.
5. लाल रंग का तेज अब तेजस्वी यादव के चेहरे से गायब हो चुका है..
अगर होली की बात हो और लालू परिवार का जिक्र न हो तो ये गलत हो जाएगा. 2019 चुनावी होली लालू प्रसाद यादव के परिवार के हर सदस्य के लिए बेहद फीकी रहने वाली है. पहले से आरजेडी सुप्रीमो जेल में हैं तो लालू प्रसाद यादव की रंगीन होली पार्टी नहीं होगी और मेरे साथ-साथ कई लोग लालू के ढोलक बजाने और धुत कहने को याद करेंगे! दूसरा आरजेडी का भविष्य यकीनन एक ऐसे दोराहे पर आकर खड़ा हो गया है जहां एक तरफ कुआं तो दूसरी तरफ खाई है.
पिता और बड़े भाई दोनों से ही चुनावी मदद की गुंजाइश कम हो गई है.
खुद ही सोचिए तेज प्रताप यादव तो बंसी बजाते हुए चुनाव से ज्यादा अपनी गृहस्थ जिंदगी को लेकर ज्यादा परेशान हैं. कभी कृष्ण तो कभी सुदामा बन जाते हैं. तो दूसरी ओर तेजस्वी यादव की चाल भी उलटी ही पड़ रही है. कांग्रेस के साथ उनका गठबंधन किस ओर पतंग को ले जाएगा ये तो हवा के रुख से भी नहीं पता किया जा सकता.
तेजस्वी यादव की परेशानी बहुत बड़ी है. न तो पिता का साथ मिल रहा है न ही बड़े भाई का. हां, मां राबड़ी देवी तो साथ हैं, लेकिन अभी भी यादव परिवार पर चल रहे कई केस उनके गले ही हड्डी बन गए हैं. बड़े भाई तो छोड़िए बड़ी बहन मीसा भारती भी घोटाला केस में फंसी हुई हैं. ऐसे में तेजस्वी यादव का तेज को खोना ही है.
'बुरा न मानो चुनावी होली है...'
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