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Updated: 13 दिसम्बर, 2017 07:27 PM
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2014 का आम चुनाव बीजेपी ने 'विकास' के गुजरात मॉडल लड़ा और जीत हासिल की. तीन साल बाद विकास का वही 'मॉडल' गुजरात में ही रंग बदलता नजर आया. सबसे दिलचस्प बात तो ये रही कि पहले चरण में जहां विकास को लेकर तू-तू, मैं-मैं होती रही, दूसरा दौर आते आते विकास वास्तव में कहीं खो सा गया, जाते जाते तो उसकी नुमाइश की झलक भर ही दिखी.

ब्लू व्हेल गेम, मगर किसके लिए?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस के लिए गुजरात चुनावों की तुलना ब्लू व्हेल गेम से की. मोदी ने कहा कि इस गेम का अंतिम एपिसोड 18 दिसंबर को खेला जाएगा. दरअसल, 18 दिसंबर को वोटों की गिनती होनी है और नतीजे आने हैं.

narendra modiमंदिर-मंदिर...

प्रधानमंत्री मोदी बोले, "जब पहले दौर के मतदान में भाजपा की जीत के संकेत मिल गए तो कांग्रेस के लोग राहुल गांधी के बचाव के तरीके खोजने में लग गए हैं. मतदान शुरू होने के एक घंटे बाद वरिष्ठ नेताओं ने 'ईवीएम ईवीएम' चिल्लाना शुरू कर दिया... कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने तो यह दावा भी किया कि ब्लूटूथ से जोड़कर ईवीएम को हैक कर लिया गया है... वे ब्लूटूथ, ब्लूटूथ चिल्ला रहे हैं, लेकिन वे ब्लू व्हेल गेम में फंस गए हैं और गेम का अंतिम एपिसोड 18 दिसंबर को खेला जाएगा."

गुजरात में सत्ताधारी बीजेपी के लिए इस बार उसके परंपरागत वोट ही मुश्किल साबित हो रहे हैं. खास बात ये है कि ये वोट कांग्रेस के पाले में पहुंचे नजर आ रहे हैं. पहले दौर में जहां बीजेपी सूरत में जूझती रही तो दूसरे दौर में उसे मेहसाणा में वैतरणी पार करनी है. दूसरे दौर में वोटिंग उन इलाकों में होने जा रही है जहां पाटीदार आंदोलन हुआ और बीजेपी के प्रति नाराजगी बढ़ी हुई है.

पहले दौर में सौराष्ट्र, कच्छ और दक्षिण गुजरात में चुनाव हुए जबकि दूसरे दौर में उत्तरी गुजरात में मतदान होने हैं. 2012 के विधानसभा चुनाव में सौराष्ट्र की 54 सीटों में बीजेपी 34 और कांग्रेस ने 20 सीटों पर जीत दर्ज की थी. सौराष्ट्र में बड़ी आबादी पाटीदार समाज की है और वे कम से कम तीन दर्जन सीटों पर किसी को भी हराने और जिताने का फैसला करते हैं. हार्दिक पटेल का असर जिला पंचायत चुनावों में भी दिखा. 2015 के पंचायत चुनाव में सौराष्ट्र की 11 में से 8 सीटों पर कांग्रेस ने कब्जा कर लिया था.

दूसरे दौर में 32 सीटों वाला उत्तरी गुजरात काफी अहम है. 2012 कांग्रेस ने 32 में से 17 सीटें जीती थीं, लेकिन इस बार कांग्रेस की गाड़ी फंस गयी है. यहां की 13 सीटों पर 16 बागी उम्मीदवार कांग्रेस के आधिकारिक प्रत्याशी को खुलेआम चुनौती दे रहे हैं. सबसे ज्यादा मुश्किल तो बनासकांठा में है, जहां नौ में से पांच सीटों पर कांग्रेस बागियों से जूझ रही है. इससे भी बुरा हाल तो वडगाम का है जो कांग्रेस का गढ़ रहा है. यहां जिग्नेश मेवाणी निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं और कांग्रेस के दो दो बागी उन्हें मैदान में चैलेंज कर रहे हैं.

कांग्रेस की यही कमजोरी बीजेपी के लिए बड़ी राहत की बात है. बीजेपी के लिए राहत की ऐसी ही बात आदिवासियों के लिए आरक्षित 27 सीटें हो सकती हैं. दूसरे दौर में पंचमहल, छोटा उदयपुर और दाहोद में वोटिंग होनी है जिनमें अधिकतर ऐसी ही सीटें हैं. कांग्रेस के पास फिलहाल 27 में से 16 सीटें हैं.

पाटीदारों की ही तरह दलित भी बीजेपी के वोटर रहे हैं, लेकिन ऊना की घटना के बाद जिग्नेश मेवाणी ने सब तहस नहस कर दिया है. हार्दिक की तरह मेवाणी भी बीजेपी के विरोध में खड़े हैं, लिहाजा उनका सपोर्ट कांग्रेस को मिला है. 2012 में बीजेपी 13 सुरक्षित सीटों में से 10 जीतने में कामयाब रही, लेकिन इस बार वैसा होने से रहा.

सच तो ये है कि ब्लू व्हेल गेम का अंतिम एपिसोड तो 14 दिसंबर को ही खेला जाना है - 18 को तो स्कोर बोर्ड पर गेम के में किसके कितने मार्क्स हैं ये देखने को मिलेंगे. वैसे सवाल ये है कि ये चुनाव ब्लू व्हेल गेम किसके लिए साबित होने जा रहा है - बीजेपी या कांग्रेस के लिए?

एक था 'विकास'...

गुजरात में अभी चुनाव का माहौल ठीक से बना भी नहीं था कि कांग्रेस के एक सोशल मीडिया कैंपेन ने जोर पकड़ लिया - 'विकास गांडो थयो छे!' बीजेपी और कांग्रेस की शुरुआती चुनावी मुहिम में तो विकास पर ही नोक-झोंक होती रही, लेकिन बीजेपी के काउंटर स्टैटेजी अपनाते ही राहुल गांधी नोटबंदी और जीएसटी पर जोरदार हमले शुरू कर दिये. राहुल ने तो जीएसटी का फुल फॉर्म भी 'गब्बर सिंह टैक्स' गढ़ डाला.

शुरू शुरू में राहुल गांधी बीजेपी सरकार के विकास के दावे की खिल्ली उड़ाने के साथ ही घूम घूम कहते रहे कि प्रधानमंत्री मोदी की बातें और दावे झूठ का पुलिंदा हैं. जैसे ही बीजेपी ने विकास को गुजरात की अस्मिता से जोड़ दिया, राहुल गांधी को पीछे हटना पड़ा और प्रधानमंत्री पद के सम्मान के नाम पर विकास का मजाक उड़ाना बंद करना पड़ा.

तभी अचानक खुद को फ्रीलांस कांग्रेसी कहने वाले मणिशंकर अय्यर वाइल्ड कार्ड एंट्री लेते हुए टपक पड़े. मणिशंकर ने प्रधानमंत्री मोदी को नीच और असभ्य कह दिया. फिर तो पूरा माजरा ही बदल गया. विकास काफी पीछे छूट गया और फिर मोदी और उनके साथी वो सूची लेकर लोगों के बीच पहुंच गये कि कब कब कांग्रेस नेताओं ने मोदी के लिए कौन कौन सी बातें कहीं.

narendra modiफिर पहली बार...

पहले दौर में जो जोर आजमाइश नोटबंदी और गब्बर सिंह टैक्स पर होती रही, वो दूसरा दौर आते आते विकास को ओवरटेक कर पाकिस्तान विमर्श पर पहुंच गयी. बड़े दिनों बाद देश में कुछ ऐसा हो रहा था जिसमें विदेशी ताकतों का हाथ समझाया जाने लगा.

वो नदी का किनारा, वो सर्कस की बातें...

तीन साल पहले भी एक प्रोग्राम में प्रधानमंत्री मोदी ने साबरमती के किनारे और सर्कस की बातें साझा की थीं. अक्टूबर, 2014 में एक कार्यक्रम में मोदी ने कहा, "मैं अपना अनुभव बताता हूं, आप लोगों ने आज से दस साल पहले साबरमती नदी देखी होगी तो, और किसी बच्चे को कहा जाए कि साबरमती पर निबंध लिखो तो वो लिखता था कि नदी में बालू होती है, सर्कस के टेंट लगते हैं, क्रिकेट खेलने के लिए अच्छी जगह होती है. क्योंकि उसे मालूम नहीं था कि वहां पानी होता था, नदी में पानी होता है, ये साबरमती के तट पर रहने वालों को पता नहीं था. जब उसको नर्मदा नदी के पानी से जोड़ा गया, और साबरमती नदी को जिंदा किया गया, रिवर फ्रंट बनाया गया. दुनिया की नजरों में तो इतना ही है कि वाह, रिवरफ्रंट बहुत अच्छा लगता है, हिन्दुस्तान में पहला रिवरफ्रंट बना, लेकिन वहां जो और उपयोग हुआ, उसके कारण रेन वाटर हार्वेस्टिंग हुआ और... नर्मदा का पानी आया... वाटर लेवल ऊपर आया." 12 दिसंबर को साबरमती रिवर फ्रंट पर लोगों की भीड़ उमड़ी हुई थी - और प्रधानमंत्री मोदी कैमरों की चकाचौंध के बीच सी प्लेन में सवार होने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री बने. ये भी गुजरात चुनाव की एक झलकी ही रही जब मोदी ने जमीन से पानी में जाकर हवा में उड़ान भरी.

प्रधानमंत्री मोदी ने लोगों को अपने मुख्यमंत्रित्व काल की उपलब्धियों की बात की और याद दिलाया कि किस तरह साबरमती नदी के तट का इस्तेमाल सिर्फ सर्कस के लिए किया जाता था. मोदी ने ये याद दिलाने की कोशिश की कि किस तरह से उन्होंने नदी किनारे विकास को लेकर तमाम मुश्किलें झेलीं. प्रचार का दौर खत्म होते होते विकास की शायद ये आखिरी झलक थी.

चुनाव के पहले दौर तक मोदी बतौर प्रधानमंत्री गुजरात का दौरा करते रहे, दूसरा दौर आते आते ऐसा लगा जैसे वो सवा अरब देशवासियों के प्रधानमंत्री नहीं बल्कि पांच करोड़ गुजरातियों के मुख्यमंत्री हैं, जबकि उन्हें पीएम होने का अहसास दिलाने के लिए उनकी पूरी कैबिनेट आस पास डेरा डाले रही. गुजरात के नतीजे जो भी हों, ये तो साफ है कांग्रेस ने मोदी से न सिर्फ ब्रह्मास्त्र निकलवा दिया, बल्कि उसका इतना इस्तेमाल करा दिया. अब या तो उन्हें कोई नया ब्रह्मास्त्र तैयार करना होगा या फिर मैदान में उतरने के लिए कोई और पैंतरा आजमाना होगा.

rahul gandhi'पप्पू' नहीं 'युवराज'...

कांग्रेस के साथ एक बड़ी बात और भी देखने को मिली. ये राहुल गांधी के नये अवतार की खासियत रही हो या फिर उनके अध्यक्ष पद की जिम्मेदारियों का अहसास, तमाम कोशिशों के बावजूद राहुल गांधी कभी मोदी के उकसावे में नहीं आये. मोदी ने मुस्लिमों के नाम पर खूब उकसाया लेकिन राहुल खामोश रहे. वो मंदिर मंदिर जाते रहे, तिलक लगवाते रहे, लेकिन बीजेपी नेताओं के उस सवाल का जवाब नहीं दिया कि आखिर अयोध्या पर उनका स्टैंड क्या है. उल्टे प्रधानमंत्री मोदी से गुजरात में 22 साल के बीजेपी शासन पर 14 सवाल पूछ डाले और कहा कि किसी का जवाब नहीं मिला.

चुनाव के दोनों दौर के फर्क और कॉमन बातों पर गौर करें तो लगता तो यही है कि कांग्रेस बीजेपी को उसी के एजेंडे में फंसा कर शिकस्त देने की रणनीति पर काम कर रही है - गुजरात के मैदान में इसी का रिहर्सल चल रही थी.

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