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Updated: 18 दिसम्बर, 2017 02:26 PM
धीरेंद्र राय
धीरेंद्र राय
  @dhirendra.rai01
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दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी होने का दावा करने वाली बीजेपी के लिए गुजरात जैसे राज्य में बमुश्किल जीत हासिल करना चौंकाता है. एक समय तो वो भी आया था, जब रुझान कांग्रेस के पक्ष में जाते हुए दिख रहे थे. लेकिन, आखिरकार बीजेपी के लिए राहत की खबर आई. करीबी मुकाबले में बीजेपी को निर्णायक बढ़त मिल गई. मोदी को उनके गुजरात ने मायूस नहीं किया. लेकिन राहुल गांधी को भी खाली हाथ नहीं भेजा. गुजरात चुनाव के कुछ संदेश ऐसे हैं, जो बीजेपी के चुनावी योद्धाओं को सोचने पर जरूर मजबूर करेंगे.

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1. बीजेपी 150 सीट नहीं ला पाई:

देश में जिस लोकप्रियता के दौर में बीजेपी है, उसमें उसका हर दावा सच होता दिखता है. लेकिन गुजरात ने इस पार्टी को सोचने के लिए कई मुद्दे दिए हैं. जिस राज्य में कॉन्फिडेंट सत्ता के बल पर वह केंद्र तक पहुंची है, उसी राज्य ने उसे 100 सीटों के नजदीक लाकर कड़ा संदेश दिया है. यह हार-जीत की सीमा से ज्यादा दूर नहीं था.

2. इकोनॉमी चिंता का कारण है:

चार महीने पहले जिस हालत में कांग्रेस और बीजेपी एक-दूसरे के सामने थे. बीजेपी के लिए गुजरात में डेढ़ सौ सीटें जीतना बाएं हाथ का खेल लग रहा था. शंकरसिंह वाघेला का धड़ा कांग्रेस का साथ छोड़ चुका था. लेकिन जैसे ही नोटबंदी को लेकर RBI ने अपनी रिपोर्ट दी, बीजेपी के लिए मामला निगेटिव होने लगा. रही सही कसर GST ने पूरी कर दी.

3. गुजरात जैसे-तैसे जीती है पार्टी:

बीजेपी जिस कॉन्फिडेंस में रही है और कांग्रेस जिस बैकफुट पर, उस दौर में एक समय टीवी पर बीजेपी को पिछड़ते देखकर कई लोगों की दिल की धड़कन तेज हो गई होगी. एक ऐसे समय जब कांग्रेस के पास ऑफर करने के लिए कुछ नहीं था, उसे लोगों ने जीत तो नहीं दी, लेकिन एक ताकतवर विपक्ष के रूप में खड़ा किया है. इस चुनाव परिणाम के बारे में तो बीजेपी ने कभी कल्पना भी नहीं की होगी.

4. मुख्यमंत्री किसे बनाएंगे:

नरेंद्र मोदी के केंद्र में जाने के बाद बीजेपी को गुजरात में सबसे ज्यारदा परेशानी अपने नेतृत्व को लेकर हुई है. पहले आनंदी बेन पटेल के हाथ में सत्ता सौंपी गई, लेकिन राज्य में पाटीदार आरक्षण आंदोलन को ठीक से कंट्रोल न कर पाने के कारण उन्हें हटाना पड़ा. विजय रूपानी भी गुजरात में कोई प्रभावी नेतृत्व नहीं दे पाए. और आखिर में पार्टी पूरी तरह से मोदी पर ही निर्भर हो गई, जिन्होंने एक मुख्यमंत्री की तरह यह चुनाव लड़ा. तो क्या अब नई विधानसभा में, जहां कांग्रेस ज्यादा ताकत के साथ विपक्ष में बैठेगी. और उसे सदन के भीतर अल्पेश ठाकोर और जिग्नेश मेवाणी का साथ मिलेगा. ऐसे में अब सभी की नजरें बीजेपी की ओर होंगी कि वह विजय रूपानी पर ही भरोसा दिखाती है या कोई नया नेता राज्य में खड़ा करेगी.

5. गुजरात ने देश के भीतर अपनी छवि बदली है

जिस राज्यु को 2002 से देश का अलग ही हिस्सा मान लिया गया था. यह कहा जाने लगा था कि गुजरात पूरी तरह भगवा रंग में रंग चुका है. और यहां से बीजेपी को कोई भी हटा नहीं सकता. लेकिन उसी गुजरात ने बीजेपी को ही नहीं, बल्कि देश को सबक दिए हैं. गुजरात के लोग अपने हितों को लेकर सबसे ज्यादा चैतन्यी हैं. वे मरणासन्न कांग्रेस में भी जान फूंकने को तैयार हैं. यदि उसका नेतृत्व भरोसा दिखाने वाला काम करे.

6. राज्य में चुनौतियां शंकरसिंह वाघेला और केशूभाई पटेल जैसी नहीं रहीं:

एक दौर था, जब गुजरात में मोदी का सियासी गणित सारे विरोधियों पर भारी पड़ता था. बीजेपी के दबदबे को कायम रखने में अमित शाह जैसे सिपेहसालार हमेशा मौजूद होते थे. जिन्होंने पहले केशूभाई पटेल के विरोध को जीरो किया, फिर शंकरसिंह वाघेला जैसे विरोधी को न्यू्ट्रल बनाया. लेकिन गुजरात में बीजेपी को ताजा चुनौती तीन युवा नेताओं से मिल रही है. जिग्नेश, अल्पेश और हार्दिक की तिकड़ी बीजेपी को परेशान करने के लिए कमर कसकर बैठी है. ये तीनों युवा नेता लोगों से मिलते हैं और उन्हेंप बीजेपी की हर छोटी-बड़ी नाकामी से आगाह करते हैं. इन नेताओं की चुनौतियों से निपटने के लिए बीजेपी को अपने परंपरागत वोट बैंक से आगे जाकर सोचना होगा.

वैसे तो बीजेपी को कोई भी चुनाव जिताने में मोदी एक निर्णायक क्षमता रखते हैं. लेकिन गुजरात जैसे संवेदनशील राज्य में बीजेपी का यह खेल ज्यादा समय तक चल पाएगा, इस पर शक है. कांग्रेस ने यहां संभावनाओं को सूंघ लिया है. वह बीजेपी के खिलाफ छोटे से छोटे असंतोष को बढ़ावा देना चाहेगी. उसके लिए यही काफी होगा, कि जिस गुजरात के मॉडल को दिखाकर बीजेपी ने देश के दिल में जगह बनाई थी, वहीं बीजेपी परेशान है.

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धीरेंद्र राय धीरेंद्र राय @dhirendra.rai01

लेखक ichowk.in के संपादक हैं.

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