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Updated: 03 फरवरी, 2021 07:01 PM
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विशुद्ध रूप से राजनीतिक हो चुके किसान आंदोलन (Farmer Protest) की तपिश से राजधानी को बचाने की कोशिशों का दौर शुरू हो चुका है. संयुक्त किसान मोर्चा ने आगामी 6 फरवरी को देशभर में तीन घंटे के लिए चक्का जाम का ऐलान किया है. चक्का जाम की वजह से फिर अराजकता और हिंसा न फैले इसके लिए दिल्ली पुलिस ने सीमाओं पर 6 लेयर बैरिकेडिंग की है. जिसमें कंटीले तार, सीमेंट ब्लॉक, रोड पर नुकीली कीलें लगाई गई हैं. इतने भारी सुरक्षा इंतजामों की जरूरत क्यों पड़ रही है, इस सवाल का जवाब बहुत सीधा है. 26 जनवरी को किसानों की ट्रैक्टर परेड में हुई हिंसा (Delhi Violence) और अराजकता के नंगे नाच के बाद से दिल्ली पुलिस (Delhi Police) ने उपद्रवियों पर नकेल कसना शुरू कर दिया है. बीते कुछ दिनों में हुए सिलसिलेवार घटनाक्रमों के चलते उत्तर प्रदेश का गाजीपुर बॉर्डर (Ghazipur Border) किसानों के विरोध प्रदर्शन का केंद्र बन गया है. हालांकि, टिकरी और सिंघु बॉर्डर पर भी भारी संख्या में किसानों का जमावड़ा लगा हुआ है. गाजीपुर बॉर्डर पर आंदोलन का नेतृत्‍व कर रहे किसान नेता राकेश टिकैत (Rakesh Tikait) इस समय फुल फॉर्म में हैं. यूपी के मुजफ्फरनगर में किसान महापंचायत होने के बाद मिले समर्थन ने उनका जोश सातवें आसमान पर पहुंचा दिया है. आज ही राकेश टिकैत ने किसान आंदोलन को एक नया नारा 'कानून वापसी नहीं, तो घर वापसी नहीं' दिया है. साथ ही आंदोलन के इस साल अक्टूबर तक चलने की ओर भी इशारा कर दिया है. ऐसे में ये कहना गलत नहीं होगा कि जब इन कथित किसानों का इरादा 'दिल्‍ली फतेह' का है, तो राजधानी की सुरक्षा क्‍यों न की जाए?

दिल्ली पुलिस ने सीमाओं पर 6 लेयर बैरिकेडिंग की है. जिसमें कंटीले तार, सीमेंट ब्लॉक, रोड पर नुकीली कीलें लगाई गई हैं.दिल्ली पुलिस ने सीमाओं पर 6 लेयर बैरिकेडिंग की है. जिसमें कंटीले तार, सीमेंट ब्लॉक, रोड पर नुकीली कीलें लगाई गई हैं.

भारतीय किसान यूनियन (BKU) के प्रवक्ता राकेश टिकैत किसान आंदोलन की शुरूआत से ही अपने बयानों को लेकर विवादों में रहे हैं. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट समुदाय से ताल्लुक रखने वाले राकेश टिकैत को हरियाणा-पंजाब के किसानों का भी समर्थन मिल रहा है. दिल्ली में ट्रैक्टर परेड निकालने का आइडिया देने वाले राकेश टिकैत आंदोलन की शुरुआत से ही विवादित बयान दे रहे हैं. टिकैत के कुछ भड़काऊ बयान सोशल मीडिया पर लगातार वायरल हुए हैं. करीब एक महीने पहले राकेश टिकैत ने मोदी सरकार को सीधे तौर पर धमकी दी थी कि सरकार दिल्ली में रोजमर्रा की जरूरतों का सामान हवाई जहाज से मंगवाने की व्यवस्था कर ले. किसान दिल्ली बॉर्डर को पूरी तरह सील कर देंगे. वहीं, दिल्ली में हुई हिंसा के बाद टिकैत ने कहा था कि सरकार ने उपद्रवियों को गोली क्यों नहीं मारी. अगर सरकार हिंसा को रोकने के लिए ये कदम उठा लेती, तो यही लोग कहते नजर आते कि किसानों को गोली मारी जा रही है. टिकैत का ये बयान और आज का बयान साफ इशारा करता है कि इन कथित किसानों और किसान नेताओं का कृषि कानूनों के मुद्दे को हल करनेका इरादा नहीं है. सरकार और किसान संगठनों की पहले हुई एक बैठक में किसान नेता बलवंत सिंह बहरामके ने अपनी डायरी में लिखा था कि हम मरेंगे या जीतेंगे. ये तस्वीर खूब वायरल हुई. इस तस्वीर के मायने सबके लिए अलग-अलग हो सकते हैं. लेकिन, क्या ये नहीं माना जाए कि कथित किसान नेता अपनी ओर से किसानों को मरने और मारने के लिए उकसाने की पूरी कोशिश कर रहे हैं. माना जा सकता है कि ये सभी शाहीन बाग प्रदर्शन का स्थापित मॉडल अपनाकर एक बार फिर से अराजकता फैलाने की ओर कदम बढ़ा रहे है.

 

40 किसान संगठनों ने मिलकर एक संयुक्त किसान मोर्चा बनाया है. इन संगठनों के कई नेताओं को पुलिस ने दिल्ली हिंसा के मामले में नोटिस जारी किया हुआ है. यहां बताना जरूरी है कि मोदी सरकार के कृषि कानूनों पर रोक लगाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक समिति बनाई थी. इन किसान संगठनों ने उस समिति का भी विरोध किया था. किसान संगठनों की सीधी मांग थी कि कृषि कानूनों को रद्द किया जाए. सरकार और किसान संगठनों के बीच तमाम बैठकों के दौर बेनतीजा रहे. मोदी सरकार ने कृषि कानूनों को डेढ़ साल के लिए टालने का भी विकल्प किसान संगठनों को दिया. लेकिन, किसान संगठन कानूनों को रद्द करने की अपनी मांग से नहीं हिले. किसी भी मामले का हल निकालने के लिए दोनों पक्षों के बीच कुछ मामलों पर आम सहमति बनाने की कोशिश की जाती है. लेकिन, यहां किसान संगठन किसी भी हाल में झुकने को तैयार नहीं हैं. 40 किसान संगठनों में हर किसी की अपनी राजनीतिक मजबूरियां हैं. कोई लाल है तो कोई नीला, कोई हरा है तो कोई पीला. अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धताओं के चलते भी इन संगठनों को किसान आंदोलन को बनाए रखना जरूरी है. किसान आंदोलन पर खालिस्तान समर्थक, टुकड़े-टुकड़े गैंग जैसे कई आरोप पहले ही लग चुके हैं.

मोदी सरकार और किसानों के बीच जारी गतिरोध अब आरपार की लड़ाई की ओर बढ़ गया है. किसान संगठन कृषि कानूनों को रद्द करने से कम में मानने को तैयार नही हैं. वहीं, केंद्र सरकार किसान संगठनों को समझाने के सारे प्रयास कर चुकी है. बजट 2021 के आंकड़ों के अनुसार, बीते साल किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) करीब डेढ़ गुना मिला है. बावजूद इसके आखिर वो क्या वजह है कि किसानों को अपने फायदे की बात समझ नहीं आ रही है. दरअसल, ये किसान संगठन हमेशा ही किसानों के तमाम मुद्दों को लेकर आंदोलन और संघर्ष करते रहते हैं. ऐसे में किसानों के सामने भी इनका समर्थन करने की मजबूरी है. अगर आज ये इनका समर्थन नहीं करेंगे, तो आगे किसानों के लिए भी समस्या है. पंजाब में किसान आंदोलन में हिस्सा ना लेने वाले परिवार पर 1500 रुपए का जुर्माने लगाया जा रहा है. जुर्माना ना चुकाने पर हुक्का-पानी बंद करने का आदेश जारी हुआ है. ऐसे में समझा जा सकता है कि किसान अगर ना भी चाहे, तो इन संगठनों का साथ नहीं छोड़ सकता है.

किसान संगठन कृषि कानूनों को रद्द करने से कम में मानने को तैयार नही हैं.किसान संगठन कृषि कानूनों को रद्द करने से कम में मानने को तैयार नही हैं.

विपक्षी राजनीतिक दलों का समर्थन किसान आंदोलन को मिलने से इसके सरकार के खिलाफ और उग्र होने का खतरा बढ़ गया है. सत्ता से लंबे समय से दूर चल रहे राजनीतिक दलों को किसान आंदोलन के सहारे अपनी राजनीति चमकाने का अवसर मिल गया है. जब तक ये प्रदर्शन उग्र होकर 'आग' नहीं लगाएगा, तब तक इन दलों की सियासी रोटियां नहीं सेंकी जा सकेंगी. दिल्ली की सीमाओं पर किसानों के आंदोलन स्थल पर पुलिस द्वारा कंटीले तार और सीमेंट के ब्लॉक रखने पर राहुल गांधी कह रहे हैं कि भारत सरकार पुल बनाए, दीवारें नहीं. कहा जा सकता है कि किसान संगठन और राजनीतिक दल मिलकर देश में अराजकता और अस्थिरता पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं. ये सभी सरकार को लगातार उकसाने की कोशिश कर रहे हैं. जिससे एक गलत कदम उठाने पर ये सभी सरकार को घेर सकें. किसान नेता हों या राजनीतिक दल, जब इनका इरादा ही 'दिल्ली फतेह' का है, तो राजधानी की हिफाजत के पुख्ता इंतजाम क्यों ना किए जाएं.

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