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Updated: 08 सितम्बर, 2017 05:11 PM
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गौरी आज जिंदा होतीं. गौरी लंकेश पत्रिके का नया अंक भी स्टॉल और लोगों के घरों में पहुंच चुका होता. गौरी का बाल भी बांका नहीं हुआ होता अगर उन्होंने उन 'भाइयों' के खिलाफ बगावत नहीं की होती जो उन्हें बहन बता रहे हैं. ऐसे भाइयों को गौरी के मार दिये जाने का वैसे ही कोई अफसोस नहीं जैसे खाप वाले पंचों को होता है.

क्या इसे बीजेपी नेता की ओर से वॉर्निंग समझें?

कर्नाटक बीजेपी के वरिष्ठ नेता डीएन जीवराज ने गौरी लंकेश को अपनी बहन की तरह बताया लेकिन ये भी साफ कर दिया कि जो कुछ वो कर रही थीं उसके बाद ये तो होना ही था.

चिकमंगलूर में बीजेपी की एक रैली में डीएन जीवराज बोले - "गौरी मेरी बहन जैसी हैं लेकिन जिस तरह उन्होंने हमारे खिलाफ़ लिखा, वो स्वीकार नहीं किया जा सकता है."

सुनने में ये बातें वैसी ही हैं जैसे किसी ऑनर किलिंग की घटना के बाद सुनने को मिलती हैं. जो बातें जीवराज ने कही हैं अपनी मर्जी से शादी करने वाले लड़के लड़कियों को मार डालने के बाद उनके घरवाले या रिश्तेदार भी मीडिया को ऐसी ही बातें बताते हैं और पूछने पर कहते हैं - कोई अफसोस नहीं है. फर्क सिर्फ ये होता है कि उनके हाथों में हथकड़ी लगी होती है और पुलिस उन्हें चारों तरफ से घेरे रहती हैं.

dn jeevrajबीजेपी नेता का बयान बाकियों के लिए चेतावनी है?

बीजेपी नेता का ये बयान ऐसा डेडली कॉम्बो लग रहा है जिसमें खाप पंचायतों का गुरूर भी है और आइडियोलॉजी को बर्दाश्त न करने वाली आवाजों को कुचल डालने का क्रोध भी. लेकिन जीवराज इतने भर से चुप नहीं होते, गौरी को बहन बताते हुए लगता है वो बाकियों को भी एक तरीके से वॉर्निंग दे रहे हैं. जो भी ऐसा करेंगे वे भी ऐसे ही मारे जाएंगे.

जीवराज कहते हैं, ''अगर उन्होंने चड्डीवालों की मौत के जश्न की बात नहीं लिखी होती तो वो आज जिंदा होतीं.''

जीवराज के इस बयान पर कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने भी सवाल उठाया, "एक विधायक की ओर से इस तरह का बयान देने का क्या मतलब है? क्या ये इस ओर इशारा कर रहा है कि हत्या के पीछे कौन है?"

जीवराज के इस बयान के बाद कोप्पा थाने में शिकायत दर्ज करायी गयी है. बाद में जीवराज कहने लगे कि उनके बयान का मतलब था कि गौरी ने संघ परिवार के सदस्यों की हत्या का मुद्दा नहीं उठाया था और उनका मजाक उड़ाती रहीं.

gauri lankeshहत्या पर सियासत...

गौरी लंकेश की हत्या के बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने भी संघ परिवार और बीजेपी को इसके लिए जिम्मेदार ठहराने की कोशिश की थी. बीजेपी ने राहुल की बातों पर कड़ा ऐतराज जताया था और एक बार फिर इन्हीं बातों को लेकर केंद्रीय मंत्री और सीनियर बीजेपी नेता रविशंकर प्रसाद ने प्रेस कांफ्रेंस की.

रविशंकर प्रसाद ने कहा - 'हम कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया से सवाल पूछना चाहते हैं कि राहुल गांधी ने इस हत्या के तुरंत बाद ही सर्टिफिकेट दे दिया है कि इसके पीछे दक्षिणपंथी हैं तो आपकी पुलिस जांच में क्या कर रही है?'

रविशंकर प्रसाद बुद्धिजीवी वर्ग से भी खासे खफा हैं, कहते हैं - 'जो सोशल मीडिया पर बड़ी बड़ी टिप्पणियां कर रहे हैं तो मैं उनसे सवाल करना चाहता हूं कि अगर वह गौरी लंकेश की हत्या पर क्रोधित हैं, जो कि होना चाहिए तो इतनी बड़ी संख्या में केरल और कर्नाटक में संघ और बीजेपी के कार्यकर्ताओं की हत्या पर चुप क्यों रहे?'

एक भाई की राजनीतिक महत्वाकांक्षा और...

गौरी लंकेश को लेकर जीवराज ही नहीं उनके उनके अपने भाई इंद्रजीत लंकेश भी सवालों के घेरे में खड़े हो जा रहे हैं. इसके पीछे कोई और नहीं बल्कि खुद इंद्रजीत लंकेश का बयान है. एक तरफ बीजेपी नेता जीवराज डंके की चोट पर कह रहे हैं कि अगर गौरी कलम पर काबू रखती तो जिंदा होतीं, दूसरी तरफ इंद्रजीत लंकेश दावा कर रहे हैं कि गौरी के पास नक्सलियों के धमकी भरे मेल और फोन आते रहे. आखिर क्या समझा जाये? ये कौन सी राजनीति हो रही है. एक बयान ऐसा लगता है जैसे इकबाल-ए-जुर्म हो, तो दूसरा ध्यान भटकाने की कोशिश प्रतीत होता है.

गौरी के पिता पी. लंकेश का 2000 में निधन हो गया तो मैगजीन की जिम्मेदारी भाई-बहन पर आ गयी. दोनों ने मिल कर पांच साल तक उसे चलाया भी लेकिन मतभेदों के चलते उन्हें अलग होना पड़ा. इंद्रजीत तो डॉक्युमेंट्री और फिल्मों में व्यस्त हो गये, लेकिन गौरी ने पत्रकारिता नहीं छोड़ी. हां, 2005 में उन्होंने अपना 'गौरी लंकेश पत्रिके' शुरू कर दिया.

indrajit lankeshइंद्रजीत के बयान गुमराह करने वाले हैं...

इंद्रजीत और गौरी के मतभेद में ज्यादा रोल आइडियोलॉजी का ही जान पड़ता है. मीडिया रिपोर्ट से इंद्रजीत की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं का भी पता चलता है. हालांकि, इंद्रजीत की राजनीति में आइडियोलॉजी कम और अवसरवादिता ज्यादा नजर आती है.

इकनॉमिक टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार इंद्रजीत दिल्ली में कांग्रेस पार्टी के कई नेताओं से मिलते रहते थे और वो पार्टी से एमएलसी का टिकट भी लेना चाहते थे, लेकिन वो टिकट कर्नाटक के किसी कांग्रेस नेता को मिल गया. रिपोर्ट के मुताबिक पिछले कुछ समय से इंद्रजीत बीजेपी खास तौर से उसके कर्नाटक यूनिट चीफ बीएस येदियुरप्पा के करीब जाते देखे गये हैं. एक अन्य मीडिया रिपोर्ट से मालूम होता है कि इंद्रजीत ने येदियुरप्पा की तारीफ करते करते उनकी तुलना 12वीं सदी के समाज सुधारक बासवन्ना से कर डाली जिनका नाम कर्नाटक में बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है.

इसी साल जुलाई में न्यू इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में इंद्रजीत का बयान गौर करने लायक है, "अभी तो मैं बीजेपी की आइडियोलॉजी से मुखातिब हुआ हूं. निश्चित रूप से येदियुरप्पा और नरेंद्र मोदी जी का नेतृत्व मुझे राजनीति में आने की प्रेरणा देता है."

बीजेपी ज्वाइन करने को लेकर जब इंडिया टुडे ने इंद्रजीत से पूछा तो उन्होंने ऐसी बातों से साफ इंकार किया. इसके साथ ही उन्होंने बहन गौरी के साथ किसी तरह के संपत्ति विवाद होने से भी इंकार किया. इंद्रजीत ने माना कि आइडियोलॉजी को लेकर उनका गौरी से मतभेद जरूर रहा, लेकिन इसके चलते निजी रिश्ते कभी खत्म नहीं हुए.

गौरी लंकेश की हत्या की जांच स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम कर रही है. जांच के हिसाब से जीवराज और इंद्रजीत दोनों के ही बयान महत्वपूर्ण हैं. हो सकता है जीवराज के मुफ्त में क्रेडिट लेने में कोई सियासी चाल हो. वैसे भी कोर्ट से बाहर दिये किसी बयान का कोई मतलब तो होता नहीं. लोग तो कोर्ट में दिये बयान से भी पलट जाते हैं और मुजरिम छूट जाते हैं. ये भी हो सकता है कि बयानबाजी जीवराज का पब्लिसिटी स्टंट हो. वैसे जीवराज की बातें उनके समर्थकों तक तो पहुंच ही चुकी होंगी जिसका फायदा बीजेपी को मिलेगा ये भी तय है.

कर्नाटक में विधानसभा चुनाव होने में साल भर से भी कम वक्त बचा है. गौरी लंकेश की हत्या देखा जाये तो मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के लिए चौतरफा चोट है. कानून व्यवस्था को लेकर और सियासी तौर पर उन्हें जो नुकसान हो रहा है वो तो अलग, गौरी की हत्या उनके लिए बहुत बड़ी व्यक्तिगत क्षति है. असल में, गौरी के पिता पी. लंकेश, सिद्धारमैया के करीबी दोस्त रहे - और यही वजह है कि वो गौरी को बेटी की तरह मानते थे. कुछ ही दिन पहले गौरी सिद्धारमैया के घर गयीं और कुछ देर बिताया भी. गौरी की हत्या से सिद्धारमैया को बड़ा झटका लगा है - कहते हैं खबर मिलने के बाद सिद्धारमैया अस्पताल जाना चाहते थे, लेकिन अफसरों ने ऐसा करने से मना किया. सिद्धारमैया को मनाने के लिए अफसरों को मशक्कत करनी पड़ी.

गौरी लंकेश केस को लेकर इकनॉमिक टाइम्स ने जानना चाहा कि क्या उन्होंने कभी सुरक्षा की मांग की थी. सिद्धारमैया के एक करीबी ने अखबार को बताया, "उन्होंने मुख्यमंत्री के इतने करीब होने के बावजूद कभी अपने लिये कुछ नहीं मांगा. यहां तक कि घाटे में चल रही अपनी पत्रिका के लिए एक विज्ञापन भी नहीं."

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