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Updated: 21 जून, 2020 07:57 PM
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) ने बिहार के खगड़िया जिले के तेलिहार गांव से गरीब कल्याण रोजगार अभियान की शुरुआत की है. बिहार से इस योजना की शुरुआत की भी वही वजह समझी जानी चाहिये जो अमित शाह की डिजिटल रैली के पीछे रही - साल के आखिर में होने जा रहा बिहार विधानसभा का चुनाव. केंद्र सरकार की गरीब कल्याण रोजगार अभियान (Garib Kalyan Rozgar Yojna Abhiyan) घर लौटे प्रवासी मजदूरों के लिए मनमांगी मुराद जैसी ही है. साथ ही केंद्र और बिहार में सत्ताधारी NDA के हिसाब से इसे डबल-बेनिफिट प्रोजेक्ट भी मान सकते हैं.

गरीब कल्याण अभियान की बदौलत बीजेपी एक तरफ तो प्रवासी मजदूरों का दिल जीतने की कोशिश कर रही है, दूसरी तरफ कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) की मनरेगा का ढिंढोरा पीटने की मुहिम को किनारे लगाना चाहती है. प्रवासी मजदूर एक नया वोट बैंक बन कर उभरे हैं और थोड़ी देर से ही सही बीजेपी नेतृत्व को भी ये बात समझ आ चुकी है. तभी तो अमित शाह ने बिहार जनसंवाद कार्यक्रम में जोर देकर प्रवासी मजदूरों का जिक्र किया और गर्व महसूस होने की बात कही थी. अमित शाह ने प्रवासी मजदूरों के बहाने राजनीतिक विरोधियों को भी निशाना बनाया था - और जिस तरीके से गरीब कल्याण योजना तैयार की गयी है, उसका मकसद भी कांग्रेस नेतृत्व के मनरेगा-राग को काउंटर करना ही लगता है.

प्रवासी मजदूरों पर खास फोकस है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गरीब कल्याण रोजगार योजना की शुरुआत करते हुए बताया कि कैसे इसका आइडिया आया. प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि एक क्वारंटीन सेंटर को लेकर मीडिया रिपोर्ट ने ही इसकी प्रेरणा दी. दरअसल, कुछ प्रवासी मजदूरों ने एक स्कूल में बने क्वारंटीन सेंटर को रंगाई-पुताई कर चमका दिया था.

migrant workers paintion at a quarantie centreक्वारंटीन सेंटर में प्रवासी मजदूरों का हुनर देख कर ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गरीब कल्याण रोजगार योजना का आइडिया आया

प्रधानमंत्री मोदी ने बताया कि वो रंगाई-पुताई देख कर ही समझ आया कि पीओपी के काम में कैसे इन्हें महारत हासिल है - और तभी सोचा कि पड़े रहेंगे इससे अच्छा होगा वे कुछ हुनर का इस्तेमाल करेंगे. बोले, 'मेरे श्रमिक भाई-बहनों के इस काम ने... उनकी देशभक्ति ने... उनके कौशल ने... मुझे इस अभियान का आइडिया दिया... प्रेरणा दी. आप सोचिए, कितना टैलेंट इन दिनों वापस अपने गांव लौटा है. देश के हर शहर को गति और प्रगति देने वाला श्रम और हुनर जब खगड़िया जैसे ग्रामीण इलाकों में लगेगा, तो इससे बिहार के विकास को भी कितनी गति मिलेगी.'

गरीब कल्याण रोजगार अभियान का मकसद भी यही है कि प्रवासी मजदूरों के हुनर का पूरा इस्तेमाल हो सके. अब ऐसे कामों के लिए घर छोड़ कर कहीं दूर न जाने की जरूरत न पड़े - और रोजगार के इंतजाम उनके ही इलाके में उपलब्ध हो जाये. ये अभियान 12 मंत्रालयों और विभागों का एक संयुक्त प्रयास है और ये मंत्रालय हैं - ग्रामीण विकास, पंचायती राज, सड़क परिवहन और राजमार्ग, खान, पेयजल और स्वच्छता, पर्यावरण, रेलवे, पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस, नवीकरणीय ऊर्जा, सीमा सड़क, दूरसंचार और कृषि.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा भी, 'ये हमारा प्रयास है कि श्रमिकों को उनके घर के पास ही काम मिले... अबतक आप शहरों का विकास कर रहे थे - अब आप अपने गांवों की मदद करेंगे.'

देखा जाये तो नीतीश कुमार को भी ऐसी ही स्कीम की सख्त जरूरत थी. असल में लॉकडाउन फेल होने के नाम पर नीतीश कुमार ने प्रवासी मजदूरों को बिहार आने से रोकने की बहुत कोशिश की. नीतीश कुमार ने तो कोटा में पढ़ रहे बिहार के छात्रों को भी वापस बुलाने में दिलचस्पी नहीं दिखायी थी. वो तो इस बात से भी खफा रहे कि यूपी में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मजदूरों और छात्रों को वापस लाकर दबाव बना रहे हैं और यही वजह रही कि मजदूरों की घर वापसी के लिए प्रधानमंत्री से नीतीश कुमार ने गाइडलाइन में एक राष्ट्रीय नीति की व्यवस्था की मांग की.

बाद में जब विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव बिहार के मजदूरों को लेकर नीतीश कुमार को कठघरे में खड़ा करने लगे तो जेडीयू नेताओं की तरफ से समझाया जाने लगा है कि ये नीतीश कुमार ही रहे जिन्होंने मजदूरों के लिए श्रमिक स्पेशल ट्रेन चलाने की मांग की थी.

गरीब रोजगार योजना की शुरुआत बिहार के खगड़िया से तो हुई ही है, देश भर में इस योजना के लिए चुने गये 116 जिलों में सबसे ज्यादा बिहार के ही हैं - कुल 32. ये वे जिले हैं जहां सबसे ज्यादा प्रवासी मजदूर अलग अलग राज्यों से लौटे हैं.

200 के बदले सवा 200 दिन काम

बेशक गरीब कल्याण रोजगार अभियान बिहार से शुरू हुआ है, लेकिन यूपी को भी कम महत्व नहीं मिला है. अगर बिहार के 32 जिले इस अभियान में शामिल किये गये हैं तो उत्तर प्रदेश के भी 31 जिले इसका हिस्सा हैं. अव्वल तो बिहार की ही तरह यूपी में भी प्रवासी मजदूर लौटे हैं, लेकिन एक वजह ये भी है कि 2022 में यूपी में भी विधानसभा के चुनाव होने हैं और कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा शिद्दत से तैयारी कर रही हैं.

50 हजार करोड़ रुपये की लागत से शुरू हुई गरीब कल्याण रोजगार योजना के तहत कामगारों को 25 तरीके के काम उनकी दक्षता के हिसाब से दिये जाएंगे. ध्यान रहे मनरेगा योजना में पहले ही 40 हजार करोड़ के एक्स्ट्रा फंड की घोषणा पहले ही की जा चुकी है, जिसके लिए राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी और उनकी सरकार को ट्विटर पर धन्यवाद भी दिया था. अब मनरेगा का बजट बढ़कर 1 लाख करोड़ रुपये हो गया है.

प्रवासी मजदूरों की समस्याओं के साथ राहुल गांधी कुछ बातें बार बार दोहराते रहे हैं. राहुल गांधी की सबसे बड़ी डिमांड तो गरीब मजदूरों के बैंक खातों सीधे कैश भेजने की ही रही है. सरकार पर दबाव बनाने के लिए RBI के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन और नोबल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अभिजीत बनर्जी के साथ वीडियो चैट का भी सहारा लिया था.

चीन सीमा विवाद को लेकर सक्रिय होने से पहले तक राहुल गांधी NYAY योजना लागू करने और मनरेगा के कार्य दिवस बढ़ाने की मांग करते रहे हैं. जब देखा कि सरकार ध्यान नहीं दे रही है तो पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नाम पर न्याय योजना छत्तीसगढ़ में लागू कर दी गयी जहां कांग्रेस की सरकार है.

गरीब कल्याण अभियान वैसे भी मनरेगा का अपग्रेडेड वर्जन लगता है. मनरेगा में किसी को भी 100 दिन के रोजगार मिलने की गारंटी है तो इसमें ये 125 दिन के लिए निर्धारित कर दिया गया है. मनरेगा में किसी को भी काम मिल सकता है, लेकिन इसमें कामगारों के हुनर का खास तौर पर ख्याल रखा गया है. जो कामगार जिस खास काम में दक्षता हासिल कर चुका है उसके उसी के आधार पर गरीब रोजगार अभियान में काम मिलेगा. प्रवासी मजदूरों की स्किल मैपिंग कराये जाने का मकसद भी यही है.

कहने की जरूरत नहीं मनरेगा की सबसे बड़ी आलोचक रही बीजेपी की सरकार अब न सिर्फ मनरेगा को आगे बढ़ा रही है, बल्कि गरीब और मजदूर तबके का समर्थन हासिल करने के लिए नेक्स्ट लेवल का इसका एक्सटेंशन भी ला दिया है.

कहां राहुल गांधी मनरेगा में काम के दिन 100 से बढ़ा कर 200 करने की मांग कर रहे थे - और कहां मोदी सरकार ने इसे उससे भी ज्यादा सवा दो सौ दिन का कर दिया. मोदी सरकार ने ये ऐसा सियासी हथौड़ा चलाया है जो कांग्रेस को प्रवासी मजदूरों के बीच खामोश तक कर सकता है. संभव है राहुल गांधी इसे भी अपने दबाव बनाने से जोड़कर पेश करें, लेकिन इतने भर से न तो श्रेय मिल सकता है और न ही वोट.

गरीब कल्याण रोजगार अभियान को लेकर वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया था कि ये पैकेज आत्मनिर्भर भारत का हिस्सा है - और जब मजदूरों को काम मिलेगा तो उनके हाथ में पैसे आएंगे और वे खर्च कर अर्थव्यवस्था में गति लाने का काम करेंगे. ऊपर से मजदूरों के हुनर का इस्तेमाल ग्रामीण इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास में किया जाएगा.

आखिर राहुल गांधी यही तो कह रहे थे कि गरीब और मजदूरों के खाते में पैसे डालो ताकि उनके हाथ में पैसे आयें और वे खर्च कर सकें. गरीब कल्याण योजना में भी तो वही होने जा रहा है - फर्क बस ये है कि प्रवासी मजदूरों को काम के बदले पैसे मिलेंगे. अब पैसे खाते में डालने से मिलें या काम के बदले खर्च करने की ताकत तो आएगी ही. ऐसा हुआ तो स्थानीय स्तर पर अर्थव्यवस्ता मजबूत ही होगी.

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