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Updated: 18 अप्रिल, 2019 08:54 PM
अनुज मौर्या
अनुज मौर्या
  @anujkumarmaurya87
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लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान जारी है और इसी बीच भाजपा के प्रवक्ता पर जूता फेंका गया है. जूता फेंकने वाला ये शख्स मोदी सरकार से नाराज मालूम पड़ रहा है, जिसका नाम शक्ति भार्गव है और ये शख्स यूपी के कानपुर का रहने वाला है. दरअसल, भाजपा ने साध्वी प्रज्ञा को चुनाव का टिकट देने को लेकर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई थी, जिस पर पार्टी के प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव अपनी बात कह रहे थे. अभी प्रेस कॉन्फ्रेंस शुरू ही हुई थी कि शक्ति भार्गव नाम के इस सख्स ने उन्हें जूता दे मारा. हालांकि, वह बाल-बाल बच गए और जूता उनके सामने से होता हुआ आगे चला गया.

भाजपा के प्रवक्ता पर जूता फेंकने की घटना इस सीजन का पहला 'जूताकांड' है. खैर, भाजपा के कार्यकर्ताओं ने जूता फेंकने वाले शख्स के खिलाफ कोई शिकायत नहीं की है और उसे छोड़ दिया गया है. आपको बता दें कि शक्ति भार्गव कानपुर स्थित भार्गव अस्पताल के मालिक हैं, जिन पर दिसंबर 2018 में आयकर विभाग ने छापा मारा था. वह करीब 8 करोड़ रुपयों का स्रोत नहीं बता सके थे. तो जूता फेंकने का मतलब क्या है, यानी क्या जताने के लिए किसी नेता को जूता मार दिया जाता है? दरअसल, ये अपना विरोध जताने का एक तरीका है, जो बेशक गलत है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि जूता ही क्यों? और जूते का आइडिया आया कहां से?

जॉर्ज बुश को पड़ा था पहला जूता

जूता मारने का चलन देसी नहीं, विदेशी है. सबसे पहला जूता अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश को पड़ा था. बात दिसंबर 2008 की है, जब बुश इराक के बगदाद में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे. उसी दौरान एक इराकी पत्रकार मुंतधार अल जैदी ने उन पर जूता उछाला था. एक नहीं, बल्कि दोनों पैरों का जूता. लेकिन जॉर्ज बुश ने बड़ी सफाई से दोनों ही जूतों से खुद को बचा लिया. बस तभी से विरोध करने के तरीकों में जूता मारना भी शुमार हो गया और पूरी दुनिया में ये चलन फैलने लगा.

भारत में पी चिदंबरम से हुई शुरुआत

जूता फेंककर अपना विरोध जताने का ये चलन भारत में 2009 में शुरू हुआ. इसका पहला शिकार बने थे यूपीए के दौरान वित्त मंत्री रहे पी चिदंबरम. उनके बाद कई नेताओं पर जूते उछाले गए. ये रही पूरी लिस्ट-

- 7 अप्रैल 2009 को दिल्ली के कांग्रेस मुख्यालय में प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान जूता फेंका गया था. हालांकि, वह बाल-बाल बच गए थे. ये जूता एक पत्रकार जरनैल सिंह ने फेंका था, जो 1984 के सिख विरोधी दंगों के मामले में जगदीश टाइटलर को सीबीआई द्वारा क्लीन चिट दिए जाने से नाराज थे. इसी पर उन्होंने चिदंबरम से सवाल पूछा था, लेकिन चिदंबरम ने कहा था कि इसकी जांच एक एजेंसी कर रही है.

- 16 अप्रैल 2009 को मध्य प्रदेश के कटनी में एक सभा के दौरान लाल कृष्ण आडवाणी पर चप्पल फेंकी गई थी. हालांकि, वह आडवाणी को लग नहीं पाई थी. हैरानी तो इस बात की है कि ये चप्पल कटनी जिले के भाजपा अध्यक्ष पावस अग्रवाल ने फेंकी थी

- वही साल और वही महीने, बस तारीख दूसरी. 26 अप्रैल 2009 को गुजरात के अहमदाबाद में एक चुनावी रैली के दौरान एक शख्स हितेश ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पर जूता फेंका था. खैर, जूता उन्हें लगा नहीं और मंच से कुछ दूरी पर ही गिर गया.

- 2010 में उमर अब्दुल्ला पर जूता फेंका गया था. ये जूता एक पुलिस अधिकारी ने फेंका था, जब वह स्वतंत्रता दिवस के समारोह में हिस्सा ले रहे थे. अच्छी बात ये है कि वह भी बाल-बाल बच गए थे.

- 2012 में देहरादून में एक रैली के दौरान कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर जूता फेंका गया, लेकिन वह बाल-बाल बच गए.

- ये बात अक्टूबर 2014 की है, जब नितिन गडकरी पुणे के कोर्ट दुर्ग में एक चुनावी सभा में शामिल होने पहंचे थे. वहीं भीड़ में खड़े एक शख्स ने जूता मारने की कोशिश की, जो उनके साथ चल रहे एक अन्य भाजपा कार्यकर्ता को लगा और गडकरी बाल-बाल बच गए. इस दौरान पुलिस ने उसे गिरफ्तार तो किया, लेकिन उससे पहले भाजपा कार्यकर्ताओं ने उसकी बुरी तरह से पिटाई कर दी. हमले के वक्त वह शख्स नशे में थे.

- इसके बाद 2016 में यूपी के सीतापुर में रोड शो के दौरान दोबारा उन पर हरिओम नाम के शख्स द्वारा जूता फेंका गया. हालांकि, वह जूता उनके पीछे गिरा और वह बाल-बाल बच गए.

- सीएम आवास में जीतनराम मांझी पर 5 जनवरी 2015 को जूता फेंका गया था. खैर, इस बार भी जूता उन्हें लगा नहीं.

- 9 अप्रैल 2016 को आम आदमी पार्टी के संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर जूता फेंका गया था, जिसे उनके साथ खड़े लोगों ने केजरीवाल तक पहुंचने से पहले ही रोक लिया. ये जूता उन पर आम आदमी सेना के एक कार्यकर्ता ने फेंका था. आपको बता दें कि उस समय अरविंद केजरीवाल ऑड-ईवन पॉलिसी के दूसरे चरण को लेकर प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रहे थे.

जूता फेंकने वाले चुनाव लड़ते हैं और जीत जाते हैं !

बुश पर जूता फेंकने वाले टीवी पत्रकार मुंतजर अल जैदी को 3 साल की जेल हुई थी. आपको बता दें कि अरब और मुस्लिम देशों में किसी पर जूता फेंकना बेहद अपमानजनक माना जाता है. एक विदेशी नेता के दौरे के दौरान ऐसी हरकत पर तो यहां तक मांग की जा रही थी कि उसे 15 साल की सजा सुनाई जाए. खैर, जूता फेंकने की घटना से वह इतना फेमस हो गया कि 2018 में उसने संसदीय चुनाव भी लड़ा और जीत भी गया.

जिस पत्रकार जरनैल सिंह ने 2009 में पी चिदंबरम पर जूता फेंका था, वह भी फेमस हो गया था. 2014 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने उसे पश्चिमी दिल्ली लोकसभा सीट से टिकट दिया था, लेकिन जीत नहीं मिली. इसके बाद विधानसभा चुनावों में जरनैल सिंह ने राजौरी गार्डन से जीत दर्ज की और विधानसभा पहुंच गए. इसी बीच पंजाब चुनाव में प्रकाश सिंह बादल के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने राजौरी से इस्तीफा दिया, लेकिन बादल से वह हार गए. जब राजौरी में दोबारा चुनाव हुआ तो आप ने जरनैल सिंह को टिकट नहीं दिया. खैर, राजनीति में वह सक्रिय भी हैं और बेहद लोकप्रिय भी.

जिस तरह ये बुश और चिदंबरम पर जूता फेंकने वाले लोकप्रिय हो गए, हैरानी नहीं होने चाहिए अगर कल को जीवीएल पर जूता फेंकने वाला भी ट्विटर का ट्रेंड बन जाए. हो सकता है आने वाले चुनावों में कोई पार्टी उसे भी टिकट दे दे. मुमकिन है कि वह जीत भी जाए. खैर, ये सब तो महज कयास हैं, लेकिन जिस दिन ये सच हुआ वाकई लोगों को जूता फेंककर चुनाव लड़ने के इस ट्रेंड पर यकीन हो जाएगा.

जूताकांड की घटनाओं को देखें तो एक चीज इन सभी में कॉमन है कि जूता किसी को लगा नहीं. कभी तो जूता मंच तक ही नहीं पहुंचा, तो कभी नेता जूते से खुद को बचाने में कामयाब रहे. यानी ये कहना गलत नहीं होगा कि जूता मारने की कोशिश तो कई बार हुई, लेकिन सफलता कभी नहीं मिली. ठीक वैसा ही अब भाजपा प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा राव के साथ भी हुआ. जूता तो उन पर निशाना लगाकर फेंका गया, लेकिन वो उनके सामने लगे माइक को रगड़ता हुआ आगे निकल गया.

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