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Updated: 15 सितम्बर, 2016 07:08 PM
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जेल से छूटते ही मीडिया के सवाल पर शहाबुद्दीन का जवाब था, "लालू जी मेरे नेता हैं. वो नर्क में भी जाएंगे तो भी उनके पीछे-पीछे जाऊंगा." ये सुन कर लालू को भी बहुत बुरा लगा होगा. आखिर शहाबुद्दीन अपने नेता के बारे ऐसा कैसे सोच सकते हैं. किसी का कर्म चाहे जैसा भी हो, हर कोई स्वर्ग में जाने की उम्मीद रखता है, लेकिन शहाबुद्दीन ने ये कैसे सोच लिया कि लालू प्रसाद को नर्क जाना पड़ेगा, कमाल है. वैसे भी लालू उसी कानूनी प्रक्रिया से जमानत पर छूटे हैं जिसकी बदौलत शहाबुद्दीन को 11 साल बाद तकनीकी तौर पर खुली हवा में सांस लेने का मौका मिला है.

बहरहाल, जब लालू का बयान आया तो लगा कि शहाबुद्दीन के लिए कोई खास दिक्कत वाली बात नहीं है. "...गलत क्या बोला?" लालू की ये प्रतिक्रिया शहाबुद्दीन के लिए राहत देने वाली होगी, लेकिन कब तक?

जमानत पर सवाल

असल में, पटना हाई कोर्ट की एक बेंच ने शहाबुद्दीन से जुड़े मामलों के ट्रायल पर रोक लगा दी थी - और दूसरे ने ट्रायल को 9 महीने में पूरा करने को कहा था, लेकिन 6 महीने यूं ही बीत गये. इन्हीं बातों को आधार पर कोर्ट ने शहाबुद्दीन की जमानत मंजूर कर ली.

लेकिन बात सिर्फ इतनी ही नहीं है - सवाल कई और भी हैं जिनके जवाब ढूंढे जाने हैं.

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पत्रकार महेंद्र मिश्र फेसबुक पर सवाल उठाते हैं, "शहाबुद्दीन के खिलाफ दर्ज 30 मुकदमों के ट्रायल पर पटना हाई कोर्ट ने रोक लगा रखी है. वजह उनके पास वकील रखने के लिए फीस का न होना है. इस आशय की अर्जी शहाबुद्दीन ने पटना हाइकोर्ट में लगाई थी. और कोर्ट ने उसे स्वीकार करते हुए ट्रायल को स्थगित कर दिया. 1300 गाड़ियों के काफिले के साथ चलने वाले शख्स के पास अपना मुकदमा लड़ने के लिए क्या सचमुच में पैसा नहीं है? इस तर्क को मानकर फैसला देने वाला कोर्ट भी क्या सवालों के घेरे में नहीं आ जाता है? और अगर कोई निचली अदालत किसी आरोपी या अपराधी को इस तरह की कोई गैर जरूरी छूट देती है. तो क्या ऊपरी अदालत (यहां सुप्रीम कोर्ट) का कर्तव्य नहीं बन जाता कि वो इस मामले का स्वतः संज्ञान ले?

सीवान से रिपोर्ट

एक तरफ शहाबुद्दीन पूरे लाव लश्कर के साथ भागलपुर जेल से निकले, दूसरी तरफ चंदा बाबू की प्रतिक्रिया आई, "शहाबुद्दीन की जमानत पर रिहाई हमारे लिए मौत की सजा से कम नहीं." शहाबुद्दीन पर चंदा बाबू के ही तीन बेटों की हत्या का इल्जाम है.

बीबीसी से बातचीत में राजदेव रंजन की पत्नी आशा ने कहा, "मैं नीतीश कुमार से न्याय की उम्मीद तो नहीं करती हूं. लेकिन वो चाहें तो अब भी गलती सुधार सकते हैं. बिहार सरकार को मेरी सुरक्षा बढ़ानी चाहिए. मेरी जान को खतरा है." हिंदुस्तान अखबार के पत्रकार राजदेव रंजन की 13 मई को सीवान में हत्या कर दी गई थी. बाद में उनके परिवार वालों की मांग पर नीतीश सरकार ने सीबीआइ जांच की सिफारिश की थी. हत्या के चार महीने बाद खबर है कि सीबीआई मामले की जांच शुरू करने वाली है.

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11 साल भीतर, 11 दिन बाहर...

पत्रकार की हत्या के संदिग्ध कैफ का शहाबुद्दीन की रिहाई के मौके पर देखा जाना और फिर नीतीश के मंत्री और लालू के बेटे तेज प्रताप के साथ उसकी तस्वीर को लेकर जो बवाल हुआ अलग बात है, लेकिन उसका खुलेआम घूमना पुलिस की सक्रियता पर गंभीर सवाल खड़ा करता है. वैसे पुलिस ने कैफ को आरोपी तो नहीं बनाया है कि लेकिन कॉल रिकॉर्ड के अनुसार उसकी हत्या से दो दिन पहले राजदेव से बात हुई थी - और वो शहाबुद्दीन के करीबी लड्डन मियां के संपर्क में भी था जिसे इस हत्या का मास्टरमाइंड माना जा रहा है.

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शहाबुद्दीन के खिलाफ सीवान जिला प्रशासन की ओर से सरकार को भेजी गई रिपोर्ट रिहाई के ताबूत में आखिरी कील साबित हो सकती है, बशर्ते नीतीश सरकार उस पर एक्शन लेने का फैसला करे.

सीनियर एडवोकेट प्रशांत भूषण पहले ही कह चुके हैं कि शहाबुद्दीन की जमानत के खिलाफ वो चंदा बाबू की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगे.

बदनामी से बढ़ी बेचैनी

शहाबुद्दीन के लगातार हमलों और प्रदेश सरकार की पैरवी पर उठ रहे सवालों से नीतीश कुमार भी खासे चिंतित बताये जा रहे हैं. पटना में लॉ अफसरों की एक मीटिंग में नीतीश कुमार ने उन्हें कोर्ट के सामने सरकार का पक्ष मजबूती से रखने को कहा. हालांकि, इस मीटिंग में शहाबुद्दीन का नाम लेकर कोई चर्चा नहीं हुई.

जेल में रहते हुए भी शहाबुद्दीन नीतीश का सरदर्द बढ़ाते रहे हैं. नीतीश के मंत्री अब्दुल गफूर का जेल में उनसे मिलना इन्हीं में से एक रहा. अब गठबंधन की सरकार की मजबूरी के बावजूद नीतीश कुमार शहाबुद्दीन केस को कैसे डील करते हैं ये उनके काबिलियत का इम्तिहान है. वैसे जो लक्षण दिखाई दे रहे हैं उसमें शहाबुद्दीन का 11 दिन भी बाहर रहना मुश्किल लग रहा है.

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