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Updated: 26 मार्च, 2015 12:54 PM
टीएस सुधीर
टीएस सुधीर
 
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ये मामला एक डिनर पार्टी में आई कड़वाहट से उपजा है. जिससे श्रीलंका के राष्ट्रपति पद के चुनाव कांटेदार बन गए हैं. दो माह पहले 19 नवंबर को राजपक्षे और उनकी सरकार के स्वास्थ्य मंत्री मैत्रीपाला सिरिसेना (श्रीलंका फ्रीडम पार्टी के जनरल सेक्रेटरी भी) एक डिनर कार्यक्रम में पहुंचे. दो दिन बाद सिरिसेना ने पार्टी और सरकार दोनों से इस्तीफा देकर खुद को चुनाव में विपक्ष की ओर से उम्मीदवार घोषित कर दिया. डिनर में सिरिसेना ने महसूस किया कि राजपक्षे को केक पसंद है और वे उसका आनंद ले रहे हैं. यहां सिरिसेना का आशय राजपक्षे की किचन कैबिनेट से था, जिसमें उनके दो भाई और पुत्र शामिल थे. वे सरकार और देश को अपनी मर्जी से चला रहे थे. उस डिनर पार्टी से बाहर आते ही सिरिसेना ने सरकार में भाई-भतीजावाद और भ्रष्टाचार पर निशाना साधा. ये किसी मास्टर स्ट्रोक की तरह था, जिसने राजपक्षे को हिला कर रख दिया. उन्हें यह समझते देर नहीं लगी कि राष्ट्रपति पद तक तीसरी बार पहुंचने की राह उतनी आसान नहीं है.राजपक्षे ने इस दाव की काट के रूप में सिरिसेना को 'गद्दार' कहना शुरू किया. वे अपनी रैलियों में वोटरों से पूछते रहे कि क्या आप ऐसे व्यक्ति पर भरोसा करेंगे और उसे राष्ट्रपति बनाएंगे? सिरिसेना जो कभी राजपक्षे के मजबूत सिपहसालारों में से एक थे और सत्ता का सुख भोग रहे थे, अचानक उन पर हमला करने लगे और उन्हें तानाशाह बताते हुए देश में बदलाव लाने के वादे करने लगे. सिरिसेना ने जो सबसे बड़ा वादा किया है, वह है राष्ट्रपति सत्ता को समाप्त करने का. वे कह रहे हैं कि सौ दिन के भीतर वे वेस्टमिंस्टर सिस्टम की तरह संसदीय लोकतंत्र को लागू कर देंगे. राजपक्सा ने सत्ता में रहते हुए खुद को बेहद अधिकार संपन्न बना लिया है. किसी राजा की तरह.  श्रीलंका में इस बात पर कोई मतभेद नहीं है कि उन्हीं की बदौलत 26 साल के सिविल वॉर से मुक्ति मिली और देश में शांति लौटी है. अब राजपक्षे जब यह बताते हैं एलटीटीई फिर वापसी कर सकता है, तो उनके प्रति समर्थन और बढ़ जाता है.इसके अलावा और भी कई अहम जियो-पॉलिटिकल कारण हैं, जिसकी वजह से यह चुनाव अहम हो गया. राजपक्षे ने देश में राजनीतिक स्थायित्व की बात कही है. सिविल वॉर खत्म होने के बाद से वे 67 बिलियन डॉलर की श्रीलंकाई इकोनॉमी को 2009 से सालाना 7 फीसदी की ग्रोथ दे रहे हैं. राजपक्षे के राज में चीन श्रीलंका के ज्यादा करीब आया. इतना कि वह अब श्रीलंका में सबसे बड़ा विदेशी निवेशक है. ये बात भारत को चिंतित करने वाली है. यदि सिरिसेना सत्ता में आते हैं तो उनके सामने चुनौती है गठबंधन वाले विपक्ष, जिसमें हर कोई अपनी बात मनवाना चाहेगा. इसका निवेश के माहौल पर विपरीत ही असर पड़ेगा. वे चीन और भारत के बारे में क्या रुख रखते हैं, भारत के लिए यह देखना भी दिलचस्प होगा.चुनाव से पहले महंगाई दर में आई कमी ने राजपक्षे की राह आसान की थी. इसकी बदौलत वे सभी को संतुष्ट करने की कोशिश करते रहे. पेट्रोल के दाम, बिजली दर घटाई गई. पेंशन और किसानों की मजदूरी बढ़ाई गई. सिरिसेना ने भी कई लुभावने वादे किए, लेकिन इसके लिए उन्होंने वोटरों से सत्ता में लाने को कहा. सिरिसेना को लगता है कि लोग राजपक्षे से ऊब गए हैं और बदलाव चाहते हैं. लेकिन कोलंबो के एक बिजनेस एक्जीक्यूटिव कहते हैं कि राजपक्षे चुनाव जीतने की कला में माहिर हैं. एलटीटीई के सफाए में अहम रोल निभाने वाले श्रीलंका के पूर्व आर्मी चीफ सरथ फोंसेका ने 2010 में राजपक्षे के विरुद्ध चुनाव लड़ा था. हार के कुछ दिन बाद ही कोर्ट मार्शल कर उन्हें जेल में डाल दिया गया. पॉलिटिकल साइंस के स्टूडेंट रहे सिरिसेना को इतिहास की कुछ बातें तो याद रहनी चाहिए.

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लेखक

टीएस सुधीर टीएस सुधीर

लेखक इंडिया टुडे ग्रुप में एडिटर (साउथ इंडिया) हैं.

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