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Updated: 28 जनवरी, 2021 07:22 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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किसान आंदोलन (Farmers Protest) के तीन किरदार शुरू से लेकर अब तक अपने अपने तरीके से एक्टिव हैं. पहला किरदार तो खुद किसान नेता हैं. दूसरे किरदार के रूप में केंद्र की मोदी सरकार है - और तीसरे किरदार के रूप में विपक्ष है जिसमें कांग्रेस को सबसे आगे देखा जा सकता है. हिंसा के बाद किसान नेता बैकफुट पर चले गये हैं. किसान आंदोलन में बिखराव भी साफ नजर आ रहा है. दिल्ली पुलिस के केस दर्ज कर लेने के कुछ ही देर बाद किसान नेताओं का आंदोलन से खुद को अलग कर लेना बिखराव का ही सबूत है. किसान नेता हिंसा के नाम पर अलग होने की बात कर रहे हैं, लेकिन असल वजह तो पुलिस एक्शन का डर ही लगता है.

दिल्ली पुलिस कमिश्नर ने बोल दिया है कि हिंसा करने वालों का वीडियो पुलिस के पास है. जांच चल रही है - और दोषी किसान नेताओं के खिलाफ एक्शन होगा.

किसान आंदोलन के नरम पड़ते ही केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी कांग्रेस नेता राहुल गांधी (Rahul Gandhi) को नये सिरे से टारगेट करने लगी है. दिल्ली में हुई हिंसा को लेकर कांग्रेस के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) के खिलाफ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से कार्रवाई की मांग के बाद केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी को कठघरे में खड़ा कर रहे हैं.

तीनों कृषि कानूनों की वापसी की डिमांड से शिफ्ट होकर कांग्रेस का अमित शाह के खिलाफ कार्रवाई की बात करना जता रहा है कि पार्टी को किसान आंदोलन में अब वो दम नहीं नजर आ रहा है जिसके बूते वो मोदी सरकार को घेरे में ले सके - क्या किसान आंदोलन में बिखराव ने मोदी-शाह को विपक्ष पर जीत जैसा अहसास करा रहा है?

किसान आंदोलन को लेकर कांग्रेस का पैंतरा बदला

किसान आंदोलन को लेकर लगता है कांग्रेस का स्टैंड बदल गया है. अब तक कांग्रेस नेता राहुल गांधी का चेन्नई पहुंचने पर भी एक ही बात पर जोर दिखा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार को तीनों कृषि कानून वापस लेने ही होंगे. अब लगता है कांग्रेस का स्टैंड थोड़ा बदल चुका है. कांग्रेस की नजर में दिल्ली में हिंसा खुफिया तंत्र की नाकामी के चलते हुई है - इसलिए अमित शाह को गृह मंत्री के पद से तत्काल हटा दिया जाना चाहिये.

कांग्रेस महासचिव और प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि पिछले एक साल में राजधानी दिल्ली में हिंसा की ये दूसरी घटना है. रणदीप सिंह सुरजेवाला का आरोप है कि दिल्ली में किसान आंदोलन की आड़ में हुई सुनियोजित हिंसा और अराजकता के लिए सीधे-सीधे गृह मंत्री जिम्मेदार हैं. खुफिया इनपुट के बावजूद हिंसा को रोक पाने की नाकामी के चलते उन्हें एक पल भी पद पर बने रहने का हक नहीं है.

अमित शाह के खिलाफ प्रधानमंत्री के एक्शन न लेने को लेकर भी रणदीप सुरजेवाला ने पहले ही अपनी बात कह दी - 'अगर प्रधानमंत्री उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करते हैं, तो ये साबित होगा कि वो अमित शाह को संरक्षण दे रहे हैं.'

मतलब, रणदीप सुरजेवाला को भी मालूम है कि अमित शाह के खिलाफ उनकी मांग तो पूरी होने से रही, लिहाजा इंतजार किये बगैर ही पहले से ही मान लिया है कि प्रधानमंत्री मोदी अमित शाह के साथ क्या कर रहे हैं.

rahul gandhi, narendra modi, amit shahकिसान आंदोलन का बैकफुट पर जाना मोदी-शाह को कांग्रेस के खिलाफ चुनावी जीत का अनुभव करा रहा है

कांग्रेस की तरफ से ऐसी ही मांग दिल्ली दंगों के बाद भी हुई थी. इस बार तो कांग्रेस ने प्रवक्ता के जरिये एक बयान जारी करा दिया है, लेकिन तब कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी खुद आगे आयी थीं. पहले दिल्ली दंगों को लेकर अमित शाह और दिल्ली के मुख्य्मंत्री अरविंद केजरीवाल से कुछ सवाल पूछे थे और उसके बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिल कर अमित शाह के खिलाफ एक्शन लेने की मांग की थी. ये तभी की बात है जब राष्ट्रपति से मुलाकात के बाद पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने बताया कि राष्ट्रपति से ये भी गुजारिश की है कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राजधर्म की याद दिलायें.

कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने भी दिल्ली हिंसा को लेकर अपने तरीके से अमित शाह को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश की है. उज्जैन में मीडिया से बातचीत करते हुए कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह ने कहा, 'दिल्ली में किसानों की ट्रैक्टर रैली में हिंसा गृह मंत्री अमित शाह की ओर से कराई गयी. प्रदर्शन करने वाले खालिस्तानी या पाकिस्तानी नहीं थे, वे अमित शाह के चुनिंदा सरकारी अधिकारी थे.'

अमित शाह को ये कहने का मौका इसलिए भी मिला है क्योंकि हिंसा को लेकर पंजाब के दीप सिद्धू का नाम उछला है. दीप सिद्धू की बीजेपी नेताओं की तस्वीरें वायरल हो रखी हैं और सन्नी देओल को सफाई देनी पड़ी है.

शिवसेना ने भी दिल्ली की घटना के लिए केंद्र सरकार को ही जिम्मेदार बताया है और पूछा है कि क्या सरकार को इसी बात का इंतजार था. शिवसेना प्रवक्ता संजय राउत ने कहा कि केंद्र में अगर किसी और पार्टी की सरकार होती तो इस्तीफे की मांग शुरू हो चुकी होती. कह रहे हैं, अब सत्ताधारी पार्टी किसका इस्ती भा मांगेगी - अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी या महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे का इस्तीफा मांगेगी?

हिंसा की निंदा तो सभी नेताओं ने की है, लेकिन एनसीपी प्रमुख शरद पवार और आम आदमी पार्टी भी बीजेपी नेतृत्व को ही दिल्ली की घटना के लिए जिम्मेदार ठहरा रहे हैं.

ये तो साफ है कि कांग्रेस को भी अब लग गया है कि जिस किसान आंदोलन के बूते वो मोदी सरकार को आसानी से घेर पा रही थी - अब वो दौर खत्म हो चुका है. कांग्रेस के ताजा रिएक्शन ने प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह को 2014 और 2019 की तरह ही विपक्ष पर एक और जीत जैसा अहसास करा दिया है.

बरसों बरस शासन करने के बाद कांग्रेस भी ये समझ ही रही होगी कि सरकार की मर्जी के बगैर पत्ता भी कहां हिल पाता है. आखिर कांग्रेस के ही केंद्र की सत्ता में रहते अन्ना हजारे का आंदोलन इतना लंबा चला और योग गुरु स्वामी रामदेव का आंदोलन अचानक आधी रात को एक झटके में खत्म हो गया. दिल्ली पुलिस के हरकत में आते ही रामदेव को सलवार पहन कर भागना पड़ा था.

किसान आंदोलन के भी अब तक टिके होने की वजह कुछ और नहीं बल्कि मोदी सरकार की सोची समझी खामोशी थी - फिर तो किसान आंदोलन के खत्म होने को भी सरकार की खामोशी खत्म होना समझ लेना चाहिये. हां, खामोशी के पीछे छिपी राजनीति को जो नहीं समझ पाते ऐसे ही शिकार भी बनते हैं और एक्सपोज भी हो जाते हैं. दिल्ली का किसान आंदोलन भी एक मिसाल है - और नाकाम आंदोलनों की फेहरिस्त में मील का पत्थर भी.

बीजेपी ने राहुल गांधी पर धावा बोला

ये भी साफ है कि राहुल गांधी बिलकुल नहीं चाहते थे कि किसान आंदोलन खत्म हो. खबर ये भी आयी थी कि कांग्रेस के ही पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह चाहते थे कि किसान आंदोलन जल्द से जल्द खत्म हो. किसान आंदोलन को लेकर अलग अलग स्टैंड के चलते राहुल गांधी और कैप्टन अमरिंदर सिंह में तकरार जैसे हालात भी पैदा हो गये थे - और इस बात के सबूत हैं पंजाब से आने वाले रवनीत बिट्टू जैसे राहुल गांधी के करीबी नेताओं की बयानबाजी. किसान आंदोलन तो राजनीतिक शक्ल अख्तियार कर ही चुका था, राहुल गांधी भी किसानों के कंधे पर सवार होकर अपनी राजनीति चमकाने में लगे थे, लेकिन एक झटके में सबके सब अमित शाह की राजनीति के शिकार हो गये. अमित शाह को तो बस मौके का इंतजार था, एक छोटी सी चाल चली और शिकार अपनेआप फंस गया. ये बहुत गहरायी वाली बात नहीं है, राजनीति की थोड़ी सी भी समझ रखने वाले के ये बात आसानी से समझ में 26 जनवरी को ट्रैक्टर रैली की इजाजत मिलते ही समझ में आ जानी चाहिये थी.

केंद्र सरकार किसान आंदोलन को लेकर बेहद दबाव भरे दौर से गुजर रही थी. सरकार की तरफ से ऐसे हर कदम से परहेज किया जा रहा था जिससे किसानों के मन में सरकार को लेकर कोई गलत संदेश जाये. या फिर ऐसा कुछ हो जाये जिसकी वजह से देश के दूसरे हिस्से के किसानों में दिल्ली की सीमा पर बैठे किसानों के प्रति सहानुभूति नये सिरे से बवाल न करा दे.

अमित शाह पर कांग्रेस के हमले के बाद सरकार की तरफ से काउंटर करने के लिए मोर्चा संभाला केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने. केंद्रीय मंत्री का सीधा आरोप रहा कि कांग्रेस चाहती ही नहीं थी कि किसानों और सरकार में बातचीत के जरिये कोई समझौता हो सके.

प्रकाश जावड़ेकर ने राहुल गांधी का नाम लेकर कहा कि वो किसानों का सपोर्ट नहीं कर रहे थे, बल्कि वो उनको उकसा रहे थे. जब दिल्ली दंगों के वक्त कांग्रेस ने अमित शाह पर हमला बोला था तब भी प्रकाश जावड़ेकर ही आगे आये और कांग्रेस को 1984 के दिल्ली दंगों की याद दिलाने लगे. कांग्रेस फौरन ही नरम पड़ गयी थी - अब एक बार फिर बीजेपी की तरफ से जवाबी एक्शन वैसा ही लग रहा है.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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