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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 29 जनवरी, 2021 12:02 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
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किसान आंदोलन तितर बितर हो चुका है. जैसे पुलिस बल प्रयोग कर भीड़ को मौके से खदेड़ देती है. किसान आंदोलन में पुलिस ने ऐसा नहीं किया. कम से कम दिल्ली में तो नहीं ही किया. जैसा बागपत पुलिस के एक्शन को लेकर खबर है.

दिल्ली पुलिस ने कुछ लोगों गिरफ्तार किया है और काफी लोगों को हिरासत में लिया है. राकेश टिकैत और योगेंद्र यादव सहित कई किसान नेताओं को नोटिस भेज कर जवाब भी मांगा है - और दिल्ली पुलिस कमिश्नर ने किसान नेताओं पर धोखेबाजी का इल्जाम लगाया है.

सरकार की तरफ से मीडिया के सामने आकर केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर (Prakash Javadekar) ने भी 26 जनवरी, 2021 को दिल्ली पुलिस के दिल्ली में हुई हिंसा के दौरान धैर्य बनाये रखने का जोर देकर जिक्र किया. पुलिस कमिश्नर की ही तरह केंद्रीय मंत्री ने भी दोहराया कि हिंसा करने वाले उपद्रवियों और लाल किला में उत्पात मचाने वालों से सख्ती से पेश आया जाएगा.

लगे हाथ प्रकाश जावड़ेकर ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी को भी निशाना बनाया और किसानों को उकसा कर बातचीत में रोड़ा अटकाने जैसे आरोप लगाये - और प्रेस कांफ्रेंस में ही प्रकाश जावड़ेकर ने जो सबसे महत्वपूर्ण इशारा किया, वो है - बातचीत का रास्ता बंद न होने की. मतलब, केंद्र सरकार हिंसा के चलते किसान नेताओं के बैकफुट पर चले जाने के बावजूद बातचीत का रास्ता बंद करने के पक्ष में नहीं है.

किसान आंदोलन से पहले CAA यानी नागरिकता संशोधन कानून को लेकर भी जबरदस्त विरोध होता रहा, लेकिन मोदी सरकार ने बगैर कोई परवाह किये नोटिफिकेशन जारी कर कानून को लागू कर दिया था - सवाल ये है कि तीन कृषि कानूनों को लेकर भी नागरिकता संशोधन कानून (Farm Laws VS. CAA) की तरह लागू करने का मोदी सरकार (Modi-Shah) का इरादा है, या नहीं है?

कृषि कानून और CAA की राजनीतिक तासीर अलग अलग है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के सामने CAA लागू करते वक्त भी वैसी ही चुनौतियां सामने आयीं जैसी कृषि कानूनों को लेकर देखी जा रही हैं. नागरिकता संशोधन लागू होने के ठीक बाद मोदी-शाह के सामने दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतने एक बड़ा चैलेंज था - और पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव को छोड़ भी दें तो अगले ही साल पंजाब और यूपी सहित कई राज्य विधानसभाओं के लिए चुनाव होने हैं. फिर भी सीएए लागू करने में मोदी सरकार ने जो तेजी और तत्परता दिखायी थी, वो कृषि कानूनों के मामले में क्यों नहीं लग रहा है - और बड़ा सवाल फिलहाल यही है.

फर्क, दरअसल, दोनों ही मुद्दों की राजनीतिक तासीर में है. सीएए का मामला केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी के पॉलिटिकल एजेंडे को काफी हद तक सूट करता था, लेकिन कृषि कानूनों को लेकर अगर आम किसानों के मन में मोदी सरकार के प्रति थोड़ा भी गुस्सा भर गया तो लेने के देने पड़ सकते हैं.

narendra modi, amit shah, rahul gandhiमोदी सरकार की नजर में राहुल गांधी का रवैया कृषि कानूनों को लेकर भी CAA जैसा ही है

हाल ही में इंडिया टुडे और कार्वी इनसाइट्स की सर्वे रिपोर्ट आयी थी - मूड ऑफ द नेशन. सर्वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता और एनडीए बनाम यूपीए का इलेक्शन स्टेटस तो दिखा ही, कृषि कानूनों को लेकर भी लोगों की राय सामने आयी. सर्वे में 34 फीसदी लोगों ने माना कि नये कृषि कानूनों से किसानों को फायदा ही होगा. हालांकि, 32 फीसदी लोग ऐसे भी मिले जो मानते हैं कि इस कानून से कॉर्पोरेट घराने को फायदा होगा - 25 फीसदी ऐसे लोग भी रहे जो मानते हैं कि कानून किसान और कॉर्पोरेट दोनों ही के लिए फायदेमंद है, हां, 8 फीसदी लोग असमंजस में भी दिखे.

सर्वे में ये भी जानने की कोशिश की गयी कि तीनों कृषि कानून वापस होने चाहिये या लागू किये जाने चाहिये - 28 फीसदी लोगो का मानना है कि ये कानून वापस होने चाहिये, लेकिन सर्वे में शामिल 55 फीसदी लोग मानते हैं कि तीनों कानून लागू होने ही चाहिये.

निश्चित तौर पर सरकार को भी लगता है कि कानूनों का विरोध देश के कुछ ही हिस्सों में है, जिसे सरकार लोगों को अपने हिसाब से कानून लागू किये जाने के पक्ष में मान कर चल रही है. सोशल मीडिया पर भी सरकार का सपोर्ट करने वालों की तादाद भी खासी नजर आती है. कुछ खास मैसेज हैं जो बार बार शेयर किये जा रहे हैं. ऐसे मैसेजों में शुरू से ही आंदोलनकारी किसानों को भी वैसे ही ट्रीट किया जा रहा है जैसे सीएए कानून का विरोध करने वालों को लेकर सोशल मीडिया पर एक राय देखने को मिली थी.

जैसे सीएए कानून को लेकर मोदी सरकार और कांग्रेस नेतृत्व आमने सामने देखा गया, एक बार फिर कृषि कानूनों को लेकर भी वही नजारा सामने है. दिल्ली चुनाव से पहले सोनिया गांधी ने विरोध में लोगों से घरो से निकलने की अपील कर डाली थी, किसानों को सपोर्ट करने के लिए राहुल गांधी देश के युवाओं का आह्वान कर रहे हैं.

सीएए कानून को लेकर हुए विरोध प्रदर्शनों के दौरान पुलिस एक्शन के शिकार लोगों के घर जाकर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने समर्थन जताने की कोशिश की थी. यूपी के आईपीएस अफसर रहे एसआर दारापुरी से इतर देखें तो ऐसे ज्यादातर लोग मुस्लिम समुदाय से रहे. प्रियंका गांधी लखनऊ, वाराणसी, आजमगढ़ और मेरठ तक घर-घर पहुंचीं और सबको दिलासा दिलाने की कोशिश की. बाद में प्रियंका गांधी की टीम ने गोरखपुर वाले डॉक्टर कफील खान के केस में तो उससे भी ज्यादा तत्परता दिखायी - और ये सब 2022 में होने जा रहे यूपी चुनावों को लेकर रहा है.

केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर की बातों और इंडियन एक्सप्रेस के अलावा कुछ मीडिया रिपोर्ट से मालूम होता है कि मोदी सरकार कृषि कानूनों को लेकर सीएएस की तरह हड़बड़ी में तो कत्तई नहीं है. वैसे भी जब किसान आंदोलन केंद्र सरकार के मनमाफिक मोड़ ले चुका है तो आगे के चुनावों को लेकर जोखिम उठाने से क्या फायदा?

जबरन तो नहीं, लेकिन चलेगी सरकार की ही

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पहले पुलिस कमिश्नर को तलब कर दिल्ली के हालात और आगे के एक्शन की तैयारी का जायजा लिया - और फिर हिंसा में घायल दिल्ली के पुलिसकर्मियों से मिलने अस्पताल भी पहुंचे.

केंद्रीय मंत्री प्रकाश जावड़ेकर का कहना रहा कि दिल्ली पुलिस ने बहुत ही संयम दिखाया और हाथ में हथियार होते हुए भी इस्तेमाल नहीं किया. प्रकाश जावड़ेकर ने बताया कि घायल हुए 100 से ज्यादा जवान अस्पताल में भर्ती हैं.

प्रकाश जावड़ेकर कांग्रेस पर किसानों को उकसाने, आंदोलन के रास्ते में रोड़ा अटकाने जैसे आरोप भी लगाये - और इस दौरान बाकायद कांग्रेस नेता राहुल गांधी का नाम भी लिया.

प्रकाश जावड़ेकर ने पूछा कि नांगलोई में जो प्रदर्शन हुआ वो अहिंसक था क्या? केंद्रीय मंत्री ने पूछा कि युवा कांग्रेस किस तरह के ट्रैक्टर रैली को सपोर्ट कर रही थी - जो पुलिस वाहनों, बसों को कुचलते देखे गये?

प्रकाश जावड़ेकर ने आरोप लगाया कि राहुल गांधी जो सीएए प्रदर्शन के दौरान कर रहे थे, वही काम किसान आंदोलन के दौरान भी कर रहे हैं. बोले, राहुल गांधी किसानों को लगातार उकसाते रहे हैं. प्रकाश जावड़ेकर का कहना रहा कि कांग्रेस और उससे जुड़े संगठनों के ट्वीट उकसावे वाले रहे. तमिनाडु के बाद केरल दौरे पर पहुंचे राहुल गांधी ने अपने संसदीय क्षेत्र वायनाड में कहा है कि देश के ज्यादातर किसानों ने कृषि कानूनों को ठीक से समझा नहीं है - अगर सभी किसानों को जानकारी हो गयी तो देश भड़क उठेगा.

प्रेस कांफ्रेंस में प्रकाश जावड़ेकर से जब हिंसा के बाद की स्थिति में किसानों के साथ बातचीत को लेकर सवाल पूछा गया तो, उलटे वो ही सवाल दाग दिये, 'आपने कभी सुना बातचीत के दरवाजे बंद हो गए हैं? जब भी कुछ होगा आपको बताएंगे.'

अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस ने केंद्र सरकार के कुछ अधिकारियों से बातचीत के आधार पर जो रिपोर्ट प्रकाशित की है, उससे भी किसान आंदोलन को लेकर सरकार की मंशा मालूम होती है.

एक बात जरूर है कि अब बातचीत में पहले वाला माहौल तो शायद ही देखने को मिले. जब भी सरकार और किसानों के बीच बातचीत होती, केंद्रीय मंत्री कुछ नये प्रस्ताव के साथ आते, लेकिन दस दौर की बातचीत में तो किसान नेता सीधे सीधे खारिज ही कर देते रहे. हां, 11वें दौर की बातचीत में सरकार के प्रस्ताव पर थोड़ा सकारात्मक रुख दिखाया जरूर था, सोचेंगे. विचार करेंगे, लेकिन सोच विचार के बाद वो भी खारिज कर दिया.

आखिरी बातचीत में सरकार ने 18 महीने तक कानूनों को होल्ड करने और उसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा भी दाखिल करने को कहा था. आखिर में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का यही कहना रहा कि सरकार के पास इससे ज्यादा बड़ा और कोई प्रस्ताव नहीं है, लेकिन वो भी किसानों ने नामंजूर कर दिया. 26 जनवरी की ट्रैक्टर रैली से पहले भी कृषि मंत्री ने किसान नेताओं से सरकार के प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार करने की अपील की थी, लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया और न ही कोई तत्परता दिखायी.

अब हालात बदल चुके हैं. सरकार पहले गेंद किसान नेताओं के पाले में डालती रही, अब सब कुछ उलट चुका है. पहले किसान नेता एकजुट थे और सरकार बेबस थी. अब किसान नेताओं की आपसी फूट सामने आने लगी है और सरकार राहत की सांस लेने के बाद सब कुछ अपने हिसाब से घुमाने की कोशिश में है. पुलिस एक्शन के डर से किसान नेता एक दूसरे पर भी आरोप प्रत्यारोप लगाने लगे हैं, सरकार भी तो यही चाहती थी.

बड़ी बात, फिर भी, यही है कि सरकार ने बातचीत का रास्ता बंद नहीं किया है. ऐसा कोई संकेत नहीं दिया है कि कृषि कानूनों को भी सीएए की तरह ही लागू कर दिया जाएगा.

जहां तक किसान नेताओं का सवाल है तो अभी सभी ने हथियार भी नहीं डाले हैं. बस ये है कि ज्यादातर अलग अलग रास्ता अख्तियार कर चुके हैं. अभी कई किसान नेता कह रहे हैं कि किसान आंदोलन अब बी जारी है - और आगे भी यूं ही चलता रहेगा. हालांकि, पुलिस एक्शन को लेकर एक हदस तो मन में घर कर ही चुका है.

ये तो है कि सरकार ने बातचीत से मुंह नहीं मोड़ा है. ये भी है कि सकार जबरन कानून थोपने के मूड में नहीं लग रही है, लेकिन मान कर चलना होगा आगे से बातचीत का एजेंडा सरकार ही तय करेगी - और ये भी जरूरी नहीं कि कानूनों को 18 महीने होल्ड करने का प्रस्ताव आगे भी देखने को मिले.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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