बकरीद पर कश्मीर में जिंदगी तो थमी मगर हिंसा नहीं
कश्मीर में बकरीद का मौका भी आम दिनों सा रहा, हर रोज की तरह लोग दुनिया से डिस्कनेक्ट रहे. जब बाहर निकलना मुमकिन न हो तो क्या हो? इसलिए लोगों ने घरों और कॉलोनियों को ही ईदगाह मान लिया.
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कश्मीर में बकरीद का मौका भी आम दिनों सा रहा, हर रोज की तरह लोग दुनिया से डिस्कनेक्ट रहे. कर्फ्यू के कारण जनजीवन तो थमा रहा लेकिन हिंसा नहीं. हजरत बल और जामा मस्जिद बंद हैं, जब बाहर निकलना मुमकिन न हो तो क्या हो? इसलिए लोगों ने घरों और कॉलोनियों को ही ईदगाह मान लिया.
लेकिन उनकी बेचैनी का क्या जिन 25 के नाम आतंकवादी अपने हिट लिस्ट में बता रहे हैं.
वानी का जवाब वानी
अब तक घाटी में सुरक्षा बलों के हाथों मारे गये आतंकवादी बुरहान वानी के नाम पर हवा बह रही थी. नबील अहमद वानी बीएसएफ में सेलेक्ट होकर हवा रुख मोड़ने की कोशिश की है. केंद्र सरकार से लेकर बीएसएफ तक नबील के चलते गदगद है.
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बीएसएफ के आला अफसरों ने अपने साथ नबील को लेकर गृह मंत्री राजनाथ सिंह से तो मिलवाया ही, खबर है कि कश्मीर को लेकर एक सुरक्षा बैठक में भी नबील को शामिल किया गया. बताया जाता है कि इस बैठक में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल भी मौजूद थे.
मिशन कश्मीर के तहत राजनाथ सिंह रूस और अमेरिका की यात्रा पर निकल रहे हैं. मकसद है - आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अलग थलग करना.
वे 25 लोग
ईद की नमाज तो उन्होंने भी पढ़ी होगी - और एक दूसरे को बधाई दी होगी लेकिन बेचैनी शायद ही थमने का नाम ले पायी हो. जिनके पास बीएसएनएल का पोस्ट पेड कनेक्शन होगा उन्होंने शायद पुलिस से संपर्क भी किया हो.
बात उन लोगों की हो रही है जिनके नाम आतंकियों के वीडियो में शामिल हैं. उत्तरी कश्मीर में शेयर हुए उस वीडियो में जिस किसी का भी नाम उछला दौड़ कर थाने पहुंचा - और जान की हिफाजत की गुहार लगायी.
कर्फ्यू के साये में बकरीद भी... |
पुलिस और सुरक्षा बलों के लिए ये एक नये तरह की मुसीबत है जिनसे उन्हें निबटना पड़ रहा है. असल में वीडियो में धमकी दी गयी है कि वे लोग जो सुरक्षा बलों की मदद कर रहे हैं, उन्होंने अपनी हरकत जारी रखी तो उसके नतीजे खतरनाक हो सकते हैं. इस वीडियो में 25 लोगों के नाम होने की बात सामने आयी है.
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टेरर वीडियो को लेकर सबकी नींद हराम होनी स्वाभाविक है, लेकिन सुरक्षा बलों को ये सब ट्रिकी एक्ट भी लग रहा है. माना ये भी जा रहा है कि आतंकवादी लोगों पर मनोवैज्ञानिक दबाव बनाने के लिए ये तरीका अपना रहे हों - क्योंकि 90 के दशक में भी ऐसी चीजें कभी देखने को नहीं मिलीं जिसमें साफ तौर पर लोगों के नाम लेकर पब्लिकली धमकाया जाय.
आतंकियों ने लोगों को सुरक्षा बलों और पुलिस की मदद न करने के लिए बकरीद तक की डेडलाइन बख्शी थी - और ये आज खत्म हो रही है. टेंशन की बात फिलहाल यही है.
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