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Updated: 12 अप्रिल, 2019 04:58 PM
श्रुति दीक्षित
श्रुति दीक्षित
  @shruti.dixit.31
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लोकसभा चुनाव 2019 आते ही देश में एक अलग सा माहौल हो गया है. हर तरफ लोग चुनावी चर्चा में व्यस्त हैं और सरकारी कर्मचारी चुनावों की तैयारी में. चुनाव आते ही सरकारी कर्मचारियों के साथ क्या होता है ये शायद बहुत से लोग जानते होंगे. उनकी ड्यूटी किस कदर बढ़ जाती है बढ़ी हुई ड्यूटी के साथ कई बार उन्हें मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिलती हैं. पर इस ड्यूटी से बचने के लिए लोग बेहद अजीबो-गरीब बहाने बनाने लगे हैं. हर बार इलेक्शन से पहले सरकारी कर्मचारियों की छुट्टी की अर्जियां आना आम बात है, लेकिन कुछ लोग उसमें ऐसे झूठ बोलते हैं या ऐसे बहाने बनाते हैं कि देखकर हंसी आ जाए.

'मैं बहुत मोटी हूं, मुझे छुट्टी दे दो' -

NBT की एक खबर के मुताबिक लखनऊ की एक बैंक कर्मचारी को जब चुनाव ड्यूटी करने को कहा गया तो वो सीनियर के पास जाकर बोलीं, 'सर आप खुद देख लीजिए मैं कितनी मोटी हूं, भला मैं चुनाव में ड्यूटी कैसे कर पाऊंगी. मेरी ड्यूटी काट दीजिए.' जब उनसे मेडिकल बोर्ड के सामने पेश होने को कहा गया तो उन्होंने खुद मना कर दिया.

सास की मौत का बहाना बनाकर ली छुट्टी-

जयपुर के एक कर्मचारी ने चुनाव ड्यूटी पर न आने के लिए एक अजीब बहाना बनाया. उनका कहना था कि उनकी सास का देहांत हो गया है. जिला कलक्टर जगरूप सिंह यादव ने मामला संदिग्ध होने के शक पर कार्मिक के घर फोन कर दिया और शोक जताया तो कर्मचारी की पत्नी चौंक पड़ीं और कहा कि नहीं ऐसा कुछ भी नहीं हुआ है. अब उनके सस्पेंड होने की नौबत तक आ गई है.

चुनाव, ड्यूटी, इलेक्शन, लोकसभा चुनाव 2019, सरकारी कर्मचारीअधिकारियों के सामने ऐसे बहाने आ रहे हैं जिनके बारे में सोचकर भी हंसी आ जाए.

ऐसे ही कोई यूरिक एसिड बढ़े होने की समस्या को लेकर, कोई गठिया के दर्द का बहाना करके, कोई चलने-फिरने में असमर्थ होने की बात करते हुए ड्यूटी कटाने की बात की. ड्यूटी कटवाने वालों ने हार्ट, शूगर, किडनी, पेट, पैर दर्द, यूरिक एसिड, गठिया, पाइल्स, गर्दन दर्द, पैदल चलने-बैठने में परेशानी, नजर कमजोर होने जैसी समस्याएं बताई.

चुनाव ड्यूटी करने को लेकर आखिर लोगों में इतना डर क्यों है? काम बढ़ने को लेकर चिंता है या फिर कोई और समस्या है?

'दिन भर धूप में खड़ा होना पड़ता है, बाथरूम तक नहीं जा पाते'

अक्सर चुनाव ड्यूटी के समय पुलिस अधिकारियों द्वारा ऐसे ऑर्डर दिए जाते हैं कि कम रैंक वाले अफसरों को दिन भर धूप में खड़ा होना पड़ता है. शिव पूजन उपाध्याय जो एक होम गार्ड के तौर पर काम करते हैं उनका कहना है कि इंस्पेक्टर और सब-इंस्पेक्टर बेंच पर बैठते हैं आराम भी कर लेते हैं, लेकिन हमें खड़ा होना पड़ता है, हम उनसे बाथरूम जाने का ब्रेक भी नहीं मांग सकते हैं. वो हमें रिस्क में खड़े होने देते हैं, गुंडों का सामना करने के लिए और खुद तभी आते हैं जब उनके पास वायरलेस में मैसेज आता है.

दिन-रात जागना पड़ता है-

सब-इंस्पेक्टर तशरीफ अहमद जो गोरखपुर से चुनावी ड्यूटी पर नोएडा आए हैं उनका कहना है कि वो 6 अप्रैल को घर से निकले थे और अब उन्हें पूरे महीने इलेक्शन ड्यूटी करनी है. आम दिन पर 9-10 घंटे की ड्यूटी अब दिन-रात की हो गई है. वो नोएडा सेक्टर 12 के स्कूल में आए थे ड्यूटी करने. वहां CCTV नहीं था तो रात भर जागकर रखवाली करनी थी. क्योंकि अगर एक भी EVM चोरी हो जाती तो उन्हें सस्पेंड कर दिया जाता या इन्कावइरी होती. चुनाव ड्यूटी आसान काम नहीं है.

ये हालत सिर्फ पुलिस वालों की नहीं है बल्कि स्कूल टीचर, बैंक कर्मचारियों और अन्य सभी सरकारी कर्मचारियों की है जिन्हें चुनाव ड्यूटी करने भेजा जाता है.

अपने घर की आप-बीती जो समस्या का आभास करवाएगी-

मेरे पिता सरकारी शिक्षक हैं और वोटिंग कार्ड बनवाने से लेकर चुनाव ड्यूटी तक उन्होंने हर ड्यूटी की है. सुबह 7 बजे घर से निकलकर दूर गांव में जाना और देर रात 11 बजे वापस आना, कभी-कभी वहीं रुक जाना ये आम है. पर जहां उन्हें जाना होता है वहां जरूरी नहीं है कि वहां एक पंखा हो. थोड़ा भी आराम मिल सके. चलिए ये कह लिया जाए कि सिर्फ चुनाव के समय काम करना होता है, लेकिन ये चुनावी तैयारी में बहुत कुछ लगता है. ऐसे में अगर किसी मास्टर का बीपी लो हो गया या तबीयत ज्यादा बिगड़ गई तो कई बार मामला संभालना मुश्किल हो जाता है क्योंकि पोलिंग बूथ छोड़कर कोई कैसे जाए.

चुनाव ड्यूटी से बचने के लिए अधिकतर लोग फर्जी बहाने बनाते हैं ये समझ आता है, लेकिन क्या कारण है कि ऐसा हो रहा है ये सोचने वाली बात है. सभी आलसी नहीं हो सकते, सभी कामचोर नहीं हो सकते, पर सभी चिंतित जरूर हो सकते हैं.

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लेखक

श्रुति दीक्षित श्रुति दीक्षित @shruti.dixit.31

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में पत्रकार हैं.

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