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Updated: 15 दिसम्बर, 2017 11:29 AM
शुभम गुप्ता
शुभम गुप्ता
  @shubham.gupta.5667
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गुजरात चुनाव की अगर बात करें, तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर प्रधानमंत्री मोदी तक हर कोई चुनाव प्रचार प्रसार में लगभग दो महीने तक दिखाई दिया. किसी नेता ने रोड शो किया तो किसी ने ज़ोरदार रैलियां की. मगर जैसे ही वोटिंग के एक दिन पहले राहुल गांधी ने एक टीवी चैनल को इंटरव्यू दिया, उसके बाद पता नहीं जैसे भूचाल आ गया.

बीजेपी ने इसकी शिकायत चुनाव आयोग से कर डाली. बीजेपी का कहना था कि ये कानून का उल्लंघन है और इस तरह से टीवी पर इंटरव्यू नहीं दिया जा सकता. चुनाव आयोग भी जागा. नतीजन सीधे राहुल गांधी को नोटिस थमा दिया. एक ओर तो बीजेपी के नेता, मंत्री, प्रवक्ता, मुख्यमंत्री सभी कहते हैं कि अच्छा है राहुल गांधी कुछ बोलें. क्योंकि उनके बोलने से तो हमें फायदा ही होता है. तो फिर अचानक बीजेपी को क्या हो गया? राहुल गांधी के पांच मिनट के इंटरव्यू में उन्होंने ऐसा भी क्या बोल दिया था, जो पिछले दो महीनों में न कहा हो? मगर बीजेपी ने विरोध जताया.

जिस दिन राहुल ने टीवी चैनल पर इंटरव्यू दिया, उसी दिन प्रधानमंत्री मोदी ने भाषण दिया. इसे सारे न्यूज़ चैनलों ने लाइव दिखाया. अब इसे लेकर कांग्रेस ने चुनाव आयोग से शिकायत की. मगर चुनाव आयोग ने कुछ नहीं कहा. वहीं अगर आज यानी मतदान वाले दिन की बात की जाये तो जब प्रधानमंत्री वोट डालने पहुंचे तो उन्होंने एक रोड शो किया और लोगों का अभिवादन स्वीकार किया. इसे लेकर भी कांग्रेस चुनाव आयोग के पास पहुंची. मगर नतीजा कुछ नहीं निकला.

Gujarat, electionदो महीने में अगर वोटर को नहीं लुभा पाए तो एक और दिन में क्या हो जाएगा?

इससे पहले नरेंद्र मोदी ने 2014 लोकसभा चुनाव में मतदान कर कमल के फूल के साथ सेल्फी अपलोड की थी. तब भी कांग्रेस ने चुनाव आयोग से शिकायत की थी, मगर कुछ नहीं हुआ था. हमारा सवाल ये है की आज का दौर सोशल मीडिया का दौर है. टीवी का दौर है. चुनाव आयोग को भी अब वक़्त के साथ चलने की ज़रूरत है. जब कोई नेता दो महीने से अपनी रैलियों में चीख चीखकर अपने वादे जनता के बीच लेकर जा रहा है तो एक दिन अगर कोई नेता और प्रचार कर लेगा तो कौन सा भूचाल आ जायेगा?

वहीं अगर सोशल मीडिया की बात करें तो उस पर तो किसी का बस नहीं है. हर कोई अपनी पार्टी का चुनाव प्रचार प्रसार कर रहा है. न जाने कितने पेज सोशल मीडिया पर राजनीतिक पार्टियों के बने हुए हैं. वैसे भी अब पार्टियां आईटी सेल पर ज़्यादा पैसा खर्च करती हैं. मगर वहां तो चुनाव आयोग कभी नहीं कहता कि यहां रोक लगाओ. इसके आलावा जब लोग मतदान करने जाते हैं, तब भी कुछ पार्टियों के एजेंट बूथ पर मौजूद होते हैं और मतदाता को कहते हैं कि हमारी पार्टी को ही वोट देना. इन कार्यकर्ताओं का भी नहीं समझ आता. अरे भाई, तुम्हारे नेता दो तीन महीनों से बोल रहे हैं, हमको वोट देना, अगर वोट देना ही है तो लोग राहुल या मोदी जी की सुनेंगे या तुम्हारी? 

कुल मिलकर अब चुनाव आयोग को भी अपडेट होने की ज़रूरत है. जैसे चुनाव आयोग अपडेट होकर EVM से चुनाव करवाता है. ऐसे ही अब ये सिलसिला ख़त्म कर देना चाहिए. क्योंकि कोई पार्टी या नेता आचार सहिंता का उल्लंघन जाने अनजाने कर ही देता है. मगर चुनाव आयोग किसी तरह की कोई ठोस कार्यवाही नहीं कर पाता. इससे चुनाव आयोग की छवि भी ख़राब होती है. इसलिए इन नेताओं को एक दिन और बोल लेने दो.

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लेखक

शुभम गुप्ता शुभम गुप्ता @shubham.gupta.5667

लेखक आज तक में पत्रकार हैं.

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