New

होम -> सियासत

 |  5-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 04 मई, 2019 06:59 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
  • Total Shares

राहुल गांधी जब भी प्रेस कांफ्रेंस करते हैं, बाकी चीजों के अलावा एक बात के लिए ताना जरूर मारते हैं - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कभी प्रेस कांफ्रेंस नहीं करते. वो हर बार ललकारते भी हैं कि प्रधानमंत्री मोदी कभी तो प्रेस का सामना करें - और सवालों के जवाब दें.

ऐन उसी वक्त राहुल गांधी सर्जिकल स्ट्राइक का थोड़ा सा भी क्रेडिट प्रधानमंत्री को देना नहीं चाहते. जितना जोर राहुल गांधी का प्रेस कांफ्रेंस पर होता है, कभी सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर वैसा नहीं महसूस होता - बल्कि, लगता है जैसे वो सेना की तारीफ कर रस्मअदायगी कर रहे हों. ऐसा क्यों लगता है जैसे राहुल गांधी को सर्जिकल स्ट्राइक से ज्यादा हिम्मत वाला काम प्रेस कांफ्रेंस लगता है?

चुनावी राजनीति में Me Too-Me Too

वैसे तो मी टू मुहिम मोदी सरकार के लिए भी महंगी पड़ी है, कुछ पत्रकारों के यौन शोषण के आरोप लगाने पर एमजे अकबर को मंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा था. ‘मी टू’ अभियान को नदियों की सफाई से जोड़ते हुए एक बार उमा भारती ने भी कहा था कि गंगा और यमुना की सफाई का मिशन पूरा होने के बाद देश-दुनिया की दूसरी नदियां भी ‘मी टू’ का आह्वान करेंगी. सर्जिकल स्ट्राइक पर कांग्रेस के कोरस को अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उमा भारती की तरह मी-टू से जोड़ दिया है.

प्रधानमंत्री मोदी का कहना है, 'अब जब देश की जनता सर्जिकल स्ट्राइक के बाद हमारे साथ आ गई तो कांग्रेस कह रही है कि हमने 6 स्ट्राइक की - और सर्जिकल स्ट्राइक पर अब मी टू-मी टू कहा जा रहा है.'

अपनी प्रेस कांफ्रेंस में राहुल गांधी ने यूपीए सरकार के दौरान हुई सर्जिकल स्ट्राइक पर प्रधानमंत्री मोदी के बयानों का जवाब भी दिया. राहुल गांधी ने कहा कि सेना की स्ट्राइक को वीडियो गेम बताकर प्रधानमंत्री मोदी देश की सेना को बदनाम कर रहे हैं.

राहुल गांधी बोले - 'सेना किसी व्यक्ति नहीं, बल्कि देश की होती है. सेना मोदी की संपत्ति नहीं है. जब वो कहते हैं कि सेना ने कांग्रेस के शासनकाल में स्ट्राइक नहीं की थीं तब वो भारतीय सेना का अपमान कर रहे होते हैं.' राहुल गांधी ने मोदी को भी सलाह दी कि प्रधानमंत्री में इतनी रेस्पेक्ट होनी चाहिए कि वो सेना का अपमान न करें.

rahul gandhi, narendra modiक्या राहुल गांधी बीजेपी की चुनौती स्वीकार करेंगे?

2016 के उड़ी हमले के बाद हुई सर्जिकल स्ट्राइक के दौरान राहुल गांधी यूपी में किसान यात्रा के तहत खाट सभा कर रहे थे. जब यात्रा पूरी कर दिल्ली पहुंचे तो मोदी सरकार पर धावा बोल दिया, 'आप खून की दलाली करते हो.' हालांकि, बाद में राहुल गांधी या कांग्रेस के किसी नेता ने ये बात नहीं दोहरायी. बालाकोट एयर स्ट्राइक के बाद तो राहुल गांधी ने खुल कर कहा कि वो सरकार और सेना के साथ हैं. लेकिन ये ज्यादा दिन नहीं चला और कांग्रेस के कई नेता तरह तरह की बयानबाजी पर उतर आये थे.

राहुल गांधी का प्रेस कांफ्रेंस पर इतना जोर क्यों?

राहुल गांधी ने अपने ताजा प्रेस कांफ्रेंस में आरोप लगाया कि भारत के प्रधानमंत्री के सम्मान को दुनिया भर में ठेस पहुंच रही है. बकौल राहुल गांधी इसकी वजह भी एक ही है - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का प्रेस कांफ्रेंस न करना.

मीडिया से अपील करते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कहा, 'उनसे कहिए प्रेस से वार्ता करें, उनकी अंतराष्ट्रीय स्तर पर बहुत बेइज्ज्ती हो रही है.' साथ ही राहुल गांधी ने ये भी दावा किया कि भारतीय प्रधानमंत्री में अंतरराष्ट्रीय मीडिया तो क्या भारतीय मीडिया के सामने खड़े होने होने की हिम्मत नहीं है.

राहुल गांधी के आरोपों का जवाब देने के लिए बीजेपी प्रवक्ता जीवीएल नरसिम्हा मीडिया के सामने आये. जीवीएल नरसिम्हा ने आते ही आरोप जड़ दिया कि राहुल गांधी ये सब हताशा में बोल रहे हैं.

बीजेपी प्रवक्ता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाल में पत्रकारों के साथ बातचीत का हवाला देते हुए राहुल गांधी के आरोपों को खारिज करने की कोशिश की. जीवीएल नरसिम्हा ने कहा कि पिछले डेढ़ महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हर मीडिया संस्थान को इंटरव्यू दिया है - और हर सवाल का जवाब भी दिया है.

आखिर राहुल गांधी प्रेस कांफ्रेंस को इतना अधिक महत्व क्यों दे रहे हैं? क्या प्रेस कांफ्रेंस कोई नार्को टेस्ट है कि जो भी सवाल पूछा जाएगा उसके जवाब में हर जवाब सच ही आएगा? या फिर प्रेस कांफ्रेंस पुलिया या किसी सरकारी जांच एजेंसी या प्राइवेट डिटेक्टिव का फोरम है जहां किसी से भी सच उगलवा लिया जाएगा?

क्या ऐसे नेता नहीं हैं जो प्रेस कांफ्रेंस बुलाते हैं. जब मीडिया पहुंचता है तो एक लिखा हुआ बयान बांच देते हैं - और सवाल की बारी आती है तो उठ कर चल देते हैं. जाते जाते मीडिया की तरफ ऐसी हिकारत भरी नजर से देखते हैं जैसे सवालों के जबाव नहीं कोई भीख मांग रहा हो. क्या राहुल गांधी ने ऐसे नेताओं के प्रेस कांफ्रेंस पर कभी ध्यान दिया है.

वैसे भी प्रेस कांफ्रेंस में मीडिया सवाल करता है. एक सवाल के जवाब से दूसरा सवाल पैदा होता है. सवाल पर सवाल और जवाब होते हैं - लेकिन राजनीति में जो लाइन पहले से तय है जवाब वही होता है.

कहीं राहुल गांधी ऐसा तो नहीं सोचते कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के प्रेस कांफ्रेंस में मीडिया सवाल पूछेगा तो जवाब में वही सुनने को मिलेगा जो राफेल, रोजगार या किसानों के मामले में कांग्रेस नेताओं के इल्जामात होते हैं?

वैसे बीजेपी प्रवक्ता ने भी राहुल गांधी को एक सलाह दे डाली है - 'राहुल गांधी कोई नया टीवी चैनल खोलें तब वो प्रेस कॉन्फ्रेंस का आग्रह कर लें, अच्छा रहेगा.' अब तो इंतजार इस बात का भी रहेगा कि राहुल गांधी बीजेपी की ये चुनौती स्वीकार करते हैं या नहीं?

इन्हें भी पढ़ें :

'आदिवासियों को गोली मारने का कानून': राहुल गांधी के झूठ कांग्रेस को न ले डूबे

Rahul Gandhi Interview: अहम मुद्दों पर राहुल की राय वोटरों को कितना प्रभावित करेगी?

घुमाकर नाक पकड़ने वाले राहुल गांधी ने सीधे-सीधे कान पकड़ लिए

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय