New

होम -> सियासत

 |  3-मिनट में पढ़ें  |  
Updated: 24 मार्च, 2015 11:01 AM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
  @msTalkiesHindi
  • Total Shares

केंद्रीय मंत्री वीके सिंह शाम साढ़े सात बजे पाक उच्चायोग पहुंचे थे - और 10 मिनट बाद चल दिए. 10 बजे उन्होंने पहला ट्वीट किया - उसके बाद चार ट्वीट और किए, जिनमें उन्होंने 'ड्यूटी' और 'असंतोष' की बात की.

पाक को नसीहत और चेतावनी दिन में प्रधानमंत्री मोदी ने ट्वीट कर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को पाकिस्तान के राष्ट्रीय दिवस पर बधाई देने की जानकारी दी और दूसरे ट्वीट में नसीहत, 'मेरा मानना है कि भारत-पाकिस्तान को बातचीत से सारी समस्याओं का हल निकालना चाहिए. लेकिन बातचीत ऐसे माहौल में होना चाहिए जहां हिंसा और आतंक न हो.'

इसी दरम्यान विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता सैयद अकबरूद्दीन ने भी कहा, 'पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय संबंधों के रूप में शांतिपूर्ण बातचीत के जरिए हम सभी मामले सुलझाने को तैयार है. इस दौरान तीसरे पक्ष की भूमिका पहले भी कभी नहीं रही और आगे भी नहीं होगी.'

पॉलिटिक्स और डिप्लोमेसी की इसी रणनीति का हिस्सा सिंह भी थे. इस बार सरकार ने हुर्रियत नेताओं की शिरकत पर कोई एतराज नहीं जताया. साथ ही पाक उच्चायोग के कार्यक्रम में सरकारी प्रतिनिधि के रूप में विदेश राज्य मंत्री सिंह को भेजा था. न्योता विदेश मंत्री सुषमा स्वराज को भी था, लेकिन वो इससे दूर रही.

अपनी 'ड्यूटी' मानकर सिंह कार्यक्रम में पहुंचे भी. पाक उच्चायुक्त अब्दुल बासित के साथ फोटो भी खिंचवाए, ताकि सनद रहे, लेकिन उससे ज्यादा वहां रुकना उनके लिए मुनासिब नहीं लगा और वो खिसक लिए.

ड्यूटी, डिस्गस्ट और डिप्लोमेसी वैसे उस कार्यक्रम में वीके सिंह की मौजूदगी कइयों के लिए चौंकाने वाली बात थी. पिछले साल जिन हुर्रियत नेताओं से पाक उच्चायुक्त के मुलाकात के चलते भारत ने पाकिस्तान से बातचीत बंद कर दी थी, उन्हीं की मौजूदगी में सिंह कार्यक्रम में शामिल को शामिल होना पड़ा.

एक फौजी में लीडरशिप की सूझबूझ तो कूट कूट कर भरी होती है, लेकिन राजनीतिक और राजनयिक चतुराई कम हो सकती है. फौजी क्रोध में चेहरे पर मुस्कुराहट लाने में यकीन नहीं रखता, नेता और राजनयिक के लिए के लिए तो ये रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा है. शायद इसीलिए सिंह को राजनीतिक सांचे में खुद को ढालने में दिक्कत हो रही होगी.

जब मोदी मंत्रिमंडल का गठन हुआ तो सिंह को राज्य मंत्री बनाया गया. स्वाभाविक तौर पर, जैसी की चर्चा थी, सिंह की रक्षा मंत्रालय में जाने की थी. कुछ ही महीने पहले आर्मी चीफ के पद से रिटायर हुए सिंह को विदेश मंत्रालय में राज्य मंत्री बनाया गया. ये एक राजनीतिक फैसला था. सिंह और कर भी क्या सकते थे.

मंत्री बनने के बाद सेना से जुड़े एक मामले में उन्होंने अपनी बात जोर शोर से रखी, लेकिन सरकार ने उसे न सिर्फ नजरअंदाज किया बल्कि पल्ला भी झाड़ लिया. सिंह चुप रहे. लेकिन बात जब पाकिस्तान की हो, और उसके स्टैंड को सपोर्ट करनेवालों की हो तो चुप रहना कठिन हो जाता है. सिंह के ताजा ट्वीट तो यही संकेत दे रहे हैं. हालांकि, निशाने पर उन्होंने मीडिया को लिया.

आसान नहीं होती सियासत की सीढ़ी फौजी सिर्फ यूनिफॉर्म पहनने से नहीं, पूरे दिलो-दिमाग से होता है. वैसे ही नेता भी सिर्फ लिबास से नहीं होता. वक्त की पाबंदी के चलते भले ही फौजी को यूनिफॉर्म टांग देनी पड़े और नये लिबास धारण करनी पड़े - उसकी अपनी शख्सियत तकरीबन बेअसर रहती है.

वीके सिंह की हरी जैकेट [जो संयोगवश या जानबूझ कर जैसे भी पहनी गई हो] भी पाकिस्तान या पाक परस्त हुर्रियत नेताओं के प्रति न तो धारणा बदल सकी और न ही डिप्लोमेसी के सिद्धांतों के तहत खुद को ढालना सिखा पाई. राजनीति में आने वाले वो पहले फौजी तो नहीं हैं, लेकिन हकीकत तो यही है कि फौजी के नेता बनने में वक्त तो लगता है.

लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

iChowk का खास कंटेंट पाने के लिए फेसबुक पर लाइक करें.

आपकी राय