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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 27 सितम्बर, 2020 06:10 PM
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देवेंद्र फडणवीस (Devendra Fadnavis) और संजय राउत (Sanjay Raut) यूं भी मिले होते तो चर्चा तो होती ही. मीडिया की सुर्खियां बनतीं ही. लोग अपने अपने तरीके से कयास भी लगाते ही - लेकिन चुपके चुपके होटल पहुंच कर मुलाकात से रहस्य भी गहरायेगा और बातें तो बनेंगी ही!

महाराष्ट्र में शिवसेना की अगुवाई में कांग्रेस और एनसीपी के गठबंधन वाली महाविकास अघाड़ी सरकार बनने के बाद बीजेपी और शिवसेना के प्रमुख नेताओं की सामने आयी ये पहली मुलाकात है. अगर ऐसी मुलाकातें मीडिया की नजर से छूट गयी हों तो और बात है. अब ऐसी मुलाकातें होंगी बरबस ध्यान तो मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) की कुर्सी पर ही फोकस होगा - सब ठीक तो है ना?

मुलाकात की जो वजह बतायी गयी है वो सुन कर सस्पेंस और भी बढ़ जा रहा है - इंटरव्यू के लिए! गजब बात करते हैं. इंटरव्यू के लिए संजय राउत भला कौन सी तैयारी करते हैं कि पहले मिलना पड़ता है.

बड़ा सवाल तो ये है कि देवेंद्र फडणवीस के एक इंटरव्यू के लिए संजय राउत को होटल में छुप मिलने की जरूरत क्यों आ पड़ी?

सफाई में आये बयान विरोधाभासी क्यों?

शिवसेना के मुखपत्र सामना में देवेंद्र फडणवीस का इंटरव्यू पढ़ने के लिए अभी लंबा इंतजार करना होगा. और जब इंटरव्यू प्रकाशित होगा तो देवेंद्र फडणवीस ऐसे दूसरे गैर शिवसेना नेता होंगे जिनको ऐसा अवसर मिलेगा.

सामना में किसी गैर-शिवसेना नेता के पहले इंटरव्यू का रिकॉर्ड एनसीपी नेता शरद पवार के नाम दर्ज है. और जिन परिस्थितियों में संजय राउत ने देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात की है, ऐसी ही चर्चाओें को अक्टूबर, 2019 में भी हवा दी गयी थी. शरद पवार का इंटरव्यू जुलाई, 2020 में सामना में प्रकाशित हुआ था.

तब संजय राउत महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के नतीजे आ जाने के बाद शरद पवार से मिलने उनके घर गये थे. मुलाकात के बाद इंटरव्यू की कोई बात तो नहीं बताई थी, हां - इतना जरूर समझाने की कोशिश की कि वो दिवाली की बधाई देने गये थे. शिष्टाचार वश. चूंकि उन दिनों मुलाकातें किसानों की समस्याओं को लेकर हुआ करती रहीं, इसलिए संजय राउत की बातों पर उतने लोगों ने शक नहीं किया होगा जितने किसानों के नाम पर होने वाली मुलाकातों को लेकर किया करते थे.

आखिरकार किसानों के नाम पर होने वाली मुलाकातों का ही नतीजा रहा कि बीजेपी से गठबंधन तोड़ कर शिवसेना ने एनसीपी और कांग्रेस से हाथ मिलाया और उद्धव ठाकरे अपने पिता बालासाहेब ठाकरे के किये वादे को पूरा करते हुए एक शिवसैनिक को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बिठा दिये - बिठा तो दिये लेकिन तिपहिये पर खड़ी कुर्सी अक्सर डगमगाने लगती है. ऐसा कई बार हो चुका है और एक बार फिर से वही हो रहा है.

संजय राउत शिवसेना के मुख्य प्रवक्ता हैं. अव्वल तो ये होना चाहिये कि संजय राउत के बयान के बाद किसी को संशय नहीं होना चाहिये. किसी भी मुद्दे पर, अपवादों को छोड़ कर. मुश्किल तो ये है कि संजय राउत जितने बयान नहीं देते उससे ज्यादा सफाई देते फिरते हैं. मिसाल के तौर पर, संजय राउत ने कंगना रनौत को पहले 'हरामखोर लड़की' बताया. फिर समझाने की कोशिश की कि उनकी भाषा में 'नॉटी गर्ल', दरअसल, हरामखोर लड़की को कहते हैं - और फिर जब सामना में आर्टिकल लिखने बैठे तो 'नटी' लिख डाला - मराठी में नटी एक्टर को कहते हैं. हालांकि, ये गूगल ज्ञान है.

देवेंद्र फडणवीस और संजय राउत की मुलाकात को लेकर दोनों तरफ से एक सी जानकारी दी गयी होती तो मन मान भी जाता, लेकिन अलग अलग वजह बताकर शक पैदा कर दिया गया है. बीजेपी प्रवक्ता की तरफ से तो बड़े ही साफ शब्दों में इंटरव्यू की बात बता दी गयी है, लेकिन संजय राउत पलट कर सवाल पूछने लगते हैं - मिल नहीं सकते क्या? किसी भी मामले में जांच तभी होती है जब उससे जुड़े दो व्यक्ति अलग अलग बात बतायें. इस मामले में भी करीब करीब ऐसा ही हो रहा है.

महाराष्ट्र बीजेपी के मुख्य प्रवक्ता केशव उपाध्ये की सलाह है कि मुलाकात को लेकर कोई राजनीतिक दृष्टिकोण निकाले जाने की जरूरत नहीं है. केशव उपाध्ये ने मराठी में अपने एक ट्वीट में बताया है कि संजय राउत शिवसेना के मुखपत्र सामना के लिए देवेंद्र फडणवीस का इंटरव्यू करना चाहते थे - सिर्फ इसी बात को लेकर दोनों नेताओं के बीच बातचीत हुई है.

केशव उपाध्ये के मुताबिक, ये इंटरव्यू अभी नहीं होगा, बल्कि देवेंद्र फडणवीस जब बिहार चुनाव प्रचार खत्म होने के बाद लौटेंगे तब वो इंटरव्यू देंगे. मतलब, ये इंटरव्यू का 'कमिंग अप' टीजर रहा. आखिर संजय राउत एक इंटरव्यू के लिए कितने राउंड इंटरव्यू लेते हैं - क्या पहले इंटरव्यू में वो ये जानने की कोशिश करते हैं कि बंदा सामना में इंटरव्यू देने लायक है भी या नहीं? और फिर जब संतुष्ट होते तब बात आगे बढ़ती है - मतलब, सामना में जो इंटरव्यू पढ़ने को मिलते हैं वो फाइनल होता होगा और उसके पहले कई बार प्री-इंटरव्यू सेशन के लिए मुलाकातें हो चुकी होंगी.

devendra fadnavis, sanjay raut, uddhav thackerayदेवेंद्र फडणवीस और संजय राउत की मुलाकात के केंद्र में उद्धव ठाकरे सरकार नहीं तो और क्या बात है?

बीजेपी की तरफ से ये सफाई तब दी गयी जब मुलाकात को लेकर मीडिया में खबर आने के बाद तरह तरह की चर्चाएं शुरू हो गयीं. फिर संजय राउत को भी सफाई देने की जरूरत महसूस हुई - लिहाजा सफाई दे भी डाली, लेकिन बीजेपी प्रवक्ता से अलग बात बता डाली. जाहिर है शक तो पैदा होगा ही. आखिर छिपाया क्या जा रहा है?

देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात पर संजय राउत कहते हैं - 'मैं कुछ मुद्दों पर चर्चा करने के लिए देवेंद्र फडणवीस से मिला था... वो पूर्व मुख्यमंत्री हैं... वो महाराष्ट्र में विपक्ष के नेता हैं और बीजेपी के बिहार चुनाव प्रभारी भी हैं...'

मुद्दों पर चर्चा वाली मुलाकात के आगे क्या है?

संजय राउत को ये भी पता है कि लोग देवेंद्र फडणवीस से मिलने को लुका-छिपी मुलाकात मानेंगे, इसलिए सफाई देने के दौरान ही ये भी बता दिया कि मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को भी इस मुलाकात के बारे में मालूम था.

दोनों पक्षों की सफाई के बावजूद इस खास मुलाकात को सुशांत सिंह राजपूत केस के बाद के राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप से जोड़ कर देखा जा रहा है. सुशांत सिंह राजपूत केस की सीबीआई जांच को लेकर बीजेपी और शिवसेना के बीच काफी तनावपूर्ण संवाद हुए. पहले तो बीजेपी के पिता-पुत्र नेता नारायण राणे और नितेश राणे शिवसेना नेतृत्व उद्धव ठाकरे और उनके बेटे आदित्य ठाकरे पर हमलावर रहे, लेकिन बाद में बीजेपी के और भी नेताओं के बयान आ गये. सुशांत सिंह केस की वजह से ही देवेंद्र फडणवीस को बिहार चुनाव में प्रभारी बना कर पटना भेजा गया.

जिस तरह से सुशांत सिंह राजपूत केस की जांच मौत की वजह से ड्रग्स की तरफ शिफ्ट हो चली है, ऐसा लगता है राजनीति की लाइन भी अब बदल चुकी है. सुशांत सिंह राजपूत केस अब काफी पीछे छूटने लगा है. सुशांत सिंह के पिता केके सिंह के वकील विकास सिंह ने भी सीबीआई जांच की धीमी गति पर निराशा जतायी है.

मुख्य आरोपी रिया चक्रवर्ती को एनसीबी के गिरफ्तार कर जेल भेज देने के बाद से लेकर और दीपिका पादुकोण से पूछताछ तक के सफर में सुशांत सिंह केस की जांच कहां तक पहुंची है, किसी को भी अंदाजा नहीं लग रहा है. बीजेपी ने बिहार चुनाव में स्टीकर और पोस्टर जरूर छपवाये हैं, लेकिन अब वो बात नहीं लगती - ना भूले हैं, ना भूलने देंगे.

अब ये सवाल खड़ा हो गया है कि वे कौन से मुद्दे हैं जिनको लेकर देवेंद्र फडणवीस से संजय राउत मिलने गये होंगे?

सुशांत सिंह केस की सीबीआई जांच से पहले कुछ मीडिया रिपोर्ट में बताया गया था कि शिवसेना के एक नेता को महाराष्ट्र से आने वाले एक केंद्रीय मंत्री के पास भेजा गया था. ये कहने के लिए बीजेपी सीबीआई जांच को लेकर बवाल न करे, लेकिन केंद्रीय मंत्री हाथ खड़े कर दिये थे. बात नहीं बनी और शिवसेना गठबंधन सरकार के जोरदार विरोध के बावजूद मामला जांच के लिए सीबीआई के हवाले हो गया और उसे सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी भी मिल गयी.

बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने जो नयी टीम बनायी है, उसमें महाराष्ट्र के कई नेताओं को शामिल किये जाने के बाद देवेंद्र फडणवीस के महाराष्ट्र में ताकतवर होने के संकेत मिले हैं. देवेंद्र फडणवीस की कट्टर राजनीतिक विरोधी मानी जाने वाली पंकजा मुडे और विनोद तावडे़ को बीजेपी की नई राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल कर लिया गया है, जबकि एक और विरोधी एकनाथ खड्से को हाशिये पर डाल दिया गया है. महाराष्ट्र में विधान परिषद की नौ सीटों के लिए हुए चुनाव को लेकर टिकटों के बंटवारे में भी देवेंद्र फडणवीस का ही दबदबा देखने को मिला था. बहरहाल, अब तो संजय राउत को भी समझ आ गया है कि महाराष्ट्र बीजेपी को लेकर अगर कोई भी बात होनी है तो उसमें देवेंद्र फडणवीस की मंजूरी जरूरी होगी. रही बात उद्धव ठाकरे की तो उनकी भी स्थिति वैसी ही लगती है जैसी 2017 आने तक नीतीश कुमार की हो चली थी - और फिर एक दिन वो भी आया जब नीतीश कुमार ने महागठबंधन छोड़ कर फिर से एनडीए ज्वाइन कर लिया.

मुलाकात को लेकर हो रही चर्चाओं पर सवाल खड़े करते हुए नाराजगी भरे लहजे में कहा - हमारे बीच मतभेद हो सकते हैं, लेकिन हम दुश्मन नहीं हैं.

भला देवेंद्र फडणवीस और संजय राउत की मुलाकात से किसी को कोई दिक्कत क्यों हो सकती है, लेकिन बीजेपी प्रवक्ता कह रहे हैं कि इंटरव्यू के लिए मुलाकात हुई है और संजय राउत कह रहे हैं कि कुछ मुद्दों पर बात करने के लिए मिले हैं. अब या तो बीजेपी प्रवक्ता दोनों की बातों को उनके अपने अपने सच मान लिया जाये या फिर दोनों के बयानों को शक के दायरे में रख कर समझा जाये.

सीआईडी वाले एसीपी प्रद्युम्न का डायलॉग तो एक ही होता - कुछ तो गड़बड़ है दया!

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