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Updated: 05 फरवरी, 2023 01:01 PM
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पाकिस्तान में मजहबी अल्पसंख्यक भारी अराजकता में रहने को विवश हैं. उनकी सुरक्षा की कोई गारंटी पाकिस्तान के तमाम शांत इलाकों में भी नजर नहीं आ रही है. कराची में अल्पसंख्यकों की इबादतगाह पर हमला इसी का नतीजा है. भारत में नाना प्रकार के राजनीतिक विवाद खड़े किए जा रहे हैं. कुछ लोगों का आरोप है कि असल में पड़ोस में हो रहे उथल-पुथल की तरफ भारत का ध्यान ना जाए, इस वजह से वोटबैंक की राजनीति करने वाले दल आजकल बहुत व्यस्त हैं. बावजूद कि पाकिस्तान की तमाम चीजें किसी भी लिहाज से भारत के लिए बेहतर नहीं हैं. इसमें भारतीय समाज के लिए बहुत बड़े सबक छिपे हैं कि कैसे विदेशी ताकतों ने भारत को दो टुकड़े में बांटकर निर्दोष नागरिकों को एक अंतहीन पीड़ा में झोंक दिया.

पाकिस्तान में हर लिहाज से हालात बहुत खराब हैं. शायद ही बताने की जरूरत पड़े. बावजूद कि पहले पठान के प्रमोशन में व्यस्त रहा भारतीय मीडिया बाद में धीरेंद्र शास्त्री और रामचरित मानस की बहस में कुछ इस तरह मदमस्त है कि पड़ोस की अमानवीयता भी उसका ध्यान नहीं खींच पा रही हैं. बलूचिस्तान और खैबर पख्तूनख्वा (केपीके) की कथित आजादी के बाद मियांवाली के थाने पर हमला कर पंजाब के इलाकों में टीटीपी के घुसने की खबरें आ चुकी हैं. यानी पाकिस्तान के तमाम इलाकों में आतंकी सक्रियता बढ़ती ही जा रही है. टीटीपी ने केपीके में सरकार भी गठित कर ली है. पीओके को अपने नक़्शे में दिखाया है.

बावजूद अभी तक भारत के किसी भी राजनीतिक दल की मानवीय प्रतिक्रियाएं सामने नहीं आई हैं. मजहबी कट्टरपंथ और वहां अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर किसी भी दल ने बयान नहीं दिया है. उन दलों ने भी बयान नहीं जारी किया जो चाहते हैं कि सरकार रामचरित मानस को एडिट करवाए. यह वही लोग हैं जो नुपुर शर्मा के बयान के बाद सिर तन से जुदा के नारों पर खामोश थे. जबकि एक धर्मग्रन्थ में दर्ज तथ्य पर टिप्पणी की वजह से ना जाने कितने लोगों को हिंसा का सामना करना पड़ा और जान गंवाने पड़ा है. इससे पता चलता है कि सिस्टम जिसके हाथ में होता है चीजों पर उसी का नियंत्रण रहता है. भारत की केंद्रीय सत्ता में भले कुछ सालों से विचार विशेष के लिए लोग ना हों, मगर उनका सिस्टम अभी भी बिल्कुल कमजोर नहीं पड़ा है. वह वैसे ही काम कर रहा है जैसे पहले करता रहा है.

karachiकराची में मस्जिद का तोड़ा जाना अफसोसजनक है. फोटो- ट्विटर से साभार.

कराची की घटना ने बताया कि अब भारत चुप रहा तो हालात गंभीर हो जाएंगे

साफ़ है कि पाकिस्तान के खौफनाक हालात सीधे-सीधे भारत की संप्रभुता से जुड़ा मसला है बावजूद यह मीडिया और नैरेटिव पर कंट्रोल करने वालों की हालिया योजनाओं और राजनीतिक प्रयासों का ही प्रतिफल है कि भारतीय समाज में पाकिस्तान की अराजकता बहस का विषय नहीं बन पाया है. पाकिस्तान से जो ताजा अपडेट आया है- वह वहां पेशावर ब्लास्ट और मियांवाली में पुलिस थाने पर हमले के बाद की ही कैटेगरी में रखा जाना चाहिए. बल्कि और गंभीर है. भले यहां किसी की जान ना ली गई हो पेशावर की तरह. इससे पता चलता है कि पाकिस्तान ने अपनी भूखी नंगी जनता को अल्पसंख्यकों का खून पीने के लिए अब खुल्ला छोड़ दिया है.

असल में कराची के एक इलाके से बहुत भयावह वीडियो सामने आया है. वीडियो में नजर आ रहा है कि कुछ लोग बेरोक एक मस्जिद को तोड़ रहे हैं. हैरान मत होइए. पाकिस्तान में जो मस्जिद तोड़ी जा रही है वह अहमदिया मुसलमानों की है. अहमदिया मुसलमानों को कट्टरपंथी मुसलमान मानते ही नहीं हैं. पाकिस्तान में उनकी मस्जिद को मस्जिद भी नहीं कहा जाता है. मस्जिद तोड़ने वाले आतंकी नहीं बल्कि वहां की आम जनता ही है. यानी यह वीडियो आई चौक की उन चिंताओं को ही पुष्ट करता दिख रहा है- जिसमें आशंका जताई गई थी कि तंगहाल पाकिस्तान सरकार अपनी भूखी नंगी जनता का ध्यान बंटाने के किए 'अल्पसंख्यकों को चारे' के तौर पर इस्तेमाल कर सकती है. और इसकी वजह से वहां की कट्टरपंथी जनता अल्पसंख्यक समूहों की तरफ भूखे भेड़िए की तरह टूट पड़ सकती है. हिंदू सिखों पर लंबे वक्त से हमले जारी हैं. कराची में मस्जिद पर हमला उसी का प्रमाण है.

अल्पसंख्यक तो भारत में संरक्षित हैं जहां सभी दलों को उनकी फ़िक्र है  

शियाओं के बाद अब अहमदिया भी उनके निशाने पर है. वहां हिंदू सिख समेत तमाम अल्पसंख्यकों का नरसंहार किया जा सकता है. दुर्भाग्य है कि पूरी दुनिया पाकिस्तान के अंदरुनी हालात को लेकर चुप है. ऐतिहासिक जिम्मेदारी होने के बावजूद भारत के राजनीतिक दल चुप हैं. भारत की सरकार चुप है. भारत में बाबरी मस्जिद से लेकर इजरायल की अल अक्सा मस्जिद तक के लिए आंदोलित रहने वाले कट्टरपंथी और लेफ्ट लिबरल धड़ा भी कराची के वाकए पर खामोश हैं. लोग वहां पाकिस्तान को कट्टरपंथ के जरिए लोगों के नरसंहार के जरिए खुद की चीजों को छिपाने का बहाना दे रहे हैं और उसके लिए समूची दुनिया में माहौल चलाया जा रहा है.

पाकिस्तान ने इस्लाम के नाम पर एक अलग मुल्क जरूर बनवा लिया. नेहरू-लियाकत समझौता भी हुआ मगर पाकिस्तान में उसका पालन तक नहीं किया गया. हिंदू और सिख अल्पसंख्यकों को तमाम मानवीय अधिकार तक नहीं दिए. धर्मांतरण, हत्याएं और बलात्कार आम बात है. दूसरी तरफ भारत में मुसलमान ज्यादा संरक्षित हैं. हर दल उनकी फ़िक्र करता नजर आता है और उनके अधिकारों के लिए मुस्तैद हैं भले उनकी वजह से संविधान और क़ानून पर असर पड़ता हो. इससे तो पता चलता है कि भारत ने बंटवारे में अपनी जमीन का बड़ा हिस्सा भी गंवा दिया, लोगों की जान तक नहीं बचा पाया और देश में जिस तरह के हालात हैं- बंटवारे में भारत को ठगा हुआ कह सकते हैं. पाकिस्तान लगभग गृहयुद्ध में है. बावजूद जिस तरह वहां अल्पसंख्यकों के नरसंहार की तैयारी हुई है- भारत समेत समूची दुनिया का चुप रहना बहुत डरावना है.

कराची के वीडियो में यह सवाल भी है कि आखिर पाकिस्तान किस मुसलमान के लिए अलग देश बनाया गया था? क्या सुन्नी होना ही मुसलमान है और शिया या इस्लाम के तमाम दूसरी शाखाओं के लोगों को जीने का अधिकार नहीं है. वहां मुसलमानों की खस्ता हालत देखकर हिंदू-सिखों की पीड़ा का अंदाजा लगाना ज्यादा मुश्किल नहीं.

कम से कम भारतीय समाज को सवाल उठाना चाहिए. 74 सालों में वहां मुट्ठीभर हिंदू और सिख बचे हैं. उनके और दूसरे अल्पसंख्यकों के जान-माल के सुरक्षा की गुहार लगानी चाहिए.

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