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Updated: 31 मई, 2020 04:28 PM
मृगांक शेखर
मृगांक शेखर
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अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) अपनी ही पुरानी सियासी आदतों से यू-टर्न लेते जा रहे हैं. अब तो ऐसा लगता है अगर रामलीला मैदान में अन्ना हजारे फिर से आंदोलन की तैयारी करें तो अरविंद केजरीवाल ठीक उनके सामने ही विरोध में धरने पर बैठ जाएंगे.

हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक, दिल्ली सरकार और केंद्र सरकार अब तक अदालतों में अक्सर दो-दो हाथ करते देखे गये हैं. अब शायद ये सब गुजरे जमाने की बातें होंगी जो आर्काइव का हिस्सा बन जाएंगी. दिल्ली दंगे (Delhi Riots) के ही एक केस में दिल्ली सरकार के स्टैंडिंग काउंसिल राहुल मेहरा और एडिशनल सॉलिसिटर जनरल अमन लेखी के बीच काफी तीखी बहस हुई थी.

खबर आयी है कि दिल्ली दंगे से जुड़े मामले में दिल्ली पुलिस की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और उनकी टीम पैरवी करेगी. पहले दिल्ली सरकार की तरफ से इस पर आपत्ति जतायी गयी थी, लेकिन अब दोनों सरकारों ने सहमति बना कर कोर्ट को बता दिया है कि तुषार मेहता की पैरवी पर दिल्ली पुलिस को कोई ऐतराज नहीं है.

देखा जाये तो मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) की इस लड़ाई में दिल्ली सरकार को पीछे हटना पड़ा है.

दिल्ली सरकार को पीछे क्यों हटना पड़ा

ठीक वैसे ही जैसे एक दौर में आंख मूंद कर जो जो सामने पड़ता गया, अरविंद केजरीवाल उनको चोर, भ्रष्ट, लुटेरा बोलते गये और फिर बारी बारी सभी से माफी भी मांग लिये - अब केंद्र सरकार के साथ हर बात में हां में हां मिलाते जा रहे हैं - हो सकता है सब हनुमान जी की कृपा हो.

दिल्ली दंगों के एक केस में दिल्ली पुलिस ने 25 साल की एक एमबीए छात्रा को गिरफ्तार किया है. 9 अप्रैल को हुई गिरफ्तारी के बाद छात्रा पर UAPA एक्ट लगा दिया गया. आरोपी के भाई ने दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका दायर कर गिरफ्तारी को चैलेंज किया. याचिका में दलील दी गयी कि चूंकि UAPA एक्ट में गिरफ्तारी हुई है इसलिए कस्टडी का आदेश भी स्पेशल कोर्ट ही दे सकता है. लॉकडाउन के चलते स्पेशल कोर्ट की कार्यवाही निलंबित होने के चलते आरोपी को अवैध तरीके से हिरासत में रखा गया है.

दिल्ली पुलिस की तरफ से कौन पैरवी करे इसे लेकर दिल्ली सरकार और उप राज्यपाल के बीच काफी जद्दोजहद हुई है. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली पुलिस ने अप्रैल के शुरू में वकीलों का एक पैनल तैयार किया और उप राज्यपाल अनिल बैजल ने उसे एनडोर्स कर दिया. पैनल का नाम जब दिल्ली सरकार के गृह मंत्री सत्येंद्र जैन के पास पहुंचा तो उन्होंने दिल्ली पुलिस के प्रस्ताव को दरकिनार करते हुए 16 अप्रैल को एक नया पैनल गठित कर दिया जिसे स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर्स के तौर पर नोटिफाई भी कर दिया गया.

फिर दिल्ली पुलिस ने पहला पैनल वापस लेते हुए एक नये नामों की सूची भेजी, लेकिन दिल्ली सरकार ने उसे भी खारिज कर दिया. इस बीच सत्येंद्र जैन और उप राज्यपाल अनिल बैजल की मुलाकात भी हुई लेकिन दोनों पक्षों के अपनी अपनी बात पर अड़े होने के कारण बात नहीं बन पायी. जब उप राज्यपाल ने देखा कि मतभेद खत्म नहीं हो रहे हैं तो दिल्ली सरकार को पत्र लिखा और कहा कि अगर वो नहीं माने तो मामला राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के पास भेजा जाएगा.

delhi riotsलॉकडाउन के चलते दिल्ली दंगों पर थमी राजनीतिक जंग फिर से रंग दिखाने लगी है

बहरहाल, दिल्ली सरकार के स्टैंडिंग काउंसिल राहुल मेहरा ने दिल्ली हाई कोर्ट को सूचना दी है कि मामला सुलझ गया है. कोर्ट को बताया गया है कि दिल्ली के गृह मंत्री सत्येंद्र जैन और दिल्ली पुलिस के डीसीपी राजेश देव के बीच पत्राचार के बाद दिल्ली सरकार की तरफ से स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर और स्पेशल काउंसिल की नियुक्ति को मंजूरी दे दी गयी है. राहुल मेहरा ने हाई कोर्ट के सामने वे कागजात भी पेश किये जिसमें दिल्ली सरकार ने दिल्ली पुलिस का पक्ष कोर्ट में रखने के लिए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और उनकी टीम की नियुक्ति कर दी गयी है. ये विवाद भी काफी समय से चल रहा है कि दिल्ली हाई कोर्ट में दिल्ली पुलिस का स्पेशल पब्लिक प्रॉसिक्यूटर कौन होगा - वो जिसे जनता की चुनी हुई सरकार नियुक्त करेगी या फिर उप राज्यपाल जो केंद्र सरकार के प्रतिनिधि हैं और केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन होने के चलते दिल्ली पुलिस भी उनके हिस्से में आ जाती है. दिल्ली सरकार का कहना रहा है कि 2016 में दिल्ली हाई कोर्ट और 2018 में सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ये साफ कर चुकी है कि वकील की नियुक्ति चुनी हुई सरकार ही करेगी - और उप राज्यपाल इसमें अलग से कोई नियुक्ति नहीं कर सकते.

सवाल ये है कि जब दिल्ली की अरविंद केजरीवाल सरकार के पक्ष में अदालत का आदेश था तो उप राज्यपाल के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट क्यों नहीं गयी?

जब दिल्ली सरकार को भरोसा था कि पैनल नियुक्त करने का अधिकार उसके पास है फिर पीछे हटने की क्या वजह हो सकती है?

जब दिल्ली सरकार ने दो बार दिल्ली पुलिस के पैनल को खारिज कर दिया था तो बाद में उसी बात पर रजामंदी क्यों दे दी?

ये उप राज्यपाल और केंद्र सरकार के साथ टकराव टालने के चलते ही हुआ है या दिल्ली सरकार की कोई और भी मजबूरी हो सकती है?

क्या केजरीवाल ने हथियार डाल दिया है

मोदी सरकार 2.0 के शासन के एक साल पूरा होने के मौके पर इंडिया टुडे ग्रुप के ई-एजेंडा आजतक कार्यक्रम में अमित शाह ने कहा कि दिल्ली दंगे का एक भी साजिशकर्ता बच नहीं पाएगा.

जब अमित शाह से पूछा गया कि कोरोना संकटकाल और लॉकडाउन के बीच भी क्या दिल्ली हिंसा की जांच प्रक्रिया जारी है? गृह मंत्री अमित शाह ने बताया कि जांच की प्रक्रिया पूरी गति के साथ जारी है - जिस किसी ने दंगा किया हो या साजिश में शामिल रहा हो, एक भी व्यक्ति बच नहीं पाएगा. कानून सबको सख्त से सख्त सजा देगा.

संसद में भी दिल्ली दंगे पर हुई चर्चा के जवाब में अमित शाह का ऐसा ही बयान सुनने को मिला था, 'मैं दिल्ली और देश की जनता को आश्वस्त करना चाहता हूं कि दंगों में जो लोग शामिल थे, उनको किसी भी कीमत में बख्शा नहीं जाएगा.'

अब तो साफ हो चुका है कि सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और उनकी टीम दिल्ली दंगों के मामले में दिल्ली पुलिस का पक्ष रखेगी, लेकिन मामला यहां तक पहुंचने के पीछे की राजनीतिक को समझना बहुत जरूरी है. बात ये है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन दिल्ली पुलिस होने के नाते अमित शाह और मुख्यमंत्री होने के नाते अरविंद केजरीवाल दोनों ही दिल्ली में इसी साल फरवरी-मार्च में हुए दंगों के लिए विपक्ष के निशाने पर रहे.

दिल्ली दंगों में 53 लोगों की जान गयी थी और 400 से ज्यादा लोग घायल हुए थे. दिल्ली पुलिस ने दंगों को लेकर 752 एफआईआर दर्ज किया है और 1300 लोगों को गिरफ्तार कर चुकी है. दंगों में दिल्ली पुलिस को नाकाम देख अरविंद केजरीवाल ने सेना बुलाये जाने तक की मांग कर डाली थी, लेकिन अमित शाह ने खारिज कर दिया. बाद में एक स्पेशल पुलिस कमिश्नर की नियुक्ति की और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल को दंगा प्रभावित इलाकों में भेज दिया. बाद में स्पेशल कमिश्नर को दिल्ली पुलिस का कमिश्नर बना दिया गया.

कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी ने 72 घंटे तक दंगों में कोई कमी नहीं आने पर प्रेस कांफ्रेंस किया और पांच कांग्रेस कार्यसमिति की तरफ से पांच सवाल पूछे थे जिसमें अमित शाह और अरविंद केजरीवाल दोनों को कठघरे में खड़ा करने की कोशिश रही. बाद में सोनिया गांधी पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के साथ राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से मिलने राष्ट्रपति भवन पहुंची और केंद्र सरकार को राजधर्म की याद दिलाने के साथ ही गृह मंत्री अमित शाह को बर्खास्त करने की मांग की. सोनिया गांधी के ये कदम उठाते ही बीजेपी ने जोरदार पलटवार किया और कांग्रेस को इंदिरा गांधी की हत्या के बाद दिल्ली में हुए सिख दंगों की याद दिलाने लगी.

तब देखा गया कि दिल्ली में दंगे होते रहे और अरविंद केजरीवाल शांति बनाये रखने की एक अपील कर खामोश हो गये. माना गया कि ये राजनीतिक रणनीति का हिस्सा हो सकता है, चूंकि दिल्ली पुलिस अमित शाह के अधीन है और दिल्ली पुलिस की नाकामी बीजेपी के माथे का कलंक मानी जाएगी - लेकिन ऐसा नहीं हुआ. केजरीवाल और शाह दोनों के घर से न निकलने को लेकर जब कांग्रेस ने शोर मचाना शुरू किया तो सोशल मीडिया पर लोग केजरीवाल पर भी गुस्सा निकालने लगे. ये सब विधानसभा चुनावों के ठीक बाद हो रहा था इसलिए लोग भी काफी गुस्से में दिखे.

मुद्दा जब हिंदू-मुसलमान का होता है तो कांग्रेस बीजेपी पर सांप्रदायिकता की राजनीति करने का आरोप लगाती है. पहले अरविंद केजरीवाल का भी इस मामले में कांग्रेस जैसा ही स्टैंड हुआ करता रहा, लेकिन दिल्ली चुनावों के वक्त से ही अरविंद केजरीवाल ने स्टैंड बदल लिया है. अब बीजेपी के विरोध के नाम पर अरविंद केजरीवाल रस्मअदायगी भर करते देखे जाते हैं. दंगों के बाद कोरोना वायरस संक्रमण को लेकर भी अरविंद केजरीवाल पर कांग्रेस ने मौतों के आंकड़ों में हेरफेर का आरोप लगाया है. दिल्ली कांग्रेस के नेता अजय माकन ने कोविड 19 प्रोटोकाल के तहत हुए अंतिम संस्कारों का आंकड़ा पेश कर अरविंद केजरीवाल पर कोरोना से होने वाली मौतों की संख्या छुपाने का आरोप लगाया है. ये ठीक वैसा ही आरोप है जो बीजेपी पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी सरकार पर लगाती रही है.

बीजेपी के साथ दिल्ली दंगों के मामले में टकराव का सीधा मतलब था बाकी मोर्चों पर भी लड़ाई के लिए तैयार हो जाना - और दिल्ली दंगों के मामले में बीजेपी से अलग स्टैंड लेना. अब वो बात अरविंद केजरीवाल की नयी राजनीतिक स्टाइल को सूट नहीं करती - लगता तो ऐसा ही है कि ऐसी तमाम वजहों के चलते ही अरविंद केजरीवाल ने टकराव का रास्ता टाल कर तुषार मेहता के नाम पर मुहर लगा दी है.

तुषार मेहता फिलहाल प्रवासी मजदूरों का मुद्दा उठाने वालों को गिद्ध और बच्चे की तस्वीर दिखा कर सुप्रीम कोर्ट में घेरने को लेकर चर्चा में हैं. अब आगे ये देखना होगा कि कहीं तुषार मेहता और अरविंद केजरीवाल के बीच वैसे ही तो नहीं ठनने वाली है जैसी अरुण जेटली मानहानि केस में राम जेठमलानी के साथ ठन गयी थी.

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लेखक

मृगांक शेखर मृगांक शेखर @mstalkieshindi

जीने के लिए खुशी - और जीने देने के लिए पत्रकारिता बेमिसाल लगे, सो - अपना लिया - एक रोटी तो दूसरा रोजी बन गया. तभी से शब्दों को महसूस कर सकूं और सही मायने में तरतीबवार रख पाऊं - बस, इतनी सी कोशिश रहती है.

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