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Updated: 08 अगस्त, 2015 12:31 PM
विवेक चंद्र शुक्ला
विवेक चंद्र शुक्ला
  @vivek.shukla3
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प्याज की गंध को लेकर जितने संवेदनशील मनुष्य होते हैं, हिंदुस्तान की राजनीति उससे भी ज्यादा है. फिर दिल्ली में तो प्याज-पॉलिटिक्स की इतनी गंध फैल चुकी है कि इसके आगे लाल प्याज भी शर्मिंदा हो जाए. नैफेड कहती है दिल्ली सरकार सस्ती प्याज खरीदना ही नहीं चाहती तो दिल्ली सरकार बचाव की मुद्रा में नैफेड पर भ्रम फैलाने का आरोप लगा रही है. हांलाकि नैफेड के पास अपनी बात कहने के लिए जहां सबूत के तौर पर चिट्ठियां हैं तो वहीं दिल्ली सरकार के पास बयानों के सिवा कुछ नहीं. जिससे साबित होता है कि दिल्ली सरकार के हर दिन बदलते बयानों में विरोधाभास है.

दो दिन पहले ही दिल्ली सरकार के खाद्य और आपूर्ति मंत्री असीम खान ने आजतक के साथ एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में ताल ठोंक कर कहा था कि दिल्ली सरकार नैफेड से प्याज लेने को तैयार है. चाहे वो 19 रुपए किलो दें, 20 रुपए किलो या 25 रुपए किलो. क्योंकि सरकार का मकसद है दिल्ली को सस्ती प्याज मुहैया कराना. लेकिन शुक्रवार सुबह दिल्ली सरकार ने नैफेड को एक चिट्ठी भेजी जिसमें लिखा कि दिल्ली सरकार नैफेड से प्याज खऱीदने की इच्छा रखती है लेकिन उसकी दो शर्तें हैं। पहली ये कि प्याज की कीमत 19 रुपए ही होनी चाहिए, उससे ज्यादा नहीं. और इस 19 रुपए में भंडारण नुकसान यानी स्टोरेज लॉस और ट्रांसपोर्टेशन का खर्च भी शामिल है. दूसरी बात ये कि प्याज की डिलिवरी भी सरकार को दिल्ली के आनंद विहार में चाहिए, ना कि वो नासिक से प्याज लेगी. अब इस पर नैफेड का बयान ये है कि दिल्ली सरकार साफ तौर पर मामले को खींचने का काम कर रही है.

नैफेड के डायरेक्टर अशोक ठाकुर ने बताया कि बात बहुत सीधी सी है. केंद्र ने पीएसएफ यानी प्राइस स्टेबिलाइजेशन फंड के तहत दिल्ली के कोटे में 2500 मीट्रिक टन प्याज अलग रखवाई है. हम अप्रैल से दिल्ली सरकार को चिट्ठी लिखकर कह रहे हैं कि किसानों से जिस मूल्य पर प्याज ली गयी है, उसी मूल्य पर दिल्ली सरकार प्याज खरीद ले. प्याज नासिक से मिलेगी क्योंकि नैफेड भंडारण वहीं करती है. साथ ही दिल्ली सरकार अपना एक अफसर भी नासिक भेजे जो तमाम औपचारिकताएं पूरी करे. ये सबकुछ दिल्ली सरकार के साथ हुई तमाम बैठकों में उन्हें बताया गया है. बैठकों में दिल्ली सरकार के अन्य अधिकारियों के साथ-साथ दिल्ली के खाद्य आपूर्ति मंत्री असीम खान और परिवहन मंत्री गोपाल राय भी मौजूद थे. तब उन्होंने मोहल्ला सभा के जरिए भी प्याज बिकवाने की बात कही थी. लेकिन बाद में दिल्ली सरकार ने ना तो प्याज की सुध ली और ना जनता की. चिट्ठियों का जवाब भी नहीं दिया.

दिल्ली सरकार के बचाव में उतरी आम आदमी पार्टी भी बचकाना तर्क देती है. पार्टी के प्रवक्ता आशुतोष आरोप लगाते हैं कि नैफेड दिल्ली को गुमराह कर रही है. ना तो वो ये मानने को तैयार हैं कि नैफेड ने अप्रैल से लेकर जून तक दिल्ली सरकार को चिट्ठियां लिखीं और ना ये मानने को तैयार हैं कि नैफेड दिल्ली सरकार को सस्ती प्याज देने को तैयार थी. मजे की बात ये है कि दिल्ली सरकार या फिर आम आदमी पार्टी के नेताओं के पास बचाव में सिर्फ आरोप हैं, कोई सबूत नहीं. दिल्ली सरकार के पास इस बात का कोई सबूत नहीं है कि दिल्ली की जनता को मॉनसून में मंहगी प्याज से बचाने के लिए अप्रैल से जुलाई तक उसने क्या कदम उठाए, जबकि नैफेड तमाम बातें सबूतों के आधार पर कह रही है.

नैफेड के डायरेक्टर अशोक ठाकुर की मानें तो पूरा मामला सस्ती प्याज खरीदने या बेचने का है ही नहीं. मामला उस 2500 मीट्रिक टन के प्याज के स्टॉक को उठाने का है जो केंद्र सरकार ने दिल्ली के नाम पर सुरक्षित रखी है. नैफेड की भूमिका महज मध्यस्थ की है. किसानों से प्याज खरीदने के लिए उसने केंद्र सरकार से पैसा लिया है और उसका भंडारण वो नासिक में कर रही है. अब दिल्ली सरकार से खरीद मूल्य लेकर प्याज राज्य के हवाले कर दी जाएगी, जो मूल्य बढ़ने पर जनता के हित में उसका उपयोग कर सकती है. दिल्ली सरकार ने समय पर लिखी नैफेड की चिट्ठियों की अनदेखी की. इससे भी बड़ी बात ये है कि अपनी लापरवाही छुपाने और बचाव में सरकार और पार्टी जो तर्क दे रही है, वो इस लापरवाही से ज्यादा बचकाने हैं.

बहरहाल, सरकार का हित इसी बात में है कि वो ये समझ ले कि सूचना प्रौद्योगिकी के इस बेहद तेज दौर में ना झूठ छिपते हैं और ना सच. कम से कम जनता को मूर्ख बनाना तो तकरीबन असंभव है. वैसे, दिल्ली के हर नागरिक को अभी भी सलाद और खाने में सस्ती प्याज का इंतजार है.

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लेखक

विवेक चंद्र शुक्ला विवेक चंद्र शुक्ला @vivek.shukla3

लेखक टीवी टुडे में संवाददाता हैं.

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