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Updated: 24 जून, 2018 04:30 PM
प्रवीण शेखर
प्रवीण शेखर
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20 जून को दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने जब अंततः अपने नौ दिन के धरने को खत्म किया तो लोगों ने राहत की सांस ली. नौ दिनों तक केजरीवाल और उनके तीन कैबिनेट मंत्री, लेफ्टिनेंट गवर्नर अनिल बैजल के कार्यालय में विरोध पर बैठे थे इस कारण से पूरी सरकारी मशीनरी बिना काम के खड़ी हो गई थी.

केजरीवाल ने उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, सार्वजनिक कार्य विभाग मंत्री सत्येंद्र जैन और विकास मंत्री गोपाल राय के साथ राज निवास में धरने पर बैठ गए और कहा कि जब तक उनकी मांग पूरी नहीं की जाती वे लोग एलजी ऑफिस से बाहर नहीं जाएंगे. उनकी मांगों में दिल्ली प्रशासन में काम करने वाले आईएएस अधिकारियों को अपनी "हड़ताल" खत्म करने के निर्देश देने, जिन अधिकारियों ने "चार महीने" से काम में रुकावट पैदा की है उनके खिलाफ कार्रवाही करने और गरीबों को राशन उनके घर के दरवाजे तक पहुंचाने के आप सरकार के प्रस्ताव को मंजूरी देना शामिल है.

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सोने पर सुहागा ये कि केजरीवाल के धरने के विरोध में बीजेपी भी हड़ताल पर चली गई. और उधर कांग्रेस पार्टी, केजरीवाल के खिलाफ प्रदर्शन में व्यस्त थी. भारत ने शायद ही कभी ऐसी स्थिति देखी है जिसमें सरकार और विपक्ष दोनों ही एक-दूसरे के विरोध में विरोध पर बैठे हों. केजरीवाल अभी भी इस बात पर ही टिके हैं कि आईएएस अधिकारी, एलजी के आदेश पर विरोध कर रहे थे. जिन्हें प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने निर्देश दिया था.

एलजी पर हमला करते हुए अरविंद केजरीवाल ने कहा, "एलजी से एक फोन जाता है और सारे अधिकारियों ने बैठकों में भाग लिया." लेकिन सच्चाई यह है कि जब आईएएस एसोसिएशन ने प्रेस ब्रीफिंग करके अपनी मांगें रखी, उसके बाद अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी के सामने इस गतिरोध को खत्म करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचा था. केजरीवाल ने दिल्ली के नौकरशाहों को आश्वासन दिया कि वो उनकी "सुरक्षा" और सभी अधिकारियों की गरिमा को बनाए रखना सुनिश्चित करेंगे. इसके जवाब में आईएएस एसोसिएशन ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी. अब, ये सवाल हर किसी के दिमाग में आता है कि आखिर अरविंद केजरीवाल धरने पर क्यों बैठे थे और उनके सहयोगियों ने उपवास किया क्यों था?

अगर केजरीवाल चाहते तो इस गतिरोध को वो खुद खत्म कर सकते थे और काम शुरु हो चुका होता. आईएएस अधिकारियों के साथ बातचीत करके शह- मात के इस खेल को खत्म करने की जिम्मेदारी स्पष्ट रूप से मुख्यमंत्री पर थी. अगर उन्होंने ऐसा किया होता, तो आईएएस अधिकारियों और सरकार के बीच विश्वास की कड़ी मजबूत होती. लेकिन किसी को यह नहीं भूलना चाहिए कि केजरीवाल एक चालाक नेता हैं. कई मौकों पर उन्होंने परिस्थितियों का सटीक आकलन करने और  उसमें अपना फायदा ढूंढ लेने की क्षमता वो दिखा चुके हैं. अपनी इस हड़ताल के साथ, केजरीवाल ने एक तीर से कई शिकार करने की कोशिश की है. उन्होंने लोगों की सहानुभूति की हासिल की, अन्य राजनीतिक दलों का समर्थन प्राप्त किया और आप की राजनीति को राष्ट्रव्यापी "आंदोलन" बनाने में महत्वपूर्ण कदम उठाया.

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लोगों की सहानुभूति हासिल करने के लिए केजरीवाल ने आरोप लगाया कि प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी, दिल्ली सरकार को काम नहीं करने दे रहे. वो लगातार प्रशासनिक काम में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं. आईएएस अधिकारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जरिए एलजी के इशारे पर वो हड़ताल कर रहे हैं और वह और उनके सहयोगी दिल्ली के लोगों की तरफ से इसका विरोध कर रहे थे.

हालांकि उनके इस दावे का सच्चाई का दूर दूर तक कोई वास्ता नहीं था लेकिन फिर भी वो बार-बार इस बात को दोहरा रहे थे. कई दिनों तक राजधानी दिल्ली और वहां के मुख्यमंत्री केजरीवाल मीडिया में सुर्खियों में रहे. धरने का प्रभाव ऐसा था कि चार राज्यों के मुख्यमंत्री- पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू, कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी और केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन का समर्थन पाने में सफल रहे.

कई राजनीतिक दलों ने केजरीवाल के पक्ष में बोला. लेकिन अगर उन्होंने इस समस्या को बिना हो हल्ला किए खत्म कर लिया होता तो इस तरह की स्थिति खड़ी ही नहीं होती. इसमें कोई संदेह नहीं कि केजरीवाल और उनके पार्टी के लोग अब बहुत खुश होंगे कि उनकी मंशा पूरी हो चुकी है. इसके अलावा दिल्ली में आप सरकार की विफलता पर चर्चा भी कुछ समय के लिए थम गई है.

हालांकि, जिन लोगों ने केजरीवाल से साफ सुथरी राजनीति की उम्मीद की थी और उन्हें उच्च आदर्शों के एक व्यक्ति के रूप में माना था उन्हें धक्का तो लगा है.

(DailyO से साभार)

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प्रवीण शेखर प्रवीण शेखर @praveen.shekhar.37

लेखक इंडिया ग्रुप में सीनियर प्रोड्यूसर हैं

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