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Updated: 20 अक्टूबर, 2015 02:52 PM
राहुल मिश्र
राहुल मिश्र
  @rmisra
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दिल्ली से सटे दादरी में 28 सितंबर को गोमांस पर हुए विवाद में दो दर्जन ग्रामीणों ने मिलकर एक मुस्लिम पिता-पुत्र पर हमला बोल दिया. पिता की मौत हो गई और पुत्र घायल. अब बारी थी नेताओं की. उत्तर प्रदेश ने बड़े-बड़े मुआवजों का ऐलान किया. केन्द्र के कुछ मंत्रियों ने गो रक्षा को लेकर बयानबाजी शुरू की. और देखते ही देखते यह मुद्दा राष्ट्रीय बहस बन गया. सबसे बड़ी सुर्खी. लेकिन इन 25 दिनों के दौरान और भी बहुत कुछ हुआ, जो हमसे सीधे जुड़ा हुआ था, लेकिन अखबारों में उतनी जगह नहीं ले पाया.

1. बैंक ऑफ बडौदा का फ्रॉड: इस दौरान प्रवर्तन निदेशालय ने देश के प्रमुख बैंकों में से एक बैंक ऑफ बड़ौदा को लगभग 6000 करोड़ रुपये को कालाधन बनाकर देश से बाहर निकालने का आरोप लगाया. पता चला है कि कई और बैंकें भी इस काम में डूबी हैं. पब्लिक/प्राइवेट बैंक, किसी भी देश में व्यवस्था की रीढ़ होते हैं और नागरिकों की सबसे अधिक आस्था देश की बैंकिंग प्रणाली में रहती है. हमारे-आपके बैंक अगर यह करते पाए जा रहे हैं तो जरूरी है कि उनके कामकाज के हर पहलू की फिर से जांच हो.

2. फॉक्सवैगन की धोखाधड़ी: हाल में हुए फॉक्सवैगन की धोखाधड़ी के खुलासे ने ऑटो सेक्टर पर सवालिया निशान लगा दिया है. चूंकि, भारत में तेजी से बढ़ रहे ऑटो क्षेत्र में इन दिग्गज विदेशी कंपनियों का बड़ा योगदान है लिहाजा, फॉक्सवैगन की धोखाधड़ी का खामियाजा भी बड़ा है. हमें यह जानने कि जरूरत है कि देश में दौड़ रही गाड़ियां प्रस्तावित मानकों और सुरक्षा के लिहाज से कितनी खरी हैं.

3. कॉल डॉप की मजबूरी: ट्राई ने हाल में फैसला लिया है कि प्रति कॉल ड्रॉप मोबाइल कंपनियां ग्राहकों को पैसा देंगी, लिहाजा, वह चाह रही है कि हम सस्ती दरों पर खराब और घटिया सुविधाओं का उपभोग करते रहें. जबकि जरूरत है कि इन मोबाइल कंपनियों के मुनाफावसूली पर लगाम लगाते हुए देश में मोबाइल नेटवर्क का मजबूत ढ़ांचा तैयार किया जाए.

4. डेंगू पर लगाम: देश की राजधानी दिल्ली पर पिछले दो महीनों से डेंगू का कहर बरपा है और यह किसी त्योहार या मौसम की तरह प्रति वर्ष आ रहा है. इस साल तो डेंगू ने सभी हद पार कर दी है और देश की चरमराई हुई स्वास्थ सुविधाओं को हमारे सामने रख दिया है. ऐसे में देश की सरकार के साथ-साथ सभ्य समाज में इस बात पर गंभीरता से विचार होना चाहिए कि हमारी सभ्यता पर भविष्य में किसी बड़ी आपदा से निपटने के लिए क्या तैयारी है. क्या हम युद्ध या दैवी आपदा से निपट सकते हैं जब एक एडिस एजेप्टी नामक मच्छर के आगे इतना मजबूर हैं.

5. बिहार चुनाव से गायब हुए मुद्दे: प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिहार के लिए 1.25 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा की तो माना जा रहा था कि जवाब में सुशाषन पुरुष नितीश कुमार आगामी विधानसभा चुनावों में विकास को मुद्दा बना अपनी किस्मत आजमाएंगे. लेकिन ऐसा नहीं हो सका. दादरी की आग उत्तर प्रदेश से निकलकर सीधे बिहार पहुंच गई और विकास, सुशाषन, स्वास्थ, सड़क और शिक्षा जैसे सभी मुद्दे को जलाकर राख कर दिया. एक बार फिर बिहार चुनाव सदियों पुराने जात-पात और धर्म के आजमाए हुए मुद्दों पर हो रहा है.

6. आर्थिक आंकड़ें और महंगाई: अक्टूबर में आ रहे सितंबर के आर्थिक आंकड़े दिखा रहे हैं कि एक बार फिर देश की अर्थव्यवस्था रफ्तार पकड़ने से कतरा रही है. सितंबर में मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र का विकास 6 महीने के निचले स्तर पर पहुंच गया है और सर्विस सेक्टर ने भी अपनी दिशा बदलकर सुस्ती के संकेत देना शुरू कर दिए हैं. केन्द्र सरकार का प्रमुख कार्यक्रम मेक इन इंडिया को उड़ान मिलती नहीं दिख रही है और ब्याज दरों में हुई बड़ी कटौती के बावजूद देश में आर्थिक गतिविधियों में तेजी नहीं दिखाई दे रही है. लिहाजा, इस महीने भी शेयर बाजार से विदेशी संस्थागत निवेशकों का एक्जिट देखने को मिल रहा है और कुछ ग्लोबल आर्थिक जानकार दावा कर रहे हैं कि भारत भी वैश्विक मंदी की चपेट में आने के संकेत दे रहा है. इसके साथ ही देश में खाद्य सामग्रियों की बढ़ती महंगाई से लोग बेहाल हो रहे हैं. वैश्विक स्तर पर क्रूड में गिरावट के बावजूद हम महंगी प्याज और अब महंगी दाल की मार को झेल रहे हैं.

7. आर्थिक सुधार की प्रक्रिया सुस्त: पिछले डेढ़ साल में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लगभग आधी से ज्यादा दुनिया का भ्रमण कर चुके हैं. इन यात्राओं में उन्होंने देश में निवेश करने की पुरजोर वकालत की और वादा किया है कि जल्द से जल्द देश में ईज ऑफ डूईंग बिजनेस के लिए जरूरी सुधारों को पूरा कर लिया जाएगा. हालांकि, इन वादों से अलग, लोक सभा में मजबूत मोदी सरकार हवाला दे रही है कि सुधार लाने की उसकी कोशिशों को राज्य सभा में मुंह की खानी पड़ रही है. बहरहाल, यह सच है कि आर्थिक गति देने के लिए जरूरी लैंड बिल और जीएसटी जैसे टैक्स सुधार पर हम स्थिति साफ नहीं कर पा रहे हैं.

8. लड़खड़ाती विदेश नीति: पाकिस्तान से हमारे संबंध खराब रहें तो भी हमारी विदेश नीति पर कोई फर्क नहीं पड़ता. लेकिन बीते दिनों नेपाल के साथ हमें मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. नेपाल में आए खतरनाक भूकंप के बाद से जहां चीन के साथ उसके दोनों बॉर्डर पोस्ट बंद हो गए थे और भारत ने नेपाल के साथ अपने द्विपक्षीय रिश्तों को हमेशा की तरह मजबूत रखते हुए बढ़चढ़ कर मदद पहुंचाई. लेकिन हाल ही में नेपाल ने नए संविधान को लागू करके भारत के सामने नई चुनौती खड़ी कर दी है. वह चीन के करीब होता जा रहा है और भारत से दूर. उसने चीन के साथ बंद बड़े बॉर्डर पोस्ट की युद्ध स्तर पर मरम्मत कराते हुए सीधा संपर्क स्थापित कर लिया है.

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लेखक

राहुल मिश्र राहुल मिश्र @rmisra

लेखक इंडिया टुडे डिजिटल में असिस्‍टेंट एड‍िटर हैं

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