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Updated: 27 अप्रिल, 2016 07:54 PM
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प्रशांत किशोर पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह और यूपी में कांग्रेस के मिशन 2017 के लिए काम कर रहे हैं. पंजाब में जहां एके उन्हें जोरदार टक्कर दे रहे हैं वहीं यूपी में उनके हाथ इतने बंधे हैं कि कितनी दूर चल पाएंगे समझना मुश्किल हो रहा है.

पीके बोले तो गारंटी, लेकिन...

चुनाव में जीत की गारंटी चाहिए तो पीके को पकड़ो. बिहार चुनाव के नतीजे आते ही प्रशांत किशोर की सेवाएं लेने की नेताओं और राजनीतिक दलों में होड मच गई. पांच राज्यों में होने वाले चुनावों को लेकर ज्यादातर नेताओं ने पीके का नंबर डायल किया - मुलाकात तो ममता बनर्जी से भी हुई लेकिन बात नहीं बनी. काफी सोच विचार के बाद पीके ने कैप्टन अमरिंदर को हां किया - और फिर यूपी के लिए भी कांग्रेस के साथ कॉन्ट्रैक्ट साइन किया.

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पीके भले ही नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुंचाने में मददगार बने हों. पीके भले ही मोदी को बिहार के मैदान में शिकस्त देने में नीतीश के सहायक बने हों - लेकिन कांग्रेस उन पर आंख मूंद कर भरोसा नहीं कर रही है.

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बहुत कठिन है डगर यूपी की...

कांग्रेस में अब भी उन्हें आजमाया ही जा रहा है. बताते हैं कि मोदी का कैंपेन संभालने से पहले भी प्रशांत कांग्रेस नेताओं से मिले थे - बल्कि राहुल गांधी के लिए किसी छोटे प्रोजेक्ट पर काम भी किये थे - लेकिन तब भी उन्हें खास तवज्जो नहीं मिली.

अब जबकि प्रशांत किशोर कांग्रेस के लिए काम कर रहे हैं, फिर भी उन्हें अपनी हर डिमांड के लिए कदम कदम पर संघर्ष करना पड़ रहा है.

नो एंट्री

ताजा मामला तो ये है कि प्रशांत किशोर को गांधी परिवार के गढ़ में एंट्री रोक दी गई है. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक उन्हें अमेठी और रायबरेली के साथ साथ पड़ोसी सुल्तानपुर से भी दूर रखा जा रहा है.

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असल में, अमेठी और रायबरेली में कैंपेन की कमान अब तक प्रियंका गांधी ही संभालती आई हैं. अमेठी जहां राहुल गांधी का संसदीय क्षेत्र है वहीं रायबरेली सोनिया गांधी का. इन दोनों के पड़ोस में ही सुल्तानपुर पड़ता है - जहां से प्रियंका और राहुल के चचेरे भाई वरुण गांधी बीजेपी के सांसद हैं. प्रशांत किशोर ने यूपी के सभी जिलों से 20-20 कार्यकर्ताओं के नाम मांगे थे. इनमें बाकी जिलों ने तो भेज दिये लेकिन अमेठी, रायबरेली और सुल्तानपुर ने नहीं भेजे.

वर्चस्व की लड़ाई या...

वैसे तो कहा ये गया है कि चूंकि प्रियंका गांधी ने अमेठी रायबरेली और सुल्तानपुर के लिए ग्रास रूट लेवल के कार्यकर्ता तैयार कर दिये हैं इसलिए वहां पीके की जरूरत ही नहीं है.

इस बीच खबर आ रही है कि कांग्रेस नेताओं को पीके की कार्यशैली रास नहीं आ रही है. बाकी तो चुप हैं लेकिन तीन जिलों के कांग्रेस प्रमुखों ने पीके के खिलाफ बगावत कर दी है.

ऐसा पहली बार हो रहा है कि प्रशांत किशोर के हाथ इतने बंधे हुए हैं, वरना मोदी और नीतीश के कैंपेन में उन्हें खुली छूट मिली हुई थी. प्रशांत किशोर ने अपनी टीम के लिए कांग्रेस के वॉर रूम में और अपने लिए कांग्रेस हेडक्वार्टर 24, अकबर रोड में जगह मांगी थी, लेकिन उसे नामंजूर कर दिया गया.

मोदी के कैंपेन के दौरान प्रशांत जहां अहमदाबाद में मोदी के सरकारी आवास से काम करते थे वहीं पटना में नीतीश के आवास पर ही उन्होंने डेरा डाल रखा था. वैसे तो दिल्ली में प्रशांत का ऑफिस बना हुआ है लेकिन फिलहाल वो लखनऊ के मुख्यालय से काम कर रहे हैं. मॉल एवेन्यु के थर्ड फ्लोर पर उन्हें वॉर रूम के लिए जगह मिली है.

जहां तक वर्चस्व की बात है, तो खबर थी कि केंद्र में मोदी सरकार बन जाने के बाद प्रशांत किशोर बीजेपी में कोई बड़ा पद या वैसा कोई अहम रोल चाहते थे - लेकिन अमित शाह और कुछ सीनियर बीजेपी नेताओं ने बड़ी ही संजीदगी से मना कर दिया था - और प्रशांत को अपने लिए नया डेरा डंडा तलाशना पड़ा. नीतीश के यहां तो उनकी अहमियत अब तक बरकरार है - और फिलहाल उन्हें बिहार सरकार के सलाहकार के रूप में कैबिनेट मिनिस्टर का दर्जा हासिल है.

बिहार की बात और थी. पंजाब का भी मौजूदा माहौल अलग तरह का है, लेकिन यूपी में बड़े ही सीधे समीकरण हैं. ऐसे में जिन बंधे हाथों के साथ प्रशांत किशोर काम कर रहे हैं सफर बहुत मुश्किल लग रहा है.

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