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बड़ा आर्टिकल  |  
Updated: 08 फरवरी, 2021 09:29 PM
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मुख्यमंत्री जैसा तो नहीं, लेकिन सत्ताधारी पार्टी के अध्यक्ष का पद भी कम महत्वपूर्ण नहीं होता. शर्त सिर्फ इतनी होती है कि या तो सरकार एक ही पार्टी की हो या फिर सत्ताधारी गठबंधन में पार्टी विशेष सबसे बड़ा राजनीतिक दल हो.

महाराष्ट्र कांग्रेस (Congress) के नये नये बनाये गये अध्यक्ष नाना पटोले (Nana Patole) की अहमियत को महाराष्ट्र के मौजूदा सियासी समीकरणों में इसी पैमाने के हिसाब से समझने की कोशिश की जा सकती है. महाराष्ट्र कांग्रेस में ये बड़ा फेरबदल हुआ है - और फेरबदल भी ऐसा हुआ है कि उसका सीधा असर सरकार पर भी पड़ा है. वैसे समझने वाली बात ये भी है कि कांग्रेस में हुए फेरबदल का असर सीधा सरकार की राजनीतिक व्यवस्था पर पड़ा है, या कांग्रेस के जरिये सामने आयी फेरबदल सरकार में भविष्य के संभावित बदलावों की झलक देखने को मिल रही है.

नाना पटोले की अहमियत समझने की जरूरत महसूस इसलिए भी हो रही है क्योंकि वो विधानसभा स्पीकर पद से इस्तीफा देकर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष बने हैं. नाना पटोले से पहले बाला साहेब थोराट महाराष्ट्र कांग्रेस के अध्यक्ष हुआ करते थे. बाला साहेब थोराट फिलहाल महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे की अगुवाई में बनी महाविकास आघाड़ी सरकार में कांग्रेस कोटे से कैबिनेट मंत्री हैं. अब कांग्रेस कोटे से जो लोग दूसरे डिप्टी सीएम की पोस्ट के दावेदार समझे जा रहे हैं, बाला साहेब थोराट भी उनमें से एक हैं.

बतौर समझाइश कांग्रेस में होने वाले इस बदलाव के कुछ दलीलें भी पहले से ही पेश की जाने लगी थीं. जैसे एक व्यक्ति, एक पद. कुछ ओबीसी नेताओं ने अपनी ही बिरादरी से किसी को सूबे में कांग्रेस की कमान सौंपने की मांग की थी.

बड़ा सवाल ये है कि विधानसभा स्पीकर (Maharashtra Speaker) जैसा बेहद महत्वपूर्ण पद छोड़ कर नाना पटोले प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद क्यों लिये?

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का पद नाना पटोले की अपनी पसंद है या फिर दिल्ली से थोपा गया फैसला है - या फिर कांग्रेस को किसी मजबूरी में ये फैसला करना पड़ा है?

महाराष्ट्र में नाना पटोले की अहमियत

नाना पटोले महाराष्ट्र में कांग्रेस के उन नेताओं में शुमार हैं जो राहुल गांधी के बेहद करीबी माने जाते हैं - और किसानों के मुद्दे पर काफी मुखर रहे हैं. चूंकि किसानों से जुड़े मसले राहुल गांधी का पसंदीदा शगल रहा है और मौजूदा किसान आंदोलन उनकी स्टाइल वाली राजनीति में मददगार भी साबित हो रहा है, नाना पटोले की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाना स्वाभाविक भी है. ये किसानों के मुद्दों से नाना पटोले का जुड़ाव ही रहा जो कांग्रेस ने उनको ऑल इंडिया किसान कांग्रेस का चेयरमैन भी बनाने का फैसला किया था.

2019 के आम चुनाव में जब नाना पटोले कांग्रेस के टिकट पर नागपुर सीट से चुनाव लड़ रहे थे तो गुरु-शिष्य की चुनावी लड़ाई के तौर पर देखा जा रहा था - हालांकि, आखिर में बीजेपी उम्मीदवार और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने नाना पटोले को करीब एक लाख वोटों से हरा भी दिया था.

ठीक पहले 2014 के आम चुनाव में नाना पटोल ने बीजेपी के टिकट पर एनसीपी के दिग्गज नेता और तत्कालीन केंद्रीय मंत्री प्रफुल्ल पटेल को हराया था, लेकिन पार्टी के साथ साथ संसद की सदस्यता भी नाना पटोले ने बीच में ही छोड़ दी थी.

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2017 में नाना पटोले जब बीजेपी छोड़ कर कांग्रेस ज्वाइन किये तब उनके बगावत की भी खासी चर्चा रही. नाना पटोले ने सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ ही बगावत कर डाली थी. तब नाना पटोले ने आरोप लगाया था कि बीजेपी में किसी को बोलने का मौका नहीं मिलता. अपना ही उदाहरण देते हुए नाना पटोले ने तभी दावा किया था कि जब भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने वो कुछ कहने या बताने की कोशिश करते हैं, उनको चुप करा दिया जाता है.

नाना पटोले की यही खासियत राहुल गांधी को भा गयी और उनको कांग्रेस में हाथों हाथ लिया गया. बाद में कांग्रेस के टिकट पर वो सकोली से विधानसभा पहुंचे और शिवसेना का बीजेपी के साथ गठबंधन टूट जाने के बाद विधानसभा के स्पीकर भी बन गये.

सुनने में आ रहा है कि कांग्रेस को स्पीकर का पद छोड़ने के बदले डिप्टी सीएम की पोस्ट मिलने वाली है - और उसकी रेस में सबसे आगे तो पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बाला साहेब थोराट हैं, लेकिन नितिन राउत और विजय वडेट्टीवार के नाम भी चर्चा में शामिल हैं. नितिन राउत को भी नाना पटोले की तरह ही राहुल गांधी की गुड-बुक में शामिल माना जाता है.

डिप्टी सीएम की कुर्सी के लिए बालासाहेब थोराट के आगे होने की वजह उनका सीनियर होना भी है. 2019 में महाराष्ट्र विधानसभा का चुनाव भी बाला साहेब थोराट के नेतृत्व में ही लड़ा गया था. महाराष्ट्र की राजनीति में वैसे तो पृथ्वीराज चव्हाण और अशोक चव्हाण जैसे नेता भी हैं, लेकिन बालासाहेब थोराट की राज्य की राजनीति में पकड़ अच्छी मानी जाती है.

डिप्टी सीएम की पोस्ट मिल भी जाये तो क्या

मुमकिन है, कांग्रेस को भी एनसीपी की तरह डिप्टी सीएम की एक पोस्ट मिल जाये, लेकिन सबसे बड़ा सच तो ये है कि विधानसभा स्पीकर जैसा महत्वपूर्ण पद अब कांग्रेस के पास नहीं है.

डिप्टी सीएम होने या न होने का क्या मतलब है? जो भी होगा वो मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे की टीम का हिस्सा होगा और उनको ही रिपोर्ट करेगा और उसकी हैसियत विधानसभा स्पीकर जैसी तो नहीं ही होगी.

लेकिन विधानसभा स्पीकर विशेष परिस्थितियों में काफी महत्वपूर्ण हो जाता है - ये बात भी विशेष रूप से ध्यान देने वाली है. बीती कुछ घटनाओं पर गौर करें तो स्पीकर की भूमिका अलग से सामने आयी है. जब भी विधायकों के पाला बदलने का मामला शुरू होता है स्पीकर की भूमिका सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है. कर्नाटक और राजस्थान के राजनीतिक बवाल के वाकये मिसाल हैं. डिप्टी सीएम तो राजस्थान में सचिन पायलट भी रहे हैं और बिहार में तेजस्वी यादव भी - लेकिन उनकी कुर्सी सिर्फ मुख्यमंत्री की कृपा होने तक बनी रह पायी है. बिहार देख ही चुका है कि कैसे तेजस्वी यादव डिप्टी सीएम की कुर्सी छोड़ने को राजी नहीं हुई तो नीतीश कुमार ने राज्यपाल को इस्तीफा सौंप दिया और तेजस्वी यादव अपनेआप पैदल हो गये. राजस्थान में भी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने कैसे एक झटके में सचिन पायलट से एक झटके में डिप्टी सीएम की कुर्सी छीन ली. हालांकि, महाराष्ट्र के मामले में नाना पटोले के कांग्रेस अध्यक्ष पद के साथ वैसा कुछ नहीं हो सकता जैसा सचिन पायलट के साथ राजस्थान में हुआ.

सिर्फ डिप्टी सीएम ही क्यों, बिहार का ही उदाहरण देखें तो जब तक नीतीश कुमार की चलती रही तो स्पीकर जेडीयू का हुआ करता था, जैसे ही सीटों के मामले में पार्टी पिछड़ी बीजेपी ने दावा जताया और बीजेपी नेता विजय कुमार सिन्हा स्पीकर बन गये.

महाराष्ट्र में नाना पटोले को भी स्पीकर बैलेंसिंग फैक्टर के तहत बनाया गया था. मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे शिवसेना के हैं, तो डिप्टी सीएम अजीत पवार एनसीपी के हिस्से के हैं - और स्पीकर नाना पटोले कांग्रेस के के कोटे से बने थे, लेकिन अब ये समीकरण बदल चुका है.

मीडिया में आयी खबरों के मुताबिक, कांग्रेस चाहती है कि नाना पटोले के पीसीसी अध्यक्ष बन जाने के बाद विधानसभा अध्यक्ष का पद शिवसेना को मिले, साथ ही, उसे डिप्टी सीएम की पोस्ट और कुछ महत्वपूर्ण मंत्रालय भी मिले. हालांकि, डिप्टी सीएम और एनसीपी नेता अजित पवार का कहना है कि कांग्रेस ने ऐसी कोई बात नहीं कही है. अजित पवार कहते हैं, 'मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे, मैं खुद, एकनाथ राव शिंदे, जयंत पाटिल, बालासाहेब थोराट, छगन भुजबल और अशोक चव्हाण तीनों दलों के नेतृत्व के फैसले के हिसाब से काम कर रहे हैं.'

अजित पवार जो भी दावा करें, लेकिन सभी मिल कर कितना काम कर रहे हैं, ये तो राहुल गांधी ने एक प्रेस कांफ्रेंस में ही साफ कर दिया था. राहुल गांधी का कहना रहा कि महाराष्ट्र सरकार के फैसलों में कांग्रेस की कोई भूमिका नहीं होती. हालांकि, बाद में राहुल गांधी को सफाई देने के लिए उद्धव ठाकरे तो नहीं लेकिन आदित्य ठाकरे को फोन भी करना पड़ा था.

कांग्रेस भले चाहे कि स्पीकर की पोस्ट शिवसेना के पास रहे, लेकिन अब तो ये नये सिरे से तय होगा - अगर कांग्रेस ने स्पीकर का पद छोड़ दिया है तो शिवसेना के साथ साथ एनसीपी की भी दावेदारी स्वाभाविक ही है - अब नये स्पीकर का चुनाव ये भी इशारा करेगा कि महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार में किसकी ज्यादा चल रही है और आगे भी कांग्रेस, शिवसेना और एनसीपी में से दबदबा किसका ज्यादा रहेगा?

अगर शिवसेना को स्पीकर की पोस्ट मिलती है, तो समझा जा सकता है कि शिवसेना का प्रभाव बढ़ रहा है. अगर स्पीकर की कुर्सी पर एनसीपी के किसी नेता को बिठाया जाता है तो समझ लेना चाहिये कि शरद पवार की ताकत में लगातार इजाफा हो रहा है - वैसे भी अभी तक तो यही चर्चा रही है कि उद्धव ठाकरे कुर्सी पर बैठे हुए जरूर हैं, लेकिन रिमोट शरद पवार के पास सुरक्षित रहता है.

अभी तो सबसे बड़ा सच यही है कि कांग्रेस नेतृत्व महाराष्ट्र की सत्ता की राजनीति में स्पीकर पद से हाथ धो बैठा है - और एक डिप्टी सीएम की पोस्ट और कुछ महत्वपूर्ण मंत्रालय लेकर भी उसकी भरपाई नहीं की जा सकती.

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