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Updated: 11 दिसम्बर, 2015 01:18 PM
अरुण जेटली
अरुण जेटली
  @ArunJaitley
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कांग्रेस पार्टी ने पिछले कुछ दिनों से संसद के दोनों सदनों को बाधित किया है. इनका गोबेलियन मत एवं प्रचार यह है कि पार्टी का नेतृत्व राजनीतिक प्रतिशोध का शिकार है. अगर ऐसा है तो तथ्य क्या हैं?

एक कंपनी स्थापित की गई थी, जिसका उद्देश्य था 'नेशनल हेराल्ड' नाम से एक अखबार  शुरू करना. उस कंपनी को देश के कई हिस्सों में बेशकीमती जमीन का आवंटन मिला. आवंटित जमीन का मकसद था अखबार का कारोबार. आज ऐसा कोई अखबार नहीं है. आज है तो केवल वह जमीन और उसके ऊपर निर्मित संरचनाएं, जिसका व्यावसायिक रूप से दोहन किया जा रहा है.

अपनी राजनीतिक गतिविधियों को चलाने के लिए कोई भी राजनीतिक दल धन इकट्ठा करने की हकदार होती है. और इस प्रयोजन के लिए, पार्टियों को आयकर के भुगतान से छूट मिली होती है. कांग्रेस पार्टी द्वारा एकत्र धन में से नब्बे करोड़ रुपये इस अखबार कंपनी को दिया जाता है. प्रथम दृष्टया यह कहा जा सकता है कि इस मामले में आयकर अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन हुआ है, जहां आयकर से छूट प्राप्त आय का प्रयोग गैर-छूट प्राप्त उद्देश्य के लिए किया गया है.

नब्बे करोड़ रुपये का कर्ज महज 50 लाख रुपये की देनदारी पर सेक्शन 25 कंपनी को दे दी जाती है. आयकर से छूट प्राप्त आय को प्रभावी ढंग से एक रियल एस्टेट कंपनी को हस्तांतरित कर दिया जाता है. यही रियल एस्टेट कंपनी अब इस पूर्व अखबारी कंपनी के 99% शेयर की मालिक बन बैठती है. प्रभावी ढंग से, सेक्शन 25 कंपनी, जिस पर काफी हद तक कांग्रेस पार्टी के नेताओं का नियंत्रण था, के पास अब अखबार के प्रकाशन के लिए अधिगृहीत की गई लगभग सभी संपत्तियों का मालिकाना हक हो गया, और इस तरह से बिना किसी विचार के सेक्शन 25 कंपनी के हाथ में सारी परिसंपत्ति चली गई. यह लाभ आयकर दायरे में आने वाली एक विशाल राशि के बराबर है.

2012 से एक आम शहरी की तरह डॉक्टर सुब्रमणियम स्वामी विश्वास-घात का आरोप लगा रहे हैं. यह हर शहरी की ड्यूटी है कि उसके नजर में अगर कुछ गलत होता हुआ नजर आए, तो वह उसकी रिपोर्ट करे. एक ट्रायल कोर्ट ने स्वामी की शिकायत पर सम्मन जारी किया. इसके बाद कांग्रेस पार्टी के आरोपी नेता इसे रद्द कराने के लिए दिल्ली हाई कोर्ट गए. हाई कोर्ट ने उनकी याचिका खारिज कर दी. आरोपियों के पास अब दो विकल्प हैं. वे कोर्ट के आदेश को या तो सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे या ट्रायल कोर्ट के सामने हाजिर होकर मुकदमा लड़ें

सारे तथ्य बहुत साफ हैं. एक के बाद एक वित्तीय लेन-देन से कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने अपने ही लिए 'चक्रव्यूह' बना लिया है. अब इस चक्रव्यूह से निकलने का रास्ता उन्हें खुद खोजना होगा. उन्होंने बिना कुछ खर्च किए बड़ी मात्रा में सपत्ति जमा कर ली. उन्होंने टैक्स से छूट आय को छूट-रहित प्रयोजन के लिए इस्तेमाल किया. उन्होंने एक राजनीतिक पार्टी की आय का हस्तानान्तरण एक रियल-एस्टेट कंपनी को किया. और उस रियल एस्टेट कंपनी के लिए बड़ा करयोग्य आय तैयार किया. जबकि सरकार ने अब तक कोई भी दंडात्मक कदम नहीं उठाया है. न ही प्रवर्तन निदेशालय ने उन्हें कोई नोटिस ही भेजा है. आयकर विभाग अपनी पद्धति के अनुसार काम करेगा.

इस बीच हालांकि कोर्ट ने संज्ञान लिया है. हाई कोर्ट इस मामले में ट्रायल कोर्ट से सहमत है. इस लड़ाई को कानूनी तरीकों से ही लड़ा जाना चाहिए. लेकिन कानूनी लड़ाईयों के नतीजे हमेशा अनिश्चित होते हैं. इसलिए कांग्रेस साजिश रचे जाने की बात कर रही है और राजनीतिक प्रतिशोध का आरोप लगा रही है. क्या यह आरोप सीधे-सीधे कोर्ट पर है? इन विवादित वित्तीय लेन-देन की बात को लेकर सरकार ने कोई आदेश नहीं दिया है. कानून के सामने सब बराबर हैं. कोई भी उससे ऊपर नहीं है. भारत में यह परंपरा नहीं रही कि महारानी कानून के सामने उत्तरदायी नहीं हैं. सवाल है कि कांग्रेस पार्टी और उनके नेताओं को भला क्यों कोर्ट के सामने जवाब नहीं देना चाहिए? दरअसल, इस मामले में न सरकार उनकी कोई मदद कर सकती है और न ही संसद.

फिर संसद में हंगामा करने और विधायी कार्यों को रोकने का क्या मतलब है? चक्रव्यूह में फंसे कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व के लिए यही सलाह है कि वे अपनी लड़ाई कानूनी तरीके से लड़े न कि हर बार संसद के कामकाज को ठप कराने का प्रयास करें. कांग्रेस नेताओं द्वारा अपने इर्द-गिर्द जो वित्तीय जाल बनाया गया है वह लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में व्यवधान पैदा करने से ठीक नहीं हो जाएगा.

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लेखक

अरुण जेटली अरुण जेटली @arunjaitley

लेखक भारत के वित्त मंत्री हैं.

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